संपूर्ण विश्व जहां वैश्विक महामारी कोरोना से पीड़ित है, वही भारत न सिर्फ कोरोना बल्कि कई लाचारी से भी पीड़ित है | यहां कोरोना वायरस ने जिस तरह का संकट पैदा किया है वो बहुत ज्यादा घातक है | इसने प्रवासी मजदूरों के हालात गंभीर कर दिए है | कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन ने घर से हज़ारों किलोमीटर दूर फसें प्रवासी मजदूरों कि ज़िन्दगी दूभर कर दी है | दैनिक वेतन पर कार्य करने वाले मजदूरों के लिए एक-एक दिन शहर में गुज़ारना भारी पड़ रहा है इसलिए वो पैदल ही हजारों किलोमीटर का सफ़र तय कर रहे है | ज्ञात हो कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद में मालगाड़ी से 16 मजदूरों के कटने का मंजर दिल को दहला देता है | बिखरी रोटियां, खामोश पटरियां मजदूर की मजबूरी की कहानी बयां कर रही है | लॉकडाउन के चलते ये सभी मजदूर अपने घर जाने के लिए 40 किलोमीटर चलकर आए थे | थकान ज्यादा लगी, तो पटरी पर ही सो गए थे लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनकी ज़िन्दगी का सफर उसी रोटी के साथ खत्म हो जाएगा जिसके लिए वो घर से मीलों दूर चले गये थे |
ये वही रोटी है जिसकी तलाश में मजदूर अपने घरों से हजारों किलोमीटर दूर का सफ़र तय करते है | इसी माह की पहली तारिख को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया गया, आये दिन मजदूरों की बेबसी की कहानी बीते अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस कि अलग दास्तान को बयान कर रही है | आये दिन हो रहे हादसों से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कोरोना ने तो नहीं लेकिन प्रवासी मजदूरों कि मजबूरी ने उनकी जान जोखिम में डाल दी है | ज्ञात हो कि इससे पहले जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन की घोषणा की तो घर लौटने के लिए बेताब प्रवासी मजदूर पैदल कि घर कि ओर निकल पड़े और सड़क हादसे का शिकार हो गये | उत्तर प्रदेश के रहने वाले, दिल्ली में कार्यरत प्रवासी मजदूर अपने घर पहुँचने के प्रयासों के दौरान अपने जान गंवा बैठे थे | खबरों के अनुसार कम से कम 17 प्रवासी मजदूरों और उनके परिवार के सदस्यों - जिनमें पांच बच्चे भी शामिल थे, सड़क हादसे में मारे गये थे | अन्य समाचार रिपोर्टों के अनुसार, दिल्ली में एक रेस्तरां में एक होम डिलीवरी कार्यकर्ता के रूप में कार्यरत एक 39 वर्षीय व्यक्ति की 28 मार्च को मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में जाते समय मृत्यु हो गई थी | इन मौतों के अलावा, सेव लाइफ फाउंडेशन द्वारा जारी एक रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि कोरोनोवायरस लॉकडाउन के दौरान घर लौटने की कोशिश के कर रहे 42 प्रवासी श्रमिक भी सड़क हादसे के कारण मौत का शिकार हो गये ।
इस लॉकडाउन की अवधि के दौरान भारत भर में सड़क दुर्घटनाओं में कुल 140 लोगों की मौत हो गयी | लॉकडाउन के दौडान सड़क हादसे की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 30% मौतें पैदल चलने वाले श्रमिकों की थीं | इसके अलावा दो बिहार के मोतिहारी के रहने वाले प्रवासी मजदूर जो नेपाल में कार्यरत थे, कोरोनोवायरस महामारी के मद्देनजर लॉकडाउन के कारण साइकिल पर ही अपने घर का रुख कर लिया था | नेपाल में तीव्र मोड़ पर बातचीत के दौरान खाई में गिरने से उनकी मृत्यु हो गई थी |
बरहाल प्रवासी मजदूरों की दशा दयनीय बनी हुई है, देश में कोरोना के चलते लगाया गया लॉकडाउन का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव प्रवासी मजदूरों कि ज़िन्दगी पर हुआ है । दरअसल जब उन्हें ये पता चला की जिन फैक्ट्रियों और काम धंधे से उनकी रोजी-रोटी का जुगाड़ होता था, वह लॉकडाउन के चलते बंद हो गयी है, तो वे घर लौटने को छटपटाने लगे | ट्रेन-बस यात्रा के सभी मार्ग बंद होने के कारण और घर में पर्याप्त राशन नहीं होने की वजह से अपने घर पहुंचने के रास्ते तलाशने लगे | दरअसल ये मजदूर जिन ठिकानों में रहते थे उसका किराया भरना नामुमकिन लगने लगा तो ये मजदूर पैदल ही अपने घरों की ओर निकल पड़े और ये उनकी ज़िन्दगी का आखिरी सफ़र बन गया | हालांकि सरकार आश्वाषण दे रही है पर उनका सब्र टूटने लगा तो पैदल ही घर की ओर निकल पड़े, पैरों में छाले है, सर पर बोझ है, चिलचिलाती धुप है और हजारों किलोमीटर का सफ़र तय करना है | मजदूर कोरोना से ज्यादा लाचारी का शिकार है, उनकी बेबसी कि सिसकती तस्वीर उनके दर्द को बयान कर रही है |
ये वही रोटी है जिसकी तलाश में मजदूर अपने घरों से हजारों किलोमीटर दूर का सफ़र तय करते है | इसी माह की पहली तारिख को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया गया, आये दिन मजदूरों की बेबसी की कहानी बीते अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस कि अलग दास्तान को बयान कर रही है | आये दिन हो रहे हादसों से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कोरोना ने तो नहीं लेकिन प्रवासी मजदूरों कि मजबूरी ने उनकी जान जोखिम में डाल दी है | ज्ञात हो कि इससे पहले जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन की घोषणा की तो घर लौटने के लिए बेताब प्रवासी मजदूर पैदल कि घर कि ओर निकल पड़े और सड़क हादसे का शिकार हो गये | उत्तर प्रदेश के रहने वाले, दिल्ली में कार्यरत प्रवासी मजदूर अपने घर पहुँचने के प्रयासों के दौरान अपने जान गंवा बैठे थे | खबरों के अनुसार कम से कम 17 प्रवासी मजदूरों और उनके परिवार के सदस्यों - जिनमें पांच बच्चे भी शामिल थे, सड़क हादसे में मारे गये थे | अन्य समाचार रिपोर्टों के अनुसार, दिल्ली में एक रेस्तरां में एक होम डिलीवरी कार्यकर्ता के रूप में कार्यरत एक 39 वर्षीय व्यक्ति की 28 मार्च को मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में जाते समय मृत्यु हो गई थी | इन मौतों के अलावा, सेव लाइफ फाउंडेशन द्वारा जारी एक रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि कोरोनोवायरस लॉकडाउन के दौरान घर लौटने की कोशिश के कर रहे 42 प्रवासी श्रमिक भी सड़क हादसे के कारण मौत का शिकार हो गये ।
इस लॉकडाउन की अवधि के दौरान भारत भर में सड़क दुर्घटनाओं में कुल 140 लोगों की मौत हो गयी | लॉकडाउन के दौडान सड़क हादसे की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 30% मौतें पैदल चलने वाले श्रमिकों की थीं | इसके अलावा दो बिहार के मोतिहारी के रहने वाले प्रवासी मजदूर जो नेपाल में कार्यरत थे, कोरोनोवायरस महामारी के मद्देनजर लॉकडाउन के कारण साइकिल पर ही अपने घर का रुख कर लिया था | नेपाल में तीव्र मोड़ पर बातचीत के दौरान खाई में गिरने से उनकी मृत्यु हो गई थी |
बरहाल प्रवासी मजदूरों की दशा दयनीय बनी हुई है, देश में कोरोना के चलते लगाया गया लॉकडाउन का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव प्रवासी मजदूरों कि ज़िन्दगी पर हुआ है । दरअसल जब उन्हें ये पता चला की जिन फैक्ट्रियों और काम धंधे से उनकी रोजी-रोटी का जुगाड़ होता था, वह लॉकडाउन के चलते बंद हो गयी है, तो वे घर लौटने को छटपटाने लगे | ट्रेन-बस यात्रा के सभी मार्ग बंद होने के कारण और घर में पर्याप्त राशन नहीं होने की वजह से अपने घर पहुंचने के रास्ते तलाशने लगे | दरअसल ये मजदूर जिन ठिकानों में रहते थे उसका किराया भरना नामुमकिन लगने लगा तो ये मजदूर पैदल ही अपने घरों की ओर निकल पड़े और ये उनकी ज़िन्दगी का आखिरी सफ़र बन गया | हालांकि सरकार आश्वाषण दे रही है पर उनका सब्र टूटने लगा तो पैदल ही घर की ओर निकल पड़े, पैरों में छाले है, सर पर बोझ है, चिलचिलाती धुप है और हजारों किलोमीटर का सफ़र तय करना है | मजदूर कोरोना से ज्यादा लाचारी का शिकार है, उनकी बेबसी कि सिसकती तस्वीर उनके दर्द को बयान कर रही है |