ज़िन्दगी तेरी नौकरी
ने ऐसा थकाया ..
जैसे बंधुवा मजदूर हो
बनाया ..
तूने गुलामी के फंदों
में ऐसे जकरा ..
ये रूह, आत्मा थकी
थकी लगने लगी ..
तेरी बंदिशों में
घुटन सी महसूस होती है ...
हर फैसले लेती तू ..
हम सोचते कुछ और कहीं
और मोड़ देती तू ..
तेरी मर्ज़ी पर चले
जा रहे है ..
अपने अस्तित्व की
तलाश में ..
तेरी राहों में खो
गए इतना...
भूल गए अभी बाकी
बहुत काम है ...
करनी खुद की पहचान
है ...
तलाशना एक मुकाम है
...
करनी है तुझसे
दोस्ती इतनी गहरी ...
की तेरे दिए ज़ख्म भी
मुस्कुराए ...
और हम फिर हंसकर ...
ज़िन्दगी के शतरंज का
खेल खेल जाए ..
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