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- Dr Pallavi Mishra
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Monday, May 2, 2016
Tuesday, April 26, 2016
खतरनाक होता सेल्फी एडिक्शन
देश में पिछले एक वर्ष में सेल्फी के क्रेज में जान
गवां रहे युवाओं की बढती घटनाओं ने ये सोचने पर मजबूर कर दिया है कि इस तरह कि
खतरनाक सेल्फी का जूनून हमें किस राह लेकर जा रहा है | ये युवा महज़ लोगों को एक
अनोखी सेल्फी से प्रभावित करने के लिए, इस खूबसूरत ज़िन्दगी को मौत का न्योता दे बैठते
है | हाल ही में हुई घटना ने फिर सेल्फी की सनक को स्पष्ट किया, जब यूपी में दौड़ती
ट्रेन के साथ सेल्फी लेने के चक्कर में दो लोग मौत का शिकार हो गए | इसके आलावा सहारनपुर
क्षेत्र के रेलवे क्रासिंग के पास एक अन्य छात्र भी रेल की पटरी पर सेल्फी लेने के
चक्कर में ट्रेन की चपेट में आकर मौत की नींद सो गया | इससे पहले भी इसी वर्ष 11वी क्लास में पढने वाला एक छात्र तेज़ रफ्तार ट्रेन के साथ सेल्फी
खींचने की कोशिश में हादसे का शिकार हो गया था | मुंबई में भी सेल्फी क्रेज की वजह
से कुछ लडकियां समुद्र में गिर गयी थी जिसमे से एक की मौत हो गयी थी | मथुरा में
भी 3 कॉलेज के छात्र तेज रफ्तार ट्रेन के साथ सेल्फी लेते समय जान गवां बैठे थे | पिछले
वर्ष मुंबई में एक 14 वर्षीय स्कूल छात्र की भी सल्फी लेने के चक्कर में तब मौत हो
गयी थी जब वह एक खड़ी ट्रेन के डिब्बे के ऊपर सेल्फी लेने की कोशिश कर रहा था और
बिजली का झटका लग गया था | भारत में ऐसे और भी कई हादसे हुए है जिसमें लोग सेल्फी
लेने के चक्कर में अपनी जान से हाथ धो बैठे है | सेल्फी से हो रही मौत का आकंडा भारत में
लगातार बढ़ रहा है लेकिन फिर भी लोग इन हादसों से सबक नहीं ले रहे है | वाशिंगटन
पोस्ट की 2015 रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में
सबसे ज्यादा भारत में लोगों ने सेल्फी लेने के दौडान अपनी जान गवाई है | इससे साफ़
हो रहा है कि भारत में लोगों कि सेल्फी सनक कम नहीं हो रही है | ऐसे तो मनुष्य एक
सामाजिक प्राणी है और उसे सामाजिक संपर्क में रहने की आवश्यकता है | टेक्नोलॉजी
विकास ने जब सेल्फी संस्कृति को जन्म दिया तो इसने लोगों को काफी प्रभावित किया | ये
स्वाभाविक भी है की हर मनुष्य को स्वयं को कमरे में कैद करना और लोगों से सकारात्मक
प्रतिक्रिया मिलना अच्छा लगता है | ये
अटेंशन सीकिंग बिहेवियर है और सामाजिक रूप से स्वीकार्य है | हालांकि अगर व्यक्ति
ज़रुरत से ज्यादा ध्यान केन्द्रित करने की कोशिश करता है तो वो अटेंशन सीकिंग
बिहेवियर डिसऑर्डर का शिकार हो सकता है | मनोचिकित्सक मानते है कि बहुत ज्यादा सेल्फी
की लत, सेल्फी सिंड्रोम को जन्म देती है जिसे अटेंशन सीकिंग
बिहेवियर डिसऑर्डर कहा जाता है | बरहाल हमें ये समझना आवश्यक है कि टेक्नोलॉजी का
विकास सिर्फ हमारी सुविधा के लिए हुआ है और हमें इससे इतना अधिक प्रभावित नहीं
होना चाहिए कि हम किसी विकृति का शिकार हो जाए या स्वयं की ज़िन्दगी से हाथ धो बैठे
|
Monday, April 18, 2016
सोशल मीडिया पर लहराता हिंदी भाषा का परचम
सूचना प्रद्योगिकी के क्षेत्र में इन्टरनेट ने
सोशल मीडिया रूपी साइबरस्पेस की एक अनोखी दुनिया के रूप में पदार्पण करके हिंदी
भाषा को नए आयाम से जोड़ा है | भारतीय संस्कृति और परंपरा संपूर्ण विश्व में अद्वितीय
है और आज हिंदी भाषा के
बढ़ते वैभव को हम जीवंत कर रहे हैं | किसी
भी समाज के निर्माण में संचार की विशेष भूमिका है तथा मानव की सामाजिक व
सांस्कृतिक परम्पराओं के स्थानांतरण की प्रक्रिया में संचार का विशेष योगदान रहा हैं
| ऐसे में हिंदी
जो दुनिया की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, संचार की निरंतरता को बनाये
रखने के लिए टेक्नोलॉजी की दुनिया में इसको
नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता था | हिंदी भाषा दुनिया भर में 8000 लाख से अधिक लोगों
द्वारा बोली जाती है |
आज सोशल
मीडिया की नीव पर निर्मित ग्लोबल गाँव जिसकी कोई परिभाषित सीमा नहीं है, हिंदी
भाषा का विस्तार करने में सक्षम है | कंप्यूटर की दुनिया में हिंदी भाषा के आगमन
ने हिंदी भाषा का वैश्वीकरण किया | 80 के दशक में कंप्यूटर की दुनिया में हिंदी
भाषा ने डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम (डॉस) के जमाने में अक्षर, शब्दरत्न आदि जैसे वर्ड प्रोसैसरों के
रूप में कदम रखा | बाद में विण्डोज़ का पदार्पण होने पर 8-बिट ऑस्की फॉण्ट जैसे कृतिदेव, चाणक्य आदि के द्वारा वर्ड प्रोसैसिंग, डीटीपी तथा ग्राफिक्स अनुप्रयोगों में
हिन्दी भाषा में मुद्रण संभव हुआ | लेकिन तब हिंदी भाषा केवल मुद्रण के काम तक ही
सीमित रही | गूगल ने 2007 में अपने हिंदी भाषा अनुवादक का प्रारंभ किया और इसके
बाद यूनिकोड फॉण्ट का विकास हुआ जिसको माइक्रोसॉफ्ट के विण्डोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम
में विण्डोज़ 2000 का
समर्थन मिला | इस तरह हिंदी भाषा का टेक्नोलॉजी की दुनिया में विस्तार हुआ | इससे
अंग्रेजी और अन्य यूरोपीय भाषाओं की तरह कम्प्यूटर पर सभी ऍप्लिकेशनों में हिन्दी भाषा
का प्रयोग सम्भव हो गया | सोशल मीडिया पर हिंदी
भाषा के विकास ने भारतीयों को सोशल नेटवर्किंग साइट्स की ओर आकर्षित किया है | आज फेसबुक,
ट्विटर, ब्लॉग, व्हाटस एप्प या कोई अन्य नेटवर्किंग साइट् सभी पर हिंदी भाषा की
सुविधा उपलब्ध है | हिंदी भाषा के कम्प्यूटरीकरण के बाद सोशल मीडिया प्रयोगकर्ताओं
की संख्या लगातार बढ़ रही है | आज भारत में 2000 लाख से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता है
| गूगल इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार 2018 तक लगभग आधा देश इंटरनेट के माध्यम से
जुड़ जाएगा | भारत में बढ़ते इन्टरनेट उपभोताओं के
कारण सोशल मीडिया का वर्चस्व भी मजबूत हो रहा बल्कि विशेषज्ञों का मानना है की
सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए उपभोगता इन्टरनेट का प्रयोग कर
रहे है | वर्तमान
में, भारत
तीसरा सबसे बड़ा इंटरनेट उपभोगताओं वाला देश है | फेसबुक, मासिक सक्रिय उपयोगकर्ताओं की रैंकिंग में सबसे आगे है जहां हिंदी
में संवाद एवं आलेख देना संभव है और वही चैट एप्प में व्हाटस एप्प बहुत सक्रिय है,
ये भी हिंदी भाषा का समर्थन करता है | हिंदी ब्लॉग्गिंग की बात की जाये तो यहाँ
ब्लॉग केवल पत्रकारिता का दायित्व निर्वाह नहीं करता अपितु रचनाकारों की रचनाओं को अभिव्यक्त करने का माध्यम प्रदान करता है | विदित
है कि हिंदी भाषा ने सोशल मीडिया पर अपना वर्चस्व स्थापित किया है और आगे आने वाले
समय में हिंदी इन्टरनेट पर लोकप्रिय भाषाओं में से एक होंगी | जहां सोशल मीडिया सूचना क्रांति के नवीनतम साधन के रूप में विकसित
हुई है वही हिंदी भाषा ने टेक्नोलॉजी की दुनिया में अपना स्थान बना लिया है | इससे
साफ़ होता है कि हिंदी के महत्व को विश्व में कितनी गंभीरता से अनुभव किया जा रहा
है। आज हिंदी ने कंप्यूटर के क्षेत्र में अंग्रेजी के वर्चस्व पर प्रभाव डाला है
और करोड़ों की आबादी वाले हिंदी भाषी लोग कंप्यूटर का प्रयोग अपनी भाषा में कर रहे
हैं |
मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम में हिन्दी का प्रवेश
वर्ष 2005 के
बाद शुरु हुआ। पिछले 8 वर्षों में हिंदी बोलने वालों की संख्या में 50% की वृद्धि
हुई है | भारत के अतिरिक्त नेपाल, मॉरिशस, फिजी, यूगांडा, दक्षिण अफ्रीका, कैरिबियन देशों, ट्रिनिडाड एवं टोबेगो और कनाडा जैसे
देशों में भी हिंदी बोलने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है | इसके आलावा इंग्लैंड, अमेरिका, मध्य एशिया में भी इसे बोलने और समझने
वाले अच्छे-खासे लोग हैं | वैश्वीकरण और भारत के बढ़ते रूतबे के साथ पिछले कुछ
सालों में हिन्दी के प्रति विश्व के लोगों की रूचि खासी बढ़ी है। यह एक तथ्य है की किसी भी मीडिया की लोकप्रियता उसके प्रयोगकर्ताओं
की संख्या पर ही निर्भर करती है | इससे साफ़ होता है कि सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा
का वैभव लगातार बढ़ रहा है |
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