Dr Pallavi Mishra is working as an Associate Professor. NET/JRF qualified.Founder of PAcademi.com

My photo
This is Dr Pallavi Mishra, working as an Associate Professor

Tuesday, April 26, 2016

खतरनाक होता सेल्फी एडिक्शन


देश में पिछले एक वर्ष में सेल्फी के क्रेज में जान गवां रहे युवाओं की बढती घटनाओं ने ये सोचने पर मजबूर कर दिया है कि इस तरह कि खतरनाक सेल्फी का जूनून हमें किस राह लेकर जा रहा है | ये युवा महज़ लोगों को एक अनोखी सेल्फी से प्रभावित करने के लिए, इस खूबसूरत ज़िन्दगी को मौत का न्योता दे बैठते है | हाल ही में हुई घटना ने फिर सेल्फी की सनक को स्पष्ट किया, जब यूपी में दौड़ती ट्रेन के साथ सेल्फी लेने के चक्कर में दो  लोग मौत का शिकार हो गए | इसके आलावा सहारनपुर क्षेत्र के रेलवे क्रासिंग के पास एक अन्य छात्र भी रेल की पटरी पर सेल्फी लेने के चक्कर में ट्रेन की चपेट में आकर मौत की नींद सो गया | इससे पहले भी इसी वर्ष 11वी क्लास में पढने वाला एक छात्र तेज़ रफ्तार ट्रेन के साथ सेल्फी खींचने की कोशिश में हादसे का शिकार हो गया था | मुंबई में भी सेल्फी क्रेज की वजह से कुछ लडकियां समुद्र में गिर गयी थी जिसमे से एक की मौत हो गयी थी | मथुरा में भी 3 कॉलेज के छात्र तेज रफ्तार ट्रेन के साथ सेल्फी लेते समय जान गवां बैठे थे | पिछले वर्ष मुंबई में एक 14 वर्षीय स्कूल छात्र की भी सल्फी लेने के चक्कर में तब मौत हो गयी थी जब वह एक खड़ी ट्रेन के डिब्बे के ऊपर सेल्फी लेने की कोशिश कर रहा था और बिजली का झटका लग गया था | भारत में ऐसे और भी कई हादसे हुए है जिसमें लोग सेल्फी लेने के चक्कर में अपनी जान से हाथ धो बैठे है  | सेल्फी से हो रही मौत का आकंडा भारत में लगातार बढ़ रहा है लेकिन फिर भी लोग इन हादसों से सबक नहीं ले रहे है | वाशिंगटन पोस्ट की 2015 रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा भारत में लोगों ने सेल्फी लेने के दौडान अपनी जान गवाई है | इससे साफ़ हो रहा है कि भारत में लोगों कि सेल्फी सनक कम नहीं हो रही है | ऐसे तो मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसे सामाजिक संपर्क में रहने की आवश्यकता है | टेक्नोलॉजी विकास ने जब सेल्फी संस्कृति को जन्म दिया तो इसने लोगों को काफी प्रभावित किया | ये स्वाभाविक भी है की हर मनुष्य को स्वयं को कमरे में कैद करना और लोगों से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलना अच्छा लगता  है | ये अटेंशन सीकिंग बिहेवियर है और सामाजिक रूप से स्वीकार्य है | हालांकि अगर व्यक्ति ज़रुरत से ज्यादा ध्यान केन्द्रित करने की कोशिश करता है तो वो अटेंशन सीकिंग बिहेवियर डिसऑर्डर का शिकार हो सकता है | मनोचिकित्सक मानते है कि बहुत ज्यादा सेल्फी की लत, सेल्फी सिंड्रोम को जन्म देती है जिसे अटेंशन सीकिंग बिहेवियर डिसऑर्डर कहा जाता है | बरहाल हमें ये समझना आवश्यक है कि टेक्नोलॉजी का विकास सिर्फ हमारी सुविधा के लिए हुआ है और हमें इससे इतना अधिक प्रभावित नहीं होना चाहिए कि हम किसी विकृति का शिकार हो जाए या स्वयं की ज़िन्दगी से हाथ धो बैठे |   


Tuesday, April 19, 2016

ऑड इवन का सियासी ड्रामा

दिल्ली में चल रहा ऑड इवन का फॉर्मूला प्रदुषण कम करने में कितना कारगर होगा ये तो आने वाले वक़्त ही बताएगा लेकिन लोगों की जेब कतरने में ये ख़ासा सफल हो रहा है दिल्लीवासी दोहरी मार का शिकार हो रहे है, एक तरफ तो इस ऑड इवन फॉर्मूले का उल्लंघन करने पर 2000 का जुर्माना भरना पड़ रहा है तो दूसरी तरफ दिल्ली की सबसे बड़ी टैक्सी सर्विस ओला और उबेर  कंपनियों  ने ऑफिस टाइम में अपने दरों में तीन गुना वृद्धि कर दी है |  दिल्लीवासी इस ऑड इवन स्कीम को सफल बनाने के लिए भले ही हर मुमकिन कोशिश कर रहे हो लेकिन सियासी लोग इस पर अपनी रोटी सकने से पीछे नहीं हट रहे है | इस नियम का उल्लघन करने का एलान कर चुके बीजेपी के संसद विजय गोयल को गुलाब के फूल की पेशकश करते हुए दिल्ली के परिवहन मंत्री गोपाल राय ने समझाने की कोशिश की लेकिन कुछ घंटे के बाद ही विजय गोयल ने इस योजना का उल्लंघन कर दिल्ली पुलिस को 2000 रुपये का जुर्माना दिया | हालांकि विजय गोयल का कहना था की उन्होंने इस योजना का उलंघन ऑड इवन फोर्मुले को गलत साबित करने के लिए नहीं बल्कि सरकार द्वारा इस योजना के प्रचार प्रसार पर करोड़ों रूपए खर्च किये जाने के विरोध में किया है | इससे सियासी जंग ने नया मोड़ ले लिया और केंद्रीय सरकार पर स्वच्छ भारत अभियान के प्रचार प्रसार में किये गए खर्चे की जानकारी मांगी गयी | बरहाल देश किसी भी गंभीर समस्या से जूझ रहा हो लेकिन सियासत में बैठे लोग समस्या को सुलझाने के बजाये एक दुसरे पर छीटा कशी से पीछ्ते नहीं हटते | देश में बढ़ता प्रदुषण एक बहुत बड़ी समस्या है, दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है | हम सभी को एकजुट होकर प्रदुषण कम करने के लिए किसी अच्छे विकल्प के बारे में सोचना चाहिए | ऑड इवन प्रदुषण को कम करने के लिए एक इमरजेंसी विकल्प हो सकता है लेकिन ये एकमात्र विकल्प नहीं है | ऑड इवन को सफल एवं सुचारू बनाने के लिए पहले लोगों के आने जाने की सुविधाओं का उचित प्रबंध करना आवश्यक है | प्रदुषण के अन्य कारकों को भी नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता | ऑड इवन की योजना के अंतर्गत ज्यादा प्रदूषण करने वाले वाहनों को नहीं रखा गया है ये भी इस योजना की एक कमज़ोर व्यवस्था को प्रदर्शित करता है | फक्ट्रियों से होने वाले प्रदुषण के बारे में भी सोचना बहुत जरूरी है | प्रदुषण देश की एक गंभीर समस्या है और इससे निपटने के लिए सभी कारकों को समझने के साथ साथ ये भी आवश्यक होगा की इस गंभीर समस्या को सियासत के मुद्दे से दूर रखा जाए |

Monday, April 18, 2016

सोशल मीडिया पर लहराता हिंदी भाषा का परचम





सूचना प्रद्योगिकी के क्षेत्र में इन्टरनेट ने सोशल मीडिया रूपी साइबरस्पेस की एक अनोखी दुनिया के रूप में पदार्पण करके हिंदी भाषा को नए आयाम से जोड़ा है | भारतीय संस्कृति और परंपरा संपूर्ण विश्व में अद्वितीय है और आज हिंदी भाषा के बढ़ते वैभव को  हम जीवंत कर रहे हैं | किसी भी समाज के निर्माण में संचार की विशेष भूमिका है तथा मानव की सामाजिक व सांस्कृतिक परम्पराओं के स्थानांतरण की प्रक्रिया में संचार का विशेष योगदान रहा हैं | ऐसे में हिंदी जो दुनिया की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, संचार की निरंतरता को बनाये रखने के लिए टेक्नोलॉजी की दुनिया में  इसको नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता था | हिंदी भाषा दुनिया भर में 8000 लाख से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है |

 आज सोशल मीडिया की नीव पर निर्मित ग्लोबल गाँव जिसकी कोई परिभाषित सीमा नहीं है, हिंदी भाषा का विस्तार करने में सक्षम है | कंप्यूटर की दुनिया में हिंदी भाषा के आगमन ने हिंदी भाषा का वैश्वीकरण किया | 80 के दशक में कंप्यूटर की दुनिया में हिंदी भाषा ने डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम (डॉस) के जमाने में अक्षर, शब्दरत्न आदि जैसे वर्ड प्रोसैसरों के रूप में कदम रखा | बाद में विण्डोज़ का पदार्पण होने पर 8-बिट ऑस्की फॉण्ट जैसे कृतिदेव, चाणक्य आदि के द्वारा वर्ड प्रोसैसिंग, डीटीपी तथा ग्राफिक्स अनुप्रयोगों में हिन्दी भाषा में मुद्रण संभव हुआ | लेकिन तब हिंदी भाषा केवल मुद्रण के काम तक ही सीमित रही | गूगल ने 2007 में अपने हिंदी भाषा अनुवादक का प्रारंभ किया और इसके बाद यूनिकोड फॉण्ट का विकास हुआ जिसको माइक्रोसॉफ्ट के विण्डोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम में विण्डोज़ 2000 का समर्थन मिला | इस तरह हिंदी भाषा का टेक्नोलॉजी की दुनिया में विस्तार हुआ | इससे अंग्रेजी और अन्य यूरोपीय भाषाओं की तरह कम्प्यूटर पर सभी ऍप्लिकेशनों में हिन्दी भाषा का प्रयोग सम्भव हो गया |  सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा के विकास ने भारतीयों को सोशल नेटवर्किंग साइट्स की ओर आकर्षित किया है | आज फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग, व्हाटस एप्प या कोई अन्य नेटवर्किंग साइट् सभी पर हिंदी भाषा की सुविधा उपलब्ध है | हिंदी भाषा के कम्प्यूटरीकरण के बाद सोशल मीडिया प्रयोगकर्ताओं की संख्या लगातार बढ़ रही है | आज भारत में 2000 लाख से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता है | गूगल इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार 2018 तक लगभग आधा देश इंटरनेट के माध्यम से जुड़ जाएगा भारत में बढ़ते इन्टरनेट उपभोताओं के कारण सोशल मीडिया का वर्चस्व भी मजबूत हो रहा बल्कि विशेषज्ञों का मानना है की सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए उपभोगता इन्टरनेट का प्रयोग कर रहे है | वर्तमान में, भारत तीसरा सबसे बड़ा इंटरनेट उपभोगताओं वाला देश है फेसबुक, मासिक सक्रिय उपयोगकर्ताओं की रैंकिंग में सबसे आगे है जहां हिंदी में संवाद एवं आलेख देना संभव है और वही चैट एप्प में व्हाटस एप्प बहुत सक्रिय है, ये भी हिंदी भाषा का समर्थन करता है | हिंदी ब्लॉग्गिंग की बात की जाये तो यहाँ ब्लॉग केवल पत्रकारिता का दायित्व निर्वाह नहीं करता अपितु रचनाकारों की रचनाओं को  अभिव्यक्त करने का माध्यम प्रदान करता है | विदित है कि हिंदी भाषा ने सोशल मीडिया पर अपना वर्चस्व स्थापित किया है और आगे आने वाले समय में हिंदी इन्टरनेट पर लोकप्रिय भाषाओं में से एक होंगी | जहां सोशल मीडिया सूचना क्रांति के नवीनतम साधन के रूप में विकसित हुई है वही हिंदी भाषा ने टेक्नोलॉजी की दुनिया में अपना स्थान बना लिया है | इससे साफ़ होता है कि हिंदी के महत्व को विश्व में कितनी गंभीरता से अनुभव किया जा रहा है। आज हिंदी ने कंप्यूटर के क्षेत्र में अंग्रेजी के वर्चस्व पर प्रभाव डाला है और करोड़ों की आबादी वाले हिंदी भाषी लोग कंप्यूटर का प्रयोग अपनी भाषा में कर रहे हैं |
मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम में हिन्दी का प्रवेश वर्ष 2005 के बाद शुरु हुआ। पिछले 8 वर्षों में हिंदी बोलने वालों की संख्या में 50% की वृद्धि हुई है | भारत के अतिरिक्त नेपाल, मॉरिशस, फिजी, यूगांडा, दक्षिण अफ्रीका, कैरिबियन देशों, ट्रिनिडाड एवं टोबेगो और कनाडा जैसे देशों में भी हिंदी बोलने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है | इसके आलावा इंग्लैंड, अमेरिका, मध्य एशिया में भी इसे बोलने और समझने वाले अच्छे-खासे लोग हैं | वैश्वीकरण और भारत के बढ़ते रूतबे के साथ पिछले कुछ सालों में हिन्दी के प्रति विश्व के लोगों की रूचि खासी बढ़ी है। यह एक तथ्य है की किसी भी मीडिया की लोकप्रियता उसके प्रयोगकर्ताओं की संख्या पर ही निर्भर करती है | इससे साफ़ होता है कि सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा का वैभव लगातार बढ़ रहा है |


Wednesday, April 13, 2016

Conducting Field Study at Bargi Village, Jabalpur

Collecting Data at Bargi Village


Field Study is an experience of Real World that opens many doors to understand the basic and key concepts of Data Collection Method. The 10 days Workshop on Research Methodology, organised by the Department of Political Science, Rani Durgawati University Jabalpur, sponsored by ICSSR under the Supervision of Prof.Vivek Mishra Sir offered me the opportunity to understand various aspects of Field Study Method.

Collecting Data at Bargi Village

Before conducting Research at field, Prof.RamShankar Dubey Sir shared the best of his experience and knowledge with us to understand the key aspects of any Field Study. The very informative and interactive session by him made us understand the basic principles to develop a Questionnaire and we also got to know the about the thumb rules to conduct a Field Survey. Thus to experience the Field Study practically we visited Bargi village where I conducted a Data Collection Process. The topic assigned to us was “Political Participation: A study on Bargi area of Jabalpur”. At Bargi village having a practical exposure with the field study when I interacted with the residents of that village I experienced that at field it is bit difficult to hold the major guidelines. I experienced the basic and most important principle of field study that before conducting any survey with the respondents we have to make people feel comfortable so that they share the most accurate and authentic data with the interviewer. The other key factors I experienced in this Field Study while conducting a field survey there is a possibility that respondents can turn the Researcher to some other direction but we have to be very careful that we should not get diverted with the basic aim. Thus we have to be very cautious with our basic objective when interacting with people.

Collecting Data at Bargi Village

The Field Study offered me the opportunity to understand that there is a very thin line of error and if we would not hold our human nature strongly we would make certain mistakes unintentionally. Thus it is very important to be careful and follow the guidelines while conducting Field Study. The overall experience with the Field Study was amazing and I leant the problems that we can encounter while interviewing respondents.Thus the field study conducted by us offered a great experience to understand the real problems and key concepts of Data collection method.


Thursday, April 7, 2016

फेसबुक स्टेटस से होता सोशल कम्पैरिजन


सूचना प्रद्योगिकी की क्रांति से  सोशल मीडिया ऐसे सशक्त माध्यम के रूप विकसित हुआ कि हमारे दैनिक जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया | इस विकसित तकनीकी ने सोशल मीडिया क्रांति को जन्म देकर अभिव्यक्ति की प्रक्रिया को नयी दिशा एवं आयाम दिया है. आज शायद ही हम अपनी डेली लाइफ की कल्पना सोशल मीडिया के बिना कर सकते है और बेशक पिछले कुछ वर्षों में देश में सोशल मीडिया का क्रेज बहुत अधिक बढ़ा है. आईएएमएआई तथा आईएमआरबी की अप्रैल 2015 की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार भारत में 143 मिलियन सोशल मीडिया उपयोगकर्ता हैं. आईएएमएआई तथा आईएमआरबी द्वारा प्रस्तुत की गयी संयुक्त रिपोर्ट से ये भी स्पष्ट हुआ की भारत में कुछ लोगों के इन्टरनेट उपयोग का प्रमुख कारण भी सोशल मीडिया से स्वयं को कनेक्ट रखना है. इनमें ऐसे भी बहुत से लोग है जिन्होंने इन्टरनेट का पहली बार प्रयोग सिर्फ सोशल मीडिया से कनेक्ट होने के लिए किया. रिपोर्ट के अनुसार फेसबुक 96 प्रतिशत उपयोगकर्ताओं के साथ अग्रणी सोशल मीडिया वेबसाइट बनकर उभरा हैं. बेशक फेसबुक ने सूचनाओं के आदान- प्रदान में अहम् भूमिका निभायी है और साथ ही साथ अपने फेसबुक मित्रों से कनेक्टेड रहने के अवसर भी दिए है. आज शायद ही हमारा ऐसा एक भी दिन हो जो फेसबुक पर लॉग इन किये बिना गुजरता हो. लेकिन क्या आप जानते है की फेसबुक पर अधिक समय बिताना अनजाने में कभी कभी हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकता है. ह्यूस्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता माई-ली स्टीरस के अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार फेसबुक पर अधिक एक्टिव यूज़र डिप्रेशन की भावना से ग्रसित हो सकते है. दरसल कुछ उपयोगकर्ता जो फेसबुक पर बहुत अधिक समय लॉग इन रहते है उनके अन्दर सोशल कम्पैरिज़न की भावना पैदा हो सकती है. वह अपने मित्रों के स्टेटस से उनकी उपलब्धियों और उनके जीवन में चल रही गतिविधियों की तुलना स्वयं की ज़िन्दगी से करने लगते हैं. और जब अपनी ज़िन्दगी की गतिविधियों को उनकी ज़िन्दगी की गतिविधियों से बेहतर नहीं पाते है तो निराश महसूस करने लगते है. और इस ऑनलाइन सोशल कम्पैरिज़न की भावना के कारण अवसाद की भावनाओं का शिकार हो जाते है. वास्तव में ऐसा अक्सर इसलिए होता है क्योंकि हम अपनी दूसरों से तुलना करने के आवेग को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं. हालांकि व्यक्ति की सामाजिक तुलना की अवधारणा नयी नहीं है और वास्तव में 1950 में ही लोगों की सामाजिक तुलना की भावना के संदर्भ में अध्ययन किया जा चूका है, पर आज सोशल मीडिया के विस्तार ने ऑनलाइन सोशल कम्पैरिज़न को जन्म दे दिया है. सोशल मीडिया पर युवा ज्यादा एक्टिव रहते है इस वजह से अधिकतर युवा और कॉलेज के छात्र ही ऐसे डिप्रेशन का शिकार होते है. दरसल युवाओं में अक्सर ऐसा पाया गया है कि वह अपने फेसबुक स्टेटस पर अधिकतर अपनी ज़िन्दगी की अच्छी चीज़ों को पोस्ट करते है जबकि ज़िन्दगी में होने वाली परेशानियों को फेसबुक पर लोगों के साथ कम शेयर करते है.
जब लोग हॉलिडे वेकेशन की कूल पिक्चर या लाइफ इवेंट को फेसबुक पर पोस्ट करते है तो कई बार लोग सोशल कम्पैरिज़न करते है और जब उन्हें इस तरह के फेसबुक पोस्ट्स से अपनी ज़िन्दगी नीरस लगती है तो उदास महसूस करने लगते है. इस तरह जब वह दूसरों की ज़िन्दगी की गतिविधियों को अपनी ज़िन्दगी की गतिविधियों से बेहतर पाते है तो फेसबुक डिप्रेशन का शिकार हो सकते है. यही नहीं जानकार मानते है की सोशल मीडिया पर नंबर गेम भी बहुत आम हो चूका है. लाईक की संख्या हो या फेसबुक फ्रेंड लिस्ट में फ्रेंड्स की संख्या इसकी भी तुलना की जाती है. साइबर बुलींग और अन्य तरह के ऑनलाइन उत्पीड़न भी लोगों में फेसबुक डिप्रेशन की भावना जगा सकती है.
बरहाल एक्सपर्ट्स मानते है की फेसबुक पर सोशल कम्पैरिज़न उचित नहीं है क्योंकि अक्सर ये पाया गया है की अधिकतर लोग फेसबुक पर सिर्फ अपनी ज़िन्दगी की अच्छी बातों को शेयर करते है और ज़िन्दगी की तकलीफों को बहुत कम व्यक्त करते है. इस कारण सोशल नेटवर्किंग साइट्स से किसी की ज़िन्दगी की वास्तविक गतिविधियों को समझना सही नहीं  है. इस वजह से ये आवश्यक है की फेसबुक का प्रयोग सकारात्मक और लाभकारी ढंग से किया जाए. इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स का उपयोग हमेशा पॉजिटिव ढंग से करना चाहिए ताकि किसी भी तरह के डिप्रेशन का शिकार न हो. 

विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) क्षेत्रों में महिलाओं का वर्चस्व

 https://pratipakshsamvad.com/women-dominate-the-science-technology-engineering-and-mathematics-stem-areas/  (अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस)  डॉ ...