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This is Dr Pallavi Mishra, working as an Associate Professor

Tuesday, August 18, 2015

बेहतर संचार से सुधेरेंगे हालात








भारतीय स्वास्थय नीति और स्वास्थय संचार ने देश में पनप रहे रोगों के बोझ को कम करने में विशेष भूमिका निभायी है | बेशक पिछले कुछ दशकों में स्वास्थ्य के नज़रिए से  भारत की स्थिति में काफी सुधार हुआ है लेकिन अभी भी भारत के विकास में स्वास्थय की स्थिति तनाव बनाए हुए है | स्वास्थ्य के नजरिए से वर्ष, 2015  भारत के लिए बहुत  महत्वपूर्ण है । राष्ट्रीय स्तर पर, भारत सरकार नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में प्रगति के लिए प्रयासरत है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों (एमडीजी) के लिहाज़ से अंतिम वर्ष है, इस कारण भारत को स्वास्थय के प्रति ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है और इसके लिए भारत के स्वास्थय संचार को अधिक मजबूत एवं प्राभावी बनाने जरूरी है | 
आज दुनिया के तमाम विकसित देश अपने नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए स्वास्थय संचार के अंतर्गत कई कार्यक्रम और विज्ञापन कराते है | जन स्वास्थ्य संचार विशेषज्ञ अच्छी तरह जानते हैं कि प्रभावी संचार में लोगों की धारणाओं, विश्वास एवं आदतों को बदलने की ताकत होती है | आजादी के बाद से ही भारत में स्वास्थ्य संचार की प्रक्रिया जारी है, अखबार, रेडियो, टीवी, नुक्कड़ नाटक, पत्र- पत्रिकाओं, विज्ञापन आदि के माध्यम से साक्षरता को बढाने की कोशिश की गयी है | जानकार मानते है की भारत में हेल्थ कम्युनिकेशन की स्वास्थय सुधार में अहम् भूमिका रही है | भारत से पोलियो के उन्मूलन की सफलता हासिल करने में हेल्थ कम्युनिकेशन का प्रयास प्रशंसनीय रहा है | स्वास्थय संचार ने सार्वजनिक स्वास्थ्य के सुधार में देश के लोगों के जीवन को ख़ासा प्रभावित किया है | आज सरकार अपनी तरफ से स्वास्थय संचार को मजबूत बनाने की कोशिश कर रही है और इस डिजिटल युग में मोबाइल संदेशों, ब्लॉग्स, सोशल नैटवर्किंग वैबसाइट्स आदि नवीनतम विधियों से लोगों तक स्वस्थ्य सम्बन्धी जानकारी दी जा रही है | 
भारत सरकार द्वारा शुरू की गयी स्वास्थ्य बीमा योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना तथा अन्य स्वास्थय सम्बन्धी जानकारीयों को नागरिकों तक प्रसार करना बहुत ही महतवपूर्ण है ताकि देश के नागरिक सरकार की इन सुविधाओं का लाभ ले सके | आजादी के बाद से मलेरिया, टीबी, कुष्ठ रोग, उच्च मातृ एवं शिशु मृत्यु दर और  मानव इम्यूनो वायरस (एचआईवी) के प्रति लोगो को जानकारी देने की सरकार की कोशिश सराहनीय रही है लेकिन ताजे आकड़ों के अनुसार आज भी मातृ एवं शिशु मृत्यु दर, एचआईवी  महामारी, स्वाइन फ्लू और अन्य संक्रामक रोग भारत की स्वास्थ्य प्रणाली पर भारी तनाव बनाये हुए है | अभी हाल ही में “सेव द चिल्ड्रेन” 2015 की रिपोर्ट से सामने आये तथ्य ने भारत की स्थिति अच्छी नहीं है | भारत 170 देशों की सूची में 140 वें स्थान पर है |
देश में लगातार प्रसारित हो रही मजबूत चेतावनियों के बावजूद भारत की  2012 में 123 की रैंकिंग में गिरावट आयी है | इस रिपोर्ट ने साफ़ कर दिया है की स्वास्थ्य के प्रति भारतीय नागरिक कितने बेपरवाह है | अंतर्राष्ट्रीय तम्बाकू नियंत्रण परियोजना की रिपोर्ट के अनुसार तंबाकू नियंत्रण पर वैश्विक संधि के होने के बावजूद  और  कई तंबाकू और धूम्रपान विरोधी कानून होने के बाद भी, देश लोगों को नशे की लत और ख़राब स्वास्थ्य की चपेट में आने से रोक पाने में विफल हो रहा है |  हालांकि  सरकार कई पुनर्वासन संस्थान भी चला रही है, लेकिन सुचारू स्वास्थय संचार न होने के कारण सरकार लोगों को तम्बाकू सेवन के प्रति रोकने में सक्षम नहीं हो पा रही है | बरहाल सरकार ने तम्बाकू, सिगरेट के सार्वजनिक स्थानों पर विज्ञापन करने पर रोक लगा रखी है और नाबालिगों को इन उत्पादों की बिक्री भी प्रतिबंधित कर रखी है | दुनिया भर के कई देशों की तुलना में, भारत  2003 के बाद से तंबाकू नियंत्रण कानून को प्रस्तुत करने में सक्रिय हुआ है | लेकिन भारत दुनिया का सबसे कमजोर तंबाकू चेतावनी शासनों में से एक माना जाता है | अन्य दूसरी जानलेवा बिमारियों जैसे स्वाइन फ्लू या इबोला के बारे में भी सुचारू हेल्थ कम्युनिकेशन करना बहुत आवश्यक है | 
आकड़ों के अनुसार वर्ष 2015 में स्वाइन फ्लू से मरने वालों की संख्या पिछले वर्ष की तुलना में बढ़ी है | इसलिए देश के ग्रामीण तथा शहरी दोनों ही नागरिकों को स्वस्थ्य जीवन और आवश्यक पोषण के प्रति जानकारी देना जरूरी है | सरकार हेल्थ कम्युनिकेशन के द्वारा समाज को स्वास्थय के प्रति सूचना और ज्ञान उपलब्ध कराने के साथ-साथ सामूहिक रूप से स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने के लिए भी महतवपूर्ण है | नागरिकों को अपने स्वास्थय के प्रति सचेत रहने के लिए सही पोषण, साफ़ पेयजल, आस पास साफ-सफाई रखना तथा अन्य सामाजिक निर्धारकों को भी समझना ज़रूरी है | भारत की बढती जनसंख्या ने साफ़ कर दिया है देश को स्वास्थय संचार द्वारा जनसंख्या स्थिरीकरण, लिंग भेद की मानसिकता के प्रति उनकी सोच बदलना बहुत आवश्यक है | बरहाल भारत सरकार के स्वास्थय संचार ने बेशक देश के नागरिकों को जागरूक किया है लेकिन लोगों का रोगों के प्रति लापरवाह रेवैये के कारण भारत सरकार के सामने स्वास्थ्य प्रणालियों से सम्बंधित चुनौतियां कम नहीं है| इसलिए हेल्थ कम्युनिकेशन को एक नियोजित ढांचागत व्यवस्था का रूप देकर नागरिकों तक स्वास्थय सम्बन्धी सन्देश को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करना जरूरी है | जैसा अन्य विकासशील देश कर रहे है, ताकि देश का प्रत्येक नागरिक अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो सके |
















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