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Thursday, April 7, 2016

फेसबुक स्टेटस से होता सोशल कम्पैरिजन


सूचना प्रद्योगिकी की क्रांति से  सोशल मीडिया ऐसे सशक्त माध्यम के रूप विकसित हुआ कि हमारे दैनिक जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया | इस विकसित तकनीकी ने सोशल मीडिया क्रांति को जन्म देकर अभिव्यक्ति की प्रक्रिया को नयी दिशा एवं आयाम दिया है. आज शायद ही हम अपनी डेली लाइफ की कल्पना सोशल मीडिया के बिना कर सकते है और बेशक पिछले कुछ वर्षों में देश में सोशल मीडिया का क्रेज बहुत अधिक बढ़ा है. आईएएमएआई तथा आईएमआरबी की अप्रैल 2015 की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार भारत में 143 मिलियन सोशल मीडिया उपयोगकर्ता हैं. आईएएमएआई तथा आईएमआरबी द्वारा प्रस्तुत की गयी संयुक्त रिपोर्ट से ये भी स्पष्ट हुआ की भारत में कुछ लोगों के इन्टरनेट उपयोग का प्रमुख कारण भी सोशल मीडिया से स्वयं को कनेक्ट रखना है. इनमें ऐसे भी बहुत से लोग है जिन्होंने इन्टरनेट का पहली बार प्रयोग सिर्फ सोशल मीडिया से कनेक्ट होने के लिए किया. रिपोर्ट के अनुसार फेसबुक 96 प्रतिशत उपयोगकर्ताओं के साथ अग्रणी सोशल मीडिया वेबसाइट बनकर उभरा हैं. बेशक फेसबुक ने सूचनाओं के आदान- प्रदान में अहम् भूमिका निभायी है और साथ ही साथ अपने फेसबुक मित्रों से कनेक्टेड रहने के अवसर भी दिए है. आज शायद ही हमारा ऐसा एक भी दिन हो जो फेसबुक पर लॉग इन किये बिना गुजरता हो. लेकिन क्या आप जानते है की फेसबुक पर अधिक समय बिताना अनजाने में कभी कभी हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकता है. ह्यूस्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता माई-ली स्टीरस के अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार फेसबुक पर अधिक एक्टिव यूज़र डिप्रेशन की भावना से ग्रसित हो सकते है. दरसल कुछ उपयोगकर्ता जो फेसबुक पर बहुत अधिक समय लॉग इन रहते है उनके अन्दर सोशल कम्पैरिज़न की भावना पैदा हो सकती है. वह अपने मित्रों के स्टेटस से उनकी उपलब्धियों और उनके जीवन में चल रही गतिविधियों की तुलना स्वयं की ज़िन्दगी से करने लगते हैं. और जब अपनी ज़िन्दगी की गतिविधियों को उनकी ज़िन्दगी की गतिविधियों से बेहतर नहीं पाते है तो निराश महसूस करने लगते है. और इस ऑनलाइन सोशल कम्पैरिज़न की भावना के कारण अवसाद की भावनाओं का शिकार हो जाते है. वास्तव में ऐसा अक्सर इसलिए होता है क्योंकि हम अपनी दूसरों से तुलना करने के आवेग को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं. हालांकि व्यक्ति की सामाजिक तुलना की अवधारणा नयी नहीं है और वास्तव में 1950 में ही लोगों की सामाजिक तुलना की भावना के संदर्भ में अध्ययन किया जा चूका है, पर आज सोशल मीडिया के विस्तार ने ऑनलाइन सोशल कम्पैरिज़न को जन्म दे दिया है. सोशल मीडिया पर युवा ज्यादा एक्टिव रहते है इस वजह से अधिकतर युवा और कॉलेज के छात्र ही ऐसे डिप्रेशन का शिकार होते है. दरसल युवाओं में अक्सर ऐसा पाया गया है कि वह अपने फेसबुक स्टेटस पर अधिकतर अपनी ज़िन्दगी की अच्छी चीज़ों को पोस्ट करते है जबकि ज़िन्दगी में होने वाली परेशानियों को फेसबुक पर लोगों के साथ कम शेयर करते है.
जब लोग हॉलिडे वेकेशन की कूल पिक्चर या लाइफ इवेंट को फेसबुक पर पोस्ट करते है तो कई बार लोग सोशल कम्पैरिज़न करते है और जब उन्हें इस तरह के फेसबुक पोस्ट्स से अपनी ज़िन्दगी नीरस लगती है तो उदास महसूस करने लगते है. इस तरह जब वह दूसरों की ज़िन्दगी की गतिविधियों को अपनी ज़िन्दगी की गतिविधियों से बेहतर पाते है तो फेसबुक डिप्रेशन का शिकार हो सकते है. यही नहीं जानकार मानते है की सोशल मीडिया पर नंबर गेम भी बहुत आम हो चूका है. लाईक की संख्या हो या फेसबुक फ्रेंड लिस्ट में फ्रेंड्स की संख्या इसकी भी तुलना की जाती है. साइबर बुलींग और अन्य तरह के ऑनलाइन उत्पीड़न भी लोगों में फेसबुक डिप्रेशन की भावना जगा सकती है.
बरहाल एक्सपर्ट्स मानते है की फेसबुक पर सोशल कम्पैरिज़न उचित नहीं है क्योंकि अक्सर ये पाया गया है की अधिकतर लोग फेसबुक पर सिर्फ अपनी ज़िन्दगी की अच्छी बातों को शेयर करते है और ज़िन्दगी की तकलीफों को बहुत कम व्यक्त करते है. इस कारण सोशल नेटवर्किंग साइट्स से किसी की ज़िन्दगी की वास्तविक गतिविधियों को समझना सही नहीं  है. इस वजह से ये आवश्यक है की फेसबुक का प्रयोग सकारात्मक और लाभकारी ढंग से किया जाए. इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स का उपयोग हमेशा पॉजिटिव ढंग से करना चाहिए ताकि किसी भी तरह के डिप्रेशन का शिकार न हो. 

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