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Monday, May 2, 2016

प्रवासी मजदूरों की दयनीय दशा


उल्लेखनीय है कि हाल ही में भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत किये गए आज़ाद भारत की आर्थिक, सामाजिक और जाति आधारित जनगणना ने साफ़ कर दिया है कि आज़ादी के 67 साल बाद भी भारत में मजदूरों की दशा में बहुत ज्यादा सुधार नहीं हो पाया है | ये जनगणना भारतीय समाज के मजदूरों की दशा को आईना दिखाते हुए स्पष्ट कर रहा है कि  भारत में मजदूरों की माली हालत ठीक नहीं है | उनकी मासिक आय बहुत कम है और इसका एक मूल कारण ये है कि यहाँ मजदूरों की दिशा असंगठित है | भारत में मजदूरों की दशा विचारणीय है लेकिन प्रवासी भारतीय मजदूरों की स्थिति यहाँ के मजदूरों की तुलना में बहुत अधिक दयनीय है | भारत में अगर न्यूनतम मजदूरी की बात की जाए तो यहां न्यूनतम मजदूरी की दर अलग- अलग प्रदेशों में अलग अलग है । मनरेगा योजना के तहत यूपीए सरकार ने मजदूरों को सौ रुपए प्रतिदिन के हिसाब से सौ दिन के काम का प्रावधान रखा है | 2014 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार सभी राज्यों को न्यूनतम तय मजदूरी देने का निर्देश दिया गया था और तब तत्कालीन केंद्र सरकार ने 119 रुपए देना तय किया था | मनरेगा में न्यूनतम मजदूरी की दर 156 से 236 रुपए है | दुनिया के अन्य देशों की तुलना में भारत की न्यूनतम मजदूरी की दरबहुत कम है | संविधान बनने से पूर्व भारत में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 लागू किया गया था जिसमें अभी भी कोई सुधार नहीं हुआ हैं | इस अधिनियम के तहत भी हर राज्य की न्यूनतम मजदूरी की दर अलग-अलग है | बरहाल भारत में मजदूरों की दशा विचारनीय है  और  देश के मजदूरों को एक संगठित दिशा देने के लिए सरकार प्रयासरत है |  उल्लेखनीय है कि सरकार भारतीय मजदूरों के लिए कई योजनायें बना रही  है जिनमें से 2020 तक सभी को रहने के लिए आवास उपलब्ध करना अहम् है जो इन मजदूरों की ज़िन्दगी  बदलने में सहायक साबित हो सकती है | बरहाल अगर प्रवासी मजदूरों की बात की जाए तो उनकी दशा बहुत दयनीय है, उनकी  आर्थिक और सामाजिक स्थिति विचारनीय है | खाड़ी देशों में काम करने वाले भारतीय मजदूर की स्थिति बहुत खराब है | लगभग 7 करोड़ से अधिक भारतीय सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, ओमान, कतर और बहरीन के तेल समृद्ध खाड़ी देशों में काम करते हैं | इंडिया स्पीड द्वारा किये गये सर्वेक्षण से ये बात सामने आयी कि सऊदी अरब या कुवैत में रहने वाले भारतीय मजदूरों की ज़िन्दगी पर हमेशा मौत का खतरा बना रहता है | खूबसूरत दुबई में छुपी इन प्रवासी मजदूरों की स्थिति भी बहुत गंभीर है | सुनहरे भविष्य का सपना लिए जब भारतीय मजदूर इन खाड़ी देशों में कदम रखता है तो उन्हें पता नहीं होता कि उनके सुनहरे भविष्य का सपना चुनौतियों भरा है | सयुंक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार वहां कार्यरत मजदूरों के पासपोर्ट जब्त कर लिया जाता है और भीषण गर्मी में उन्हें बहुत लंबे समय तक काम करने के लिए मजबूर किया जाता हैं |  लगभग 50 डिग्री की भीषण तापमान में प्रवासी मजदूर आमतौर पर 14 घंटे काम करते हैं  | इसके विपरीत, पश्चिमी देशों के पर्यटकों को गर्मियों में पांच मिनट के लिए भी बाहर न जाने की सलाह दी जाती है |  हालांकि सरकार के नियमों के अनुसार तापमान अधिक होने पर काम बंद करने का प्रावधान है ताकि किसी को स्वास्थ्य की कोई तकलीफ ना हो, लेकिन ऐसे नियम होने के बावजूद ये प्रवासी मजदूर भीषण गर्मी में काम करते है |  संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार लगभग  35 लाख भारतीय प्रवासी इन खाड़ी देशों में रहते है और  उनमें से आधे से अधिक महिलाएं हैं |  इनमे ज्यादातर महिलाएं कम कुशल और अविवाहित है | संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट साफ़ करती है कि ये महिलाएं घरेलू कामगारों का काम करती है जिन्हें  अल्प मजदूरी, भुगतान न मिलना सहित शारीरिक, यौन और भावनात्मक शोषण का सामना करना पड़ता है | हालांकि भारतीय महिलाओं के अधिकारों का अन्य देश में हनन ना हो इसके लिए भारत में विशेष दिशा निर्देश है और इन वर्ग के लोगों को विदेश में मजदूरी करने से पहले उन्हें समझना आवश्यक है | भारतीय मजदूरों एवं कामगारों को विदेश में मजदूरी करने से पहले सरकार की इन योजनाओं के प्रति जागरूक होना बहुत जरूरी है ताकि उनके अधिकारों का हनन ना हो | 

Tuesday, April 26, 2016

खतरनाक होता सेल्फी एडिक्शन


देश में पिछले एक वर्ष में सेल्फी के क्रेज में जान गवां रहे युवाओं की बढती घटनाओं ने ये सोचने पर मजबूर कर दिया है कि इस तरह कि खतरनाक सेल्फी का जूनून हमें किस राह लेकर जा रहा है | ये युवा महज़ लोगों को एक अनोखी सेल्फी से प्रभावित करने के लिए, इस खूबसूरत ज़िन्दगी को मौत का न्योता दे बैठते है | हाल ही में हुई घटना ने फिर सेल्फी की सनक को स्पष्ट किया, जब यूपी में दौड़ती ट्रेन के साथ सेल्फी लेने के चक्कर में दो  लोग मौत का शिकार हो गए | इसके आलावा सहारनपुर क्षेत्र के रेलवे क्रासिंग के पास एक अन्य छात्र भी रेल की पटरी पर सेल्फी लेने के चक्कर में ट्रेन की चपेट में आकर मौत की नींद सो गया | इससे पहले भी इसी वर्ष 11वी क्लास में पढने वाला एक छात्र तेज़ रफ्तार ट्रेन के साथ सेल्फी खींचने की कोशिश में हादसे का शिकार हो गया था | मुंबई में भी सेल्फी क्रेज की वजह से कुछ लडकियां समुद्र में गिर गयी थी जिसमे से एक की मौत हो गयी थी | मथुरा में भी 3 कॉलेज के छात्र तेज रफ्तार ट्रेन के साथ सेल्फी लेते समय जान गवां बैठे थे | पिछले वर्ष मुंबई में एक 14 वर्षीय स्कूल छात्र की भी सल्फी लेने के चक्कर में तब मौत हो गयी थी जब वह एक खड़ी ट्रेन के डिब्बे के ऊपर सेल्फी लेने की कोशिश कर रहा था और बिजली का झटका लग गया था | भारत में ऐसे और भी कई हादसे हुए है जिसमें लोग सेल्फी लेने के चक्कर में अपनी जान से हाथ धो बैठे है  | सेल्फी से हो रही मौत का आकंडा भारत में लगातार बढ़ रहा है लेकिन फिर भी लोग इन हादसों से सबक नहीं ले रहे है | वाशिंगटन पोस्ट की 2015 रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा भारत में लोगों ने सेल्फी लेने के दौडान अपनी जान गवाई है | इससे साफ़ हो रहा है कि भारत में लोगों कि सेल्फी सनक कम नहीं हो रही है | ऐसे तो मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसे सामाजिक संपर्क में रहने की आवश्यकता है | टेक्नोलॉजी विकास ने जब सेल्फी संस्कृति को जन्म दिया तो इसने लोगों को काफी प्रभावित किया | ये स्वाभाविक भी है की हर मनुष्य को स्वयं को कमरे में कैद करना और लोगों से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलना अच्छा लगता  है | ये अटेंशन सीकिंग बिहेवियर है और सामाजिक रूप से स्वीकार्य है | हालांकि अगर व्यक्ति ज़रुरत से ज्यादा ध्यान केन्द्रित करने की कोशिश करता है तो वो अटेंशन सीकिंग बिहेवियर डिसऑर्डर का शिकार हो सकता है | मनोचिकित्सक मानते है कि बहुत ज्यादा सेल्फी की लत, सेल्फी सिंड्रोम को जन्म देती है जिसे अटेंशन सीकिंग बिहेवियर डिसऑर्डर कहा जाता है | बरहाल हमें ये समझना आवश्यक है कि टेक्नोलॉजी का विकास सिर्फ हमारी सुविधा के लिए हुआ है और हमें इससे इतना अधिक प्रभावित नहीं होना चाहिए कि हम किसी विकृति का शिकार हो जाए या स्वयं की ज़िन्दगी से हाथ धो बैठे |   


Monday, April 18, 2016

सोशल मीडिया पर लहराता हिंदी भाषा का परचम





सूचना प्रद्योगिकी के क्षेत्र में इन्टरनेट ने सोशल मीडिया रूपी साइबरस्पेस की एक अनोखी दुनिया के रूप में पदार्पण करके हिंदी भाषा को नए आयाम से जोड़ा है | भारतीय संस्कृति और परंपरा संपूर्ण विश्व में अद्वितीय है और आज हिंदी भाषा के बढ़ते वैभव को  हम जीवंत कर रहे हैं | किसी भी समाज के निर्माण में संचार की विशेष भूमिका है तथा मानव की सामाजिक व सांस्कृतिक परम्पराओं के स्थानांतरण की प्रक्रिया में संचार का विशेष योगदान रहा हैं | ऐसे में हिंदी जो दुनिया की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, संचार की निरंतरता को बनाये रखने के लिए टेक्नोलॉजी की दुनिया में  इसको नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता था | हिंदी भाषा दुनिया भर में 8000 लाख से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है |

 आज सोशल मीडिया की नीव पर निर्मित ग्लोबल गाँव जिसकी कोई परिभाषित सीमा नहीं है, हिंदी भाषा का विस्तार करने में सक्षम है | कंप्यूटर की दुनिया में हिंदी भाषा के आगमन ने हिंदी भाषा का वैश्वीकरण किया | 80 के दशक में कंप्यूटर की दुनिया में हिंदी भाषा ने डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम (डॉस) के जमाने में अक्षर, शब्दरत्न आदि जैसे वर्ड प्रोसैसरों के रूप में कदम रखा | बाद में विण्डोज़ का पदार्पण होने पर 8-बिट ऑस्की फॉण्ट जैसे कृतिदेव, चाणक्य आदि के द्वारा वर्ड प्रोसैसिंग, डीटीपी तथा ग्राफिक्स अनुप्रयोगों में हिन्दी भाषा में मुद्रण संभव हुआ | लेकिन तब हिंदी भाषा केवल मुद्रण के काम तक ही सीमित रही | गूगल ने 2007 में अपने हिंदी भाषा अनुवादक का प्रारंभ किया और इसके बाद यूनिकोड फॉण्ट का विकास हुआ जिसको माइक्रोसॉफ्ट के विण्डोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम में विण्डोज़ 2000 का समर्थन मिला | इस तरह हिंदी भाषा का टेक्नोलॉजी की दुनिया में विस्तार हुआ | इससे अंग्रेजी और अन्य यूरोपीय भाषाओं की तरह कम्प्यूटर पर सभी ऍप्लिकेशनों में हिन्दी भाषा का प्रयोग सम्भव हो गया |  सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा के विकास ने भारतीयों को सोशल नेटवर्किंग साइट्स की ओर आकर्षित किया है | आज फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग, व्हाटस एप्प या कोई अन्य नेटवर्किंग साइट् सभी पर हिंदी भाषा की सुविधा उपलब्ध है | हिंदी भाषा के कम्प्यूटरीकरण के बाद सोशल मीडिया प्रयोगकर्ताओं की संख्या लगातार बढ़ रही है | आज भारत में 2000 लाख से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता है | गूगल इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार 2018 तक लगभग आधा देश इंटरनेट के माध्यम से जुड़ जाएगा भारत में बढ़ते इन्टरनेट उपभोताओं के कारण सोशल मीडिया का वर्चस्व भी मजबूत हो रहा बल्कि विशेषज्ञों का मानना है की सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए उपभोगता इन्टरनेट का प्रयोग कर रहे है | वर्तमान में, भारत तीसरा सबसे बड़ा इंटरनेट उपभोगताओं वाला देश है फेसबुक, मासिक सक्रिय उपयोगकर्ताओं की रैंकिंग में सबसे आगे है जहां हिंदी में संवाद एवं आलेख देना संभव है और वही चैट एप्प में व्हाटस एप्प बहुत सक्रिय है, ये भी हिंदी भाषा का समर्थन करता है | हिंदी ब्लॉग्गिंग की बात की जाये तो यहाँ ब्लॉग केवल पत्रकारिता का दायित्व निर्वाह नहीं करता अपितु रचनाकारों की रचनाओं को  अभिव्यक्त करने का माध्यम प्रदान करता है | विदित है कि हिंदी भाषा ने सोशल मीडिया पर अपना वर्चस्व स्थापित किया है और आगे आने वाले समय में हिंदी इन्टरनेट पर लोकप्रिय भाषाओं में से एक होंगी | जहां सोशल मीडिया सूचना क्रांति के नवीनतम साधन के रूप में विकसित हुई है वही हिंदी भाषा ने टेक्नोलॉजी की दुनिया में अपना स्थान बना लिया है | इससे साफ़ होता है कि हिंदी के महत्व को विश्व में कितनी गंभीरता से अनुभव किया जा रहा है। आज हिंदी ने कंप्यूटर के क्षेत्र में अंग्रेजी के वर्चस्व पर प्रभाव डाला है और करोड़ों की आबादी वाले हिंदी भाषी लोग कंप्यूटर का प्रयोग अपनी भाषा में कर रहे हैं |
मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम में हिन्दी का प्रवेश वर्ष 2005 के बाद शुरु हुआ। पिछले 8 वर्षों में हिंदी बोलने वालों की संख्या में 50% की वृद्धि हुई है | भारत के अतिरिक्त नेपाल, मॉरिशस, फिजी, यूगांडा, दक्षिण अफ्रीका, कैरिबियन देशों, ट्रिनिडाड एवं टोबेगो और कनाडा जैसे देशों में भी हिंदी बोलने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है | इसके आलावा इंग्लैंड, अमेरिका, मध्य एशिया में भी इसे बोलने और समझने वाले अच्छे-खासे लोग हैं | वैश्वीकरण और भारत के बढ़ते रूतबे के साथ पिछले कुछ सालों में हिन्दी के प्रति विश्व के लोगों की रूचि खासी बढ़ी है। यह एक तथ्य है की किसी भी मीडिया की लोकप्रियता उसके प्रयोगकर्ताओं की संख्या पर ही निर्भर करती है | इससे साफ़ होता है कि सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा का वैभव लगातार बढ़ रहा है |


विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) क्षेत्रों में महिलाओं का वर्चस्व

 https://pratipakshsamvad.com/women-dominate-the-science-technology-engineering-and-mathematics-stem-areas/  (अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस)  डॉ ...