Dr Pallavi Mishra is working as an Associate Professor. NET/JRF qualified.Founder of PAcademi.com

My photo
This is Dr Pallavi Mishra, working as an Associate Professor

Saturday, July 25, 2015

स्मार्टफ़ोन दे रहे ई-कॉमर्स को रफ़्तार

वैश्वीकरण और सूचना प्रौद्योगिकी की प्रगति से चली डिजिटल क्रांति की बयार में भारत का डिजिटल कॉमर्स भी तेजी से विकसित हो रहा है | ये प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किये गए डिजिटल इंडिया मिशन को मजबूती देगा | पिछले दो दशकों में इंटरनेट और मोबाइल फोन की क्रांति ने देश में डिजिटल कॉमर्स के लिए दरवाज़े खोल दिए है | ई-कॉमर्स ने दुनिया भर में अपनी मजबूत स्थिति बना ली है और हाल के वर्षों में भारत में भी इसका तेज़ी से प्रसार हुआ है |  भारत के इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन और इंटरनेट मोबाइल रिसर्च ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार 2014 में भारत में ई-कामर्स क्षेत्र में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है | इस रिपोर्ट के मुताबिक दिसंबर 2014 के अंत में भारतीय डिजिटल कॉमर्स बाज़ार में 53% की दर से वृद्धि, 81,525 करोड़ रूपए पर दर्ज की गई और अनुमान लगाया गया की 2015 के अंत तक 33% की दर से वृद्धि होगी जो लगभग एक लाख करोड़ रुपए के आकड़ें को पार कर जायेगा |  वर्तमान में भारत चीन के ई-कॉमर्स बाज़ार से काफी पीछे है लेकिन जिस तेज़ी से भारत में डिजिटल कॉमर्स विकसित हो रहा है ऐसा प्रतीत होता है भारत में डिजिटल कॉमर्स का भविष्य सुनेहरा है |
भारत में तेजी से बढ़ रहे स्मार्ट फ़ोन उपभोगताओं ने डिजिटल कॉमर्स कंपनियों को अपना बाज़ार फ़ैलाने की राह दे दी है | नेटवर्किंग समाधान की दिग्गज कंपनी सिस्को की रिपोर्ट बताती है की आज भारत, विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा स्मार्टफोन बाजार बन गया है |  और आने वाले चार साल में स्मार्ट फ़ोन उपभोगताओं की संख्या में कई गुना वृद्धि होने की उम्मीद की गयी है | साथ ही भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाला इंटरनेट बाजार भी बन गया है | अमेरिका के फर्म विजुअल नेटवर्किंग इंडेक्स के वैश्विक मोबाइल डेटा यातायात पूर्वानुमान के अनुसार  भारत में 2019 तक 18 लाख से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता होंगे | भारत में बढ़ते स्मार्टफ़ोन और टेबलेट उपभोक्ताओं ने, ई-कॉमर्स बाज़ार के विकास में विशेष योगदान दिया है | 2013 में, केवल 10% मोबाइल उपयोगकर्ता स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल करते थे और केवल 5% लोग मोबाइल का प्रयोग लेन-देन करने के लिए करते थे | भारत में 2014 में लगभग 41% लोगों ने ई-कॉमर्स के लिए मोबाइल फ़ोन का प्रयोग किया | आज स्मार्टफ़ोन, टेबलेट तेजी से डिजिटल कॉमर्स के लिए पीसी की जगह ले रहा है | स्नैपडील पर लगभग 75% आर्डर और फ्लिपकार्ट पर लगभग 70% आर्डर मोबाइल के माध्यम से किया जा रहा है | विभिन्न ई-कॉमर्स कंपनिया मोबाइल पर उनके एप्लीकेशन डाउनलोड करके उससे खरीदारी करने पर छूट दे रही है |
घर बैठे मोबाइल रिचार्ज करना हो या यात्रा के लिए टिकेट बुक करना, दूर बैठे किसी अपने को गिफ्ट देना हो या मूवी टिकेट बुक करना आज डिजिटल कॉमर्स ने ज़िन्दगी बहुत आसान कर दी है | घंटों कतार में खड़े होकर टिकेट बुक करने की तकलीफ से छुटकारा दिलाया है | आज एक क्लिक पर कहीं से भी कुछ भी मंगाया जा सकता है | अगर आप पढने के बहुत शौक़ीन है तो घर बैठे बस एक क्लिक पर अपनी पसंदीदा किताब माँगा सकते है | पहले घंटों एक दूकान से दुसरे दूकान पर जाकर देखना पड़ता था की कहाँ क्या अच्छा और सबसे सस्ता मिल रहा है पर आज एक क्लिक करके सारी जानकारी हासिल की जा सकती है  | ई-कॉमर्स एक डिजिटल बाज़ार का जाल है जो अपने अंतर्गत बहुत सारी सुविधाएं उपलब्ध कराता है, इस कारण लोग इसकी तरफ आकर्षित हुए है | डिजिटल कॉमर्स के अंतर्गत बढ़ता ऑनलाइन बाजार ट्रेवल्स, टिकेट बुकिंग सेवा, होटल आरक्षण, वैवाहिक सेवा, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट, फैशन से सम्बंधित सामान या कोई अन्य सामान या सेवा, ग्राहकों को सब आसानी से उपलब्ध करा रहा है | जस्ट डायल नामक डिजिटल कंपनी लोगों को घर बैठे हर तरह की जानकारी उपलब्ध कराता है, अगर आप नए शहर में है तो आपको इससे आसानी से पता चल जायेगा कहाँ क्या उपलब्ध होगा | आज की भागती दौड़ती ज़िन्दगी को डिजिटल कॉमर्स आसान कर रही है | भारत में बहुत सारी ई-कॉमर्स कंपनीयों जैसे फ्लिपकार्ट, स्नैपडीलपेटीएम्, कुइककर, इनमोबी, बुक माय शो, ओलाकैब, मेय्न्त्रा, जबोंग, ओएलएक्स, अमेज़न आदि ने लोगों को प्रभावित किया और ये करोड़ों रूपए कमाने में कामयाब भी हुए है | ई-कॉमर्स की डिलवरी पर नकदी की सुविधा भारत के लोगों की सबसे पसंदीदा भुगतान विधि है, इस कारण भारत में लगभग 75% लोग ऐसे ही भुगतान करते है | वर्तमान में ई-कॉमर्स कंपनियां भारत में मैन्यूफैक्चरिंग की वास्तविक लागत से भी कम कीमत पर वस्तुओं की बिक्री कर रही हैं, लोगों का डिजिटल कॉमर्स के प्रति बढ़ते उत्साह का ये भी एक महतवपूर्ण कारण हो सकता है |  
हाल के वर्षों में संचार और व्यापार की दुनिया में हुए उल्लेखनीय परिवर्तन से हुए डिजिटल कॉमर्स का विकास भारत के लिए काफी अनोखा है। भारत में बड़े पैमाने पर मोबाइल इंटरनेट कनेक्टिविटी और स्मार्ट फोन के प्रवेश से, तेजी से फैल रहा ई-कॉमर्स इस डिजिटल दुनिया में अत्याधुनिकता की सफलता का प्रतिनिधित्व कर रहा है | विश्व बैंक के अनुसार 2017 तक भारत की जीडीपी में 8 फीसदी की दर से विकास होगा | और इससे आगे आने वाले समय में भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में शुमार होगा और विश्व बाजार में भारत प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरेगा । भारत में तेजी से विकास की ओर अग्रसर ई-कॉमर्स भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान कर रहा है | आज भारत में बड़ी कंपनी हो या छोटी दुकानें सभी डिजिटल कॉमर्स की दुनिया में कदम रख रहे है ताकि अपना ग्लोबल बाज़ार बना सके | आज स्मार्टफ़ोन और टेबलेट ने डिजिटल कॉमर्स की राह भारत में  आसान कर दी है | ये डिजिटल इंडिया के सपने को साकार करने नयी दिशा और भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करेगा |







Wednesday, July 22, 2015

कुछ यूँ ही ...




  

ज़िन्दगी तेरी नौकरी ने ऐसा थकाया ..

जैसे बंधुवा मजदूर हो बनाया ..

तूने गुलामी के फंदों में ऐसे जकरा ..

ये रूह, आत्मा थकी थकी लगने लगी   ..

तेरी बंदिशों में घुटन सी महसूस होती है ...

हर फैसले लेती तू  ..

हम सोचते कुछ और कहीं और मोड़ देती तू ..

तेरी मर्ज़ी पर चले जा रहे है ..

अपने अस्तित्व की तलाश में ..

तेरी राहों में खो गए इतना...

भूल गए अभी बाकी बहुत काम है  ...

करनी खुद की पहचान है ...

तलाशना एक मुकाम है ...

करनी है तुझसे दोस्ती इतनी गहरी ...

की तेरे दिए ज़ख्म भी मुस्कुराए ...

और हम फिर हंसकर  ...

ज़िन्दगी के शतरंज का खेल खेल जाए ..


Friday, July 17, 2015

ऐ ज़िन्दगी पहले तुम ऐसी तो ना थी





वो खुला मैदान, घर का आंगन या छत जो बच्चों के खेलने का अड्डा हुआ करता आज सुना सुना सा लगता है, जहां जब बच्चों की फौज जमा हुआ करती थी तो बहुत निराले खेल खेला करते थे | बीते ज़माने के खेल आज की टेक्नोलॉजी की दुनिया में कहीं गुम हो गए है, डिजिटल होती दुनिया के खेल भी डिजिटल हो गए है | उस ज़माने में बच्चे कॉलोनी में एक झुंड बनाकर ऐसे खेल खेलते थे जो वाकई स्फूर्तिदायक एवं मानसिक फिटनेस के लिहाज़ से बहुत अच्छे होते थे | लंगड़ी, लट्टू, छुपम-छुपाई, खो-खो, गिल्ली डंडा, पकड़म पकड़ाई, चैन चैन इन खेलों के नाम सुनकर आपको आपका बचपन तो जरूर याद आ गया होगा | गिल्ली डंडा का खेल एक कला से कम नहीं था, इसके लिए बहुत अभ्यास और एकाग्रता की आवश्यकता होती है | ये खेल बच्चों को सावधान रहना सीखाता था क्योंकि इस खेल में अगर सावधान न रहा जाये तो इससे खुद को और दूसरों को भी चोट लग सकती है। अब वो कंचे के खेल भी नहीं दीखते, जो बच्चों को खेल खेल में एक कंचे से दुसरे कंचे पर निशाना लगाते हुए एकाग्र होकर अपने लक्ष्य की ओर ध्यान केन्द्रित करना सीखता था | भारत का पारंपरिक खेल सात पत्थर या सतोलिया खेल भी बच्चों में लोकप्रिय खेल हुआ करता था जिसमें दो टीम, सात चिपटे पत्थर और एक गेंद होती है | इस खेल में दोनों टीम में बराबर संख्या में खिलाड़ी होते थे, इनमें से एक टीम का खिलाड़ी गेंद से पत्थरों को गिराता है और फिर उसकी टीम के खिलाड़ीयों को उन पत्थरों को फिर से जमाना होता था, इस बीच दूसरी टीम के ख़िलाड़ी गेंद से पहली टीम के खिलाडियों को जो पत्थरों को जमाने की कोशिश कर रहे होते, उनको पीछे से मारना होता था | यदि पत्थर ज़माने वाली टीम गेंद लगने से पहले पत्थर लगाकर 'सतोलिया' बोल देती तो उसकी कोशिश सफल मानी जाती और अगर वह गेंद सतोलिया बोलने से पहले टीम के किसी सदस्य को लग जाती तो टीम आउट हो जाती | ये खेल भी उस ज़माने का एक निराला खेल था जो अपनी टीम को जीताने के लिए एकजुट होकर कोशिश करने का पाठ सीखाता था | खो खो भी बीते ज़माने के बच्चों का पसंदीदा खेल होता था इसमें प्रत्येक टीम में 12 खिलाड़ी होते हैं, लेकिन केवल 9 खिलाड़ी ही मैदान में रहते है । ये खेल एक टीम में रहकर खेलने की भावना जगाता है | आज बड़े बड़े कारपोरेशन में करमचारियों को एक टीम में रहकर कुशलता से काम करने की ट्रेनिंग दी जाती है | कबड्डी का खेल भी एक टीम खेल है जिसमें एक खिलाड़ी प्रतिद्वंदी के पाले में जाकर अपनी व्यक्तिगत प्रतिभा का प्रदर्शन करता है | ये खेल भी टीम भावना, टीम एकजुटता और टीम की रणनीति सीखाने में सहायक होता था | कॉलोनी में बच्चों का झुंड जब चोर-पुलिस का खेल खेलता था तो उनके अन्दर हमेशा गलत काम करने पर सजा मिलने के डर की भावना रहती थी | वह हमारे पारंपरिक खेल इतने ख़ास थे जो खेल खेल में हमें ऐसी सीख दे जाते थे जो हमारे जीवन के बाद के चरणों में बहुत काम आते थे |  बचपन बहुत मासूम होता है, खेल खेल में सीखा गया पाठ बाद में हर कदम पर काम आता है | पर आज के बदलते खेल ने बच्चों को एकाकी कर दिया है उनके बचपन के दोस्त अब बेजुबान खिलौने हो गए है । आज के बच्चे इलेक्ट्रॉनिक गेम्स ज़्यादा पसंद करते है  जिनसे अकेले ही खेला जा सकता है | म्यूज़िकल खिलौने, रोबोट्स,  इलेक्ट्रॉनिक गाड़ी और बाईक ये सब आजकल के बच्चों का पसंदीदा खेल है | उन्हें वीडियो गेम खेलना या फेसबुक पर चैट करना ज्यादा पसंद होता है | आज का बचपन भी हाइटेक है उनका आकर्षण गैजेट्स की तरफ ज्यादा होता है | आज के बच्चों की दुनिया टीवी रिमोट, मोबाइल, इंटरनेट और कार्टून चैनल्स के इर्द गिर्द घुमती है |  उनके हीरो सुपरमैन, बैटमैन या डोरेमॉन होते हैं जिनके पास जादुई ताकत होती है । उसकी दुनिया में रोबोट्स, रेसिंग कारें, प्ले स्टेशन  और विडियो गेम्स की ख़ास जगह है | लूडो, सांप-सीढ़ी, कैरम, शतरंज जैसे खेल जो बच्चों में टीम की भावना जगाते थे कहीं गुम हो गए है, जिससे बच्चे नियमों पर चलना, धीरज रखना और एक-दूसरे की मदद करना भी सीखते थे । इस तरह के खेलों से उन्हें हार से निपटने का हौसला भी मिलता था |

Tuesday, July 14, 2015

आइये जाने- डिजिटल लाकर क्या है

डिजिटल इंडिया मिशन के आगाज़ के साथ कई परियोजनाओं का भी आगाज़ हुआ जिसके तहत भारत सरकार ने सभी देशवासियों को डिजिटल लाकर उपलब्ध कराने की बात कही | डिजिटल लाकर ऐसा तंत्र है जहां संबंधित व्यक्ति सभी प्रमाण पत्र तथा अन्य दस्तावेजों को सुरक्षित रख सकता है | डिजिटल लाकर एक ऑनलाइन फाइल या डिजिटल मीडिया है जो भंडारण की देता सेवा है | ये अपने अंतर्गत सभी तरह की फ़ाइलों जैसे संगीत, वीडियो, सिनेमा, खेल और अन्य मीडिया को भी एक साथ सुरक्षित रखने में सक्षम है |  ये सभी महत्वपूर्ण व्यक्तिगत दस्तावेजों को अपलोड करने तथा उसकी डिजिटल प्रतियां को संग्रहीत करने के लिए, सरकार की ओर से सभी भारतीय निवासियों को मुफ्त में दिया जाने वाला सुरक्षित भंडार है। इस व्यवस्था की सुविधा से भविष्य में, विभिन्न सरकारी विभाग और अन्य एजेंसिया सीधे उपयोगकर्ता के लाकर में दस्तावेज या प्रमाण पत्र भेज सकेंगे | सरकार द्वारा डिजिटल लाकर उपलब्ध कराने की घोषणा करना अपने आप में ही एक साहसिक कदम है, जो व्यक्तिगत दस्तावेजों के भंडारण और निजी दस्तावेजों को सीधे प्राप्त करने की सुविधा देता है | इसके अंतर्गत प्रत्येक भारत निवासी जिसके पास आधार संख्या है, उसको डिजिटल लाकर की सुविधा उपलब्ध होगी | अभी तक भारत में लोग अपने भौतिक रूप में उपलब्ध दस्तावेजों का ही उपयोग किया करते है क्यूंकि किसी भी कार्यालय में प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने के लिए, पहले उसे अधिकारियों द्वारा सत्यापन कराना आवश्यक होता है इस कारण उसे भौतिक रूप में ही रखा जाता है | पर डिजिटल लॉकर इस सत्यापन तथा पुस्तिका सत्यापन की प्रक्रियाओं को समाप्त करने में सक्षम होगा | यह सभी उपयोगकर्ताओं को आसानी से किसी भी कंप्यूटर से अपने सरकारी कागजात का उपयोग करने की अनुमति देता है | ये  भौतिक दस्तावेजों के साथ होने वाली कुछ परेशानियों को खत्म करने की क्षमता रखता है | इससे प्रमाण पत्रों की भौतिक प्रतियों की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, इस कारण ये आवश्यक दस्तावेजों की हानि या गुम हो जाने से भी बचाएगा |
जाहिर है की, डिजिटल लाकर निजी फाइलों के लिए बैंक लॉकर्स की तरह की ही सुरक्षा देता है और ये माना जा रहा है की इसका भविष्य भौतिक लॉकर्स की तुलना में अधिक सुनेहरा होगा | इससे अधिकारियों का काम दस्तावेजों को जारी करने तथा प्राप्त करने दोनों में ही आसान हो जायेगा |  इन्टरनेट की सुविधा द्वारा डिजिटल लाकर में संरक्षित दस्तावेजो तथा जरूरी फाइलों को कभी भी  डाउनलोड किया जा सकता है तथा कहीं भी भेजा जा सकता है | विशेषज्ञों का मानना है डिजिटल लाकर देशवासियों को बहुत सारी सुविधाओं को उपलब्ध कराने में कारगर साबित हो सकता है |  ये डिजिटल प्रमाण पत्रों की सुविधा देगा जिससे अधिकारी फर्जी दस्तावेजों को आसानी से पहचान सकेंगे | ये सरकारी काम आसान करेगा और इससे लोगों को भी राहत मिलेगी, इसकी सुविधा से लंबी कतारों में घंटों परेशान होने से या दस्तावेजों की जांच के लिए लम्बी प्रक्रियाओं से उन्हें छुटकारा मिलेगा |
भारत का कोई भी निवासी जिसके पास आधार संख्या है डिजिटल लाकर की सुविधा का लाभ ले सकता है | सरकार ने https://digitallocker.gov.in/ वेब पेज बनाया है जिसमें रजिस्ट्रेशन करके इसका उपयोग किया जा सकता है |  प्रारंभ में डिजिटल भंडारण के लिए 10 एमबी की जगह सीमित होगी जिसे बाद में 1 जीबी तक बढाया  जा सकता है |  इसमें फ़ाइलों को जेपीजी, पीडीएफ, बीएमपी, पीएनजी, जीआईएअफ स्वरूपों में अपलोड किया जा सकता है | हालांकि डिजिटल लाकर की इतनी सारी विशेषताएं है, लेकिन अब प्रशन ये उठता है की ये डिजिटल लाकर जो व्यक्तिगत जानकारी का भंडारण, कितना सुरक्षित होगा | इसे साइबर क्राइम के खतरे से कैसे सुरक्षित किया जा सकता है | ऐसे संवेदनशील एवं व्यक्तिगत दस्तेवाजों को सुपर हैकरों की नज़र से कैसे बचाया जायेगा, इस पर विचार करना अत्यंत आवश्यक है |


Saturday, July 11, 2015

सुकून की बारिश

                 सुकून की बारिश       

झूमते बादलों में अंगराई लेता मन...
सहलाती ठंडी हवाएं देती रही सुकून ..
मौसम के आगोश में..
कुछ इस तरह बैठे ..
सुकून की बारिश में भींगते रहे ..
अरमानों का काफिला शांत हो गया ..  
इस इठलाते बलखाते बादलों को ...
टकटकी भर निहारती रही ..
ना जाने क्या ढूंढ रही थी मैं ..
जब बारिश की बूंदे गिरी..
ऐसे लगा खुद से प्यार हो गया
ये सुकून की बारिश थी  ...
खिली लबों पर मुस्कान ..
ख्वाहिशो से परे.. हर मंज़र से दूर ..
हो रहे थी खुद से रूबरू ...
सुकून की बारिश का था असर...
पलकों के सिरहाने में बसे आसूं भी भींग गए ...
इस बारिश ने मन के सागर में ऐसा डूबोया ...
की दिल में बहता तूफ़ान भी शांत हो गया  ...
बारिश बहा ले गया सारे आसूं...  
दिल को हुआ सुकून  ..





Tuesday, July 7, 2015

भारत में निरासजनक है मजदूरों की दशा

भारत में निरासजनक है मजदूरों की दशा




हजारों मजदूर जिन्होंने ना जाने कितनों के आशियाने बनाये उनके पास खुद की छत नहीं है और जो ना जाने कितनो के अन्नदाता है उनकी ज़िन्दगी कितनी कठिन है, इसका अंदाज़ा हाल ही में भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत किये गए आज़ाद भारत की आर्थिक, सामाजिक और जाति आधारित जनगणना से लगाया जा सकता है | आज़ादी के 67 साल बाद भी भारत में मजदूरों की दशा में बहुत ज्यादा सुधार नहीं हो पाया है | अन्य देश की तुलना में भारत में मजदूरों की दिशा असंगठित है, इस कारण उनकी मासिक आय बहुत कम है | भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था बहुत कमजोर है, आकड़ों के अनुसार गाँव में निवास करने वाले लोगों में से केवल 10 प्रतिशत ही वेतनभोगी है | इस जनगणना ने साफ़ कर दिया है की मजदूरों की माली हालत बहुत खराब है | आज भी हमारे देश के मजदूरों के पास पक्के मकान नहीं है उन्हें रात खुले आकाश के नीचे या कच्चे झोपोड़ों में ही बितानी पड़ती है और इसलिए मौसम की बेरुखी इन्हें हमेशा सताती रहती है | देश के 10.69 करोड़ लोग अभावग्रस्त है इस निराशाजनक जनगणना से ग्रामीण भारत की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर प्रतीत होती है | भारत में अगर न्यूनतम मजदूरी की बात की जाए तो यहां न्यूनतम मजदूरी की दर अलग- अलग प्रदेशों में अलग अलग है । मनरेगा योजना के तहत यूपीए सरकार ने मजदूरों को सौ रुपए प्रतिदिन के हिसाब से सौ दिन के काम का प्रावधान रखा है । 2014 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार सभी राज्यों को न्यूनतम तय मजदूरी देने का निर्देश दिया गया था और तब तत्कालीन केंद्र सरकार ने 119 रुपए देना तय किया था | मनरेगा में न्यूनतम मजदूरी की दर 156 से 236 रुपए है | दुनिया के अन्य देशों की तुलना में भारत की न्यूनतम मजदूरी की दर बहुत कम है | संविधान बनने से पहले का है, जो अभी भी लागू है। संविधान बनने से पूर्व भारत में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 लागू किया गया था जिसमें कोई सुधार नहीं हुए हैं | इस अधिनियम के तहत भी हर राज्य की न्यूनतम मजदूरी की दर अलग-अलग है | भारत में मजदूरों की दशा विचारनीय है जिसका सुधार बहुत जरूरी है |इस जनगणना रिपोर्ट ने कुछ अच्छी बातें भी सामने लायी है जो दर्शाती है की गांवो में महिलाओं की स्थिति काफी हद तक सुधरी है, लगभग 68.96 लाख परिवारों में मुखिया महिलाएं है जिनकी मासिक आय 10 हज़ार है | और ग्रामीण भारत में 68.35 परिवार ऐसे है जिनके पास मोबाइल फ़ोन है, जो प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का भारत को डिजिटल इंडिया बनाने की सोच को मजबूती देगी | 1932 के बाद जब 80 साल बाद ये जनगणना हुई तो देश की सामाजिक, आर्थिक स्थिति में हुए बदलाव खुलकर सामने आये | और पता लगा की भारत के विकास की राह में अभी बहुत से पत्थर है, देश की प्रगति के लिए जिनको हटाना बहुत आवश्यक होगा | सरकार इसके लिए प्रयासरत है और इसके तहत कई योजनायें भी बनायीं जा रही है जिनमें से 2020 तक सभी को रहने के लिए आवास उपलब्ध करना अहम् है जो इन गांवो की तस्वीर बदलने में सहायक साबित हो सकती है | लेकिन इसके लिए आवश्यक है की लोग सरकार की इन योजनाओं के प्रति जागरूक रहे और इनका लाभ ले सके | प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का भारत के सुनेहरा भविष्य का सपना चुनौतीयों भरा है जब तक इन मजदूरों की आर्थिक और सामाजिक दशा में सुधार नहीं होगा भारत का पूर्ण विकास संभव नहीं होगा |

विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) क्षेत्रों में महिलाओं का वर्चस्व

 https://pratipakshsamvad.com/women-dominate-the-science-technology-engineering-and-mathematics-stem-areas/  (अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस)  डॉ ...