हाल ही में भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने पुरुषों की तरह महिलाओं को सेना में 'कमांड पोस्ट' देने पर अहम फ़ैसला दिया. अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट के फ़ैसले को बरक़रार रखते हुए कहा है कि महिलाएं भी पुरुषों की तरह सेना में कमांड पोस्ट संभाल सकती हैं. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि सेना की सभी महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन मिलना चाहिए. महिलाओं को जहां एक ओर हर क्षेत्र में स्थान प्राप्त हो रहा है वही दूसरी ओर आज शायद ही कोई दिन गुजरता है जब अखबार में महिला अपराध कि खबर पढने को नहीं मिलती हो. किसी महिला के साथ हुए बलात्कार के बारे में सुर्खियामिलती है तो कभी उसके उत्पीड़न कि खबर सामने आती है. इस तरह कि खबरें दिन-प्रतिदिन पुनर्विचार, रुग्णता कि भावना पैदा करती है. एनसीआरबी कि ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर घंटे महिलाओं के खिलाफ 39 अपराध दर्ज किए गए.| इन आकड़ों से ये स्पष्ट होता है कि देश में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा उठाये जा रहे हरसंभव कदम निष्फल साबित हो रहे हैं. आएदिन देश में आ रही रेप कि खबरे, समाज में महिलाओं के उत्थान के लिए की जाने वाली हर कोशिश पर पानी फेरती नज़र आ रही है. जहां एक ओर महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए सरकार निरंतर प्रयासरत है वही दूसरी ओर इस तरह के हादसे समाज में हो रहे आर्थिक, सामाजिक एवं अन्य प्रकार के विकास को भी खोखला कर दे रही है. देश में आयेदिन हो रही इस तरह कि शर्मसार घटनाएं चींखकर पूँछ रही है देश किस ओर अग्रसर है? क्या वाकई हम महिला दिवस मनाने के लिए तैयार है? क्या हम विकास कि ओर बढ़ रहे है? या अभी भी हम वही खड़े है जहां महिलाओं को स्वतंत्रता जैसा मूलभूत अधिकार भी शायद प्राप्त नहीं हुआ है. महिलाओं के खिलाफ बढ़ रही हिंसा महत्वपूर्ण सामाजिक तंत्रों पर प्रश्नचिन्ह है और बलात्कार जैसी लिंग आधारित घटनाएं अभी भी देश में पुरुषों और महिलाओं के बीच व्याप्त असमानता को दर्शाती है. भारत में ही नहीं अपितु अधिकांश देशों में लिंग आधारित हिंसा एक गंभीर दीर्घकालिक समस्या है. हर साल हजारों महिलाओं के साथ बलात्कार और मनोवैज्ञानिक रूप से दुर्व्यवहार होता है. महिलाओं के मौलिक मानवाधिकारों के खिलाफ हो रहे हमलों के कारण महिलाएं अप्रत्याशित स्थिति में रहती हैं. बलात्कार महिलाओं के स्वास्थ्य, गरिमा सुरक्षा और स्वायत्तता के साथ समझौता है. यौन उत्पीड़न, बलात्कार, घरेलू हिंसा, मानसिक उत्पीड़न और महिलाओं की तस्करी, मानव अधिकारों के उल्लंघन की एक विस्तृत श्रृंखला को स्पष्ट करती है. इस तरह की हिंसाओं को जाति वर्ग, क्षेत्र या धर्म की सीमाओं से ऊपर रखकर देखा जाना चाहिए. बलात्कारियों का कोई धर्म और जाति नहीं होती उनके सिर्फ एक अपराधी कि तरह देखा जाना चाहिए और इस तरह के अपराधों को राजनीती से दूर रखना जरूरी है ताकि मानव अधिकारों का हनन न हो. जहां एक ओर भारतीय महिलाएं देश विदेश में नाम रोशन कर रही है वही दूसरी ओर उनके साथ इस तरह कि घटनाएं समाज में उनको मिलने वाली स्वतंत्र पहचान, गरिमा, आत्म सम्मान और गौरव सभी पर सवाल खड़े कर रही है. बरहाल देश के सामाजिक तंत्र को दुरुस्त करने के लिए कानूनी सहायता नेटवर्क मजबूत करने के साथ साथ दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना भी अत्यंत आवयशक है. महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे अपराधों के बीच महिला सशक्तिकरण भी एक छलावा सा ही प्रतीत होता है. महिला सशक्तिकरण का मूल अर्थ यह है कि उसे भी समानता से जीने कि स्वतंत्रता प्राप्त हो और वह अपने जीवन का प्रभारी बनने में सक्षम हो.
Dr Pallavi Mishra is working as an Associate Professor. NET/JRF qualified.Founder of PAcademi.com
- Dr Pallavi Mishra
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