बीते साल जनवरी से दिसम्बर के सफ़र में...
कई फ़लसफ़े, कई मुकाम देखें ...
रोड पर पसरे सन्नाटे थे, मीलों तय कर रहे सफ़र के छालें थे ...
लम्हे बिखरे थे, दर्द और ख़ामोशी के लॉकडाउन में थे ...
बीते साल ने आइना दिखा दिया..
अमीर-गरीब, छोटे-बड़े का फांसला मिटा दिया ...
नए साल में नयी तारिख, नया सवेरा, नयी उम्मीदें हैं ..
पिछले साल से मिले कई ज्ञान हैं ...
और चुनौतियों से भरा अपना आसमान हैं ...
काली रातों के सिरहाने में तकदीर के फ़साने हैं ...
नए संकल्प में, नए इरादे हैं, स्वयं से किये वादे हैं...
डूब रही कश्ती संभालना हैं..
किसी की मुस्कराहट के लिए ज़िन्दगी संवारना हैं ..
किसी के दर्द को बांटना हैं, किसी की ख़ुशी को निखारना हैं ..
ज़िन्दगी में बचे लम्हों को किसी की ख़ुशी के लिए गुज़ारना हैं ..
किसी के होठों की मुस्कान बन जाऊं...
किसी के अंधेरे में, प्रकाश बन जाऊं...
किसी की हौसलों कि, उड़ान बन जाऊं ..
किसी के मंजिल का रास्ता बन जाऊं...
किसी के ख्व़ाब को मुकम्मल कर जाऊं ..
किसी की मायूसी में, उम्मीद की किरण बन जाऊं...
किसी कि तन्हाई में, महफ़िल सजाऊँ ...
नए साल का यही संकल्प हैं..
मैं इंसानियत का नाम बन जाऊं, स्वयं में मानवता की लौ जलाऊँ ....