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Friday, July 17, 2015

ऐ ज़िन्दगी पहले तुम ऐसी तो ना थी





वो खुला मैदान, घर का आंगन या छत जो बच्चों के खेलने का अड्डा हुआ करता आज सुना सुना सा लगता है, जहां जब बच्चों की फौज जमा हुआ करती थी तो बहुत निराले खेल खेला करते थे | बीते ज़माने के खेल आज की टेक्नोलॉजी की दुनिया में कहीं गुम हो गए है, डिजिटल होती दुनिया के खेल भी डिजिटल हो गए है | उस ज़माने में बच्चे कॉलोनी में एक झुंड बनाकर ऐसे खेल खेलते थे जो वाकई स्फूर्तिदायक एवं मानसिक फिटनेस के लिहाज़ से बहुत अच्छे होते थे | लंगड़ी, लट्टू, छुपम-छुपाई, खो-खो, गिल्ली डंडा, पकड़म पकड़ाई, चैन चैन इन खेलों के नाम सुनकर आपको आपका बचपन तो जरूर याद आ गया होगा | गिल्ली डंडा का खेल एक कला से कम नहीं था, इसके लिए बहुत अभ्यास और एकाग्रता की आवश्यकता होती है | ये खेल बच्चों को सावधान रहना सीखाता था क्योंकि इस खेल में अगर सावधान न रहा जाये तो इससे खुद को और दूसरों को भी चोट लग सकती है। अब वो कंचे के खेल भी नहीं दीखते, जो बच्चों को खेल खेल में एक कंचे से दुसरे कंचे पर निशाना लगाते हुए एकाग्र होकर अपने लक्ष्य की ओर ध्यान केन्द्रित करना सीखता था | भारत का पारंपरिक खेल सात पत्थर या सतोलिया खेल भी बच्चों में लोकप्रिय खेल हुआ करता था जिसमें दो टीम, सात चिपटे पत्थर और एक गेंद होती है | इस खेल में दोनों टीम में बराबर संख्या में खिलाड़ी होते थे, इनमें से एक टीम का खिलाड़ी गेंद से पत्थरों को गिराता है और फिर उसकी टीम के खिलाड़ीयों को उन पत्थरों को फिर से जमाना होता था, इस बीच दूसरी टीम के ख़िलाड़ी गेंद से पहली टीम के खिलाडियों को जो पत्थरों को जमाने की कोशिश कर रहे होते, उनको पीछे से मारना होता था | यदि पत्थर ज़माने वाली टीम गेंद लगने से पहले पत्थर लगाकर 'सतोलिया' बोल देती तो उसकी कोशिश सफल मानी जाती और अगर वह गेंद सतोलिया बोलने से पहले टीम के किसी सदस्य को लग जाती तो टीम आउट हो जाती | ये खेल भी उस ज़माने का एक निराला खेल था जो अपनी टीम को जीताने के लिए एकजुट होकर कोशिश करने का पाठ सीखाता था | खो खो भी बीते ज़माने के बच्चों का पसंदीदा खेल होता था इसमें प्रत्येक टीम में 12 खिलाड़ी होते हैं, लेकिन केवल 9 खिलाड़ी ही मैदान में रहते है । ये खेल एक टीम में रहकर खेलने की भावना जगाता है | आज बड़े बड़े कारपोरेशन में करमचारियों को एक टीम में रहकर कुशलता से काम करने की ट्रेनिंग दी जाती है | कबड्डी का खेल भी एक टीम खेल है जिसमें एक खिलाड़ी प्रतिद्वंदी के पाले में जाकर अपनी व्यक्तिगत प्रतिभा का प्रदर्शन करता है | ये खेल भी टीम भावना, टीम एकजुटता और टीम की रणनीति सीखाने में सहायक होता था | कॉलोनी में बच्चों का झुंड जब चोर-पुलिस का खेल खेलता था तो उनके अन्दर हमेशा गलत काम करने पर सजा मिलने के डर की भावना रहती थी | वह हमारे पारंपरिक खेल इतने ख़ास थे जो खेल खेल में हमें ऐसी सीख दे जाते थे जो हमारे जीवन के बाद के चरणों में बहुत काम आते थे |  बचपन बहुत मासूम होता है, खेल खेल में सीखा गया पाठ बाद में हर कदम पर काम आता है | पर आज के बदलते खेल ने बच्चों को एकाकी कर दिया है उनके बचपन के दोस्त अब बेजुबान खिलौने हो गए है । आज के बच्चे इलेक्ट्रॉनिक गेम्स ज़्यादा पसंद करते है  जिनसे अकेले ही खेला जा सकता है | म्यूज़िकल खिलौने, रोबोट्स,  इलेक्ट्रॉनिक गाड़ी और बाईक ये सब आजकल के बच्चों का पसंदीदा खेल है | उन्हें वीडियो गेम खेलना या फेसबुक पर चैट करना ज्यादा पसंद होता है | आज का बचपन भी हाइटेक है उनका आकर्षण गैजेट्स की तरफ ज्यादा होता है | आज के बच्चों की दुनिया टीवी रिमोट, मोबाइल, इंटरनेट और कार्टून चैनल्स के इर्द गिर्द घुमती है |  उनके हीरो सुपरमैन, बैटमैन या डोरेमॉन होते हैं जिनके पास जादुई ताकत होती है । उसकी दुनिया में रोबोट्स, रेसिंग कारें, प्ले स्टेशन  और विडियो गेम्स की ख़ास जगह है | लूडो, सांप-सीढ़ी, कैरम, शतरंज जैसे खेल जो बच्चों में टीम की भावना जगाते थे कहीं गुम हो गए है, जिससे बच्चे नियमों पर चलना, धीरज रखना और एक-दूसरे की मदद करना भी सीखते थे । इस तरह के खेलों से उन्हें हार से निपटने का हौसला भी मिलता था |

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