Dr Pallavi Mishra is working as an Associate Professor. NET/JRF qualified.Founder of PAcademi.com
- Dr Pallavi Mishra
- This is Dr Pallavi Mishra, working as an Associate Professor
Saturday, March 8, 2014
“जीने
दो” गीत का विमोचन
अन्तराष्ट्रीय महिला
दिवस पर “जीने दो” गीत का विमोचन प्रोफेसर निशि पाण्डेय, डॉ. मुकुल श्रीवास्तव
एवं सुश्री अर्शाना अजमत द्वारा किया गया | गीत के बोल पल्लवी मिश्रा
द्वारा लिखा गया है जिसको अंकित जैसवाल ने अपनी खूबसूरत आवाज़ दी है और मयंक
तिवारी ने अपने मनोरम
संगीत से सजाया है |
Saturday, March 1, 2014
सोशल मीडिया पर एडवरटाइजिंग पॉलिटिक्स
सोलहवी लोकसभा के
लिए बीछी सियासी बिसात पर अपना सिक्का ज़माने के लिए सभी पार्टियां पुरजोर कोशिश कर
रही है| सभी पार्टियां स्वयं को काबिज़ कराने के लिए
इलेक्शन कैंपेन और पार्टी एडवरटाइजिंग में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है | सूचना प्रद्योगिकी के इस युग में चुनाव प्रचार
लगातार हाईटेक होता जा रहा है और पहली बार लोकसभा चुनाव की एडवरटाइजिंग सोशल मीडिया पर की जा रही है | दरसल भारत में इंटरनेट सेवा प्रयोक्ताओं की
संख्या लगातार बढ़ रही है,
इन्टरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की
रिपोर्ट के अनुसार भारत में इंटरनेट यूजर की संख्या दस करोड़ को पार कर गई है और
इस कारण इस बार चुनाव प्रचार का असली रंग सोशल मीडिया पर दिख रहा है। लगभग
सभी पार्टियां युवा पीढ़ी और कामकाजी लोगों से जुड़ने के लिए तथा अपनी पार्टी को
बेहतर साबित करने के लिए सोशल मीडिया पर एडवरटाइजिंग पॉलिटिक्स कर रही हैं । इस
तरीके ने प्रचार का खर्च तो कम किया ही है, साथ ही
प्रत्याशियों और मतदाताओं के बीच पारस्परिक संवाद की राह भी खोल दी है। जहां बीजेपी सोशल मीडिया चुनावी कैंपेन के लिए
ऐडवर्टाइजिंग प्रफेशनल की एक क्रीम टीम से सोशल मीडिया विज्ञापन करा रही है वही कांग्रेस भी कई बड़ी पब्लिक रिलेशन कंपनियों को
अपने चुनावी प्रचार की ज़िम्मेदारी सौप रही है | आम आदमी
पार्टी भी सोशल मीडिया से लोगों को प्रभावित करने की जुगत में तत्पर्य है | फेसबुक, ट्विटर, ई-मेल, एसएमएस, व्हाट्स एप, बीबीएम, यू-ट्यूब जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स से सभी
राजनैतिक दल स्वयं को सरलता से लोगों से जोड़ रहे है । ऐसे में सभी पार्टियों
ने सोशल मीडिया सेल बनाया है ताकि जनता को लुभाया जा सके और ज्यादा से
ज्यादा लोगों से वोट डालने की अपील भी की जा सके |
यही नहीं, कम
पैसों में चुनाव लड़ने के मकसद से भी इन ऑनलाइन माध्यमों का इस्तेमाल किया जा रहा
है। फेसबुक और ट्विटर पर भी लोगों से समर्थन की अपील की जा रही है। प्रत्याशियों
का प्रोफाइल बनाकर उनकी तस्वीर समेत तमाम जानकारियां दी जा रही हैं। ये बताने की
कोशिश की जा रही है कि उनकी पार्टी दूसरे पार्टियों से कैसे अलग हैं। जनता के
सवालों के जवाब दिए जा रहे हैं और घोषणा पत्र बनाने में लोगों के सुझाव भी मांगे
जा रहे हैं। दरअसल पार्टियों के सामने युवा पीढ़ी या फिर कामकाजी
लोगों से संवाद का इससे बेहतर कोई तरीका नहीं है। जाहिर है, सोशल मीडिया ने एक माध्यम के तौर पर अपनी
उपयोगिता साबित कर दी है और जिस तरह से सोशल मीडिया का प्रभाव बढा है, उसने राजनैतिक दलों को लोगों से जुड़ना आसान कर
दिया है। इसने लोगों को अपने नेताओं के बारे में बेहतर समझने का मौका भी दिया है।
बाजार में सस्ते स्मार्टफोन आने के बाद सोशल मीडिया के प्रति लोगों की रुचि बढ़ी है
और एक सर्वे के मुताबिक इस वर्ष देश में इसकी संख्या 10 करोड़ को पार कर गयी है ।
दरसल स्मार्टफोन उपयोग करने वाले अधिकतर युवा हैं और राजनीतिक पार्टियां इन युवा
उपयोगकर्ताओं तक पहुंचने के लिए मोबाइल एप का सहारा लिया जा रहा हैं। भाजपा ने तो
मोदी रन के बाद इंडिया 272+ नाम से एप भी लांच किया है, जिसके जरिये पार्टी अधिक से अधिक स्मार्टफोन यूजर
तक पहुंच सके | कांग्रेस भी मतदाता को पार्टी से जोड़ने के लिए
सोशल मीडिया का सहारा ले रही है और इस माध्यम से हर वर्ग के मतदाता तक अपनी बात, नीति, सोच, विचारधारा, कार्यक्रम, वायदे आदि पहुंचाने की कोशिश की जा रही है | देश के चुनावों में ऐसा पहली बार हो रहा है।
दरअसल, इंटरनेट और सोशल मीडिया के आने के बाद हमारे बीच
एक बहुत बड़ा बदलाव आया है। जिसका नतीजा ये है कि आज विभिन्न पार्टियां लोगों से सीधे
सवाल पूछ रहे हैं और उनसे उनके सुझाव मांग रहे है | हाल ये
है कि जनसभा करने के बजाए उम्मीदवार मतदाताओं को घर बैठे इंटरनेट के जरिए संबोधित
कर रहे हैं। जाहिर है कि प्रचार का तरीका पूरा बदल चुका है और ये माना जा रहा है
की पिछले दस साल में एक बड़ा बदलाव है |
Wednesday, February 19, 2014
अप्रतक्ष्य है सलामी हमला
भारत में इंटरनेट सेवा प्रयोक्ताओं की संख्या लगातार बढ़ रही है, इन्टरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार भारत में इंटरनेट यूजर की संख्या दस करोड़ को पार कर गई है । बरहाल जहां इन्टरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है वही साइबर अपराध की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। यह एक ग्लोबल समस्या बन कर उभरा है और हर गुजरते दिन के साथ साइबर स्पेस पर हमले और हैकिंग की मामले बढ़ते जा रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार देश में साइबर संबंधी अपराधों की घटनाओं में करीब 50 फीसदी की बढ़ोत्तरी हर साल हो रही है। रिपोर्ट के अनुसार बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं में पिछले साल तक यह दूसरा सबसे कॉमन अपराध बन कर उभरा है | भारत में साइबर हमले का मामला खासा जटिल होता जा रहा है और आये दिन हो रहे साइबर वित्तीय अपराध के मामले सामने आ रहे है, लेकिन साइबर क्राइम के तहत होने वाले सलामी हमले में वित्तीय धोखाधड़ी से लोग बेखबर रहते है | दरसल सलामी हमले में होने वाला वित्तीय परिवर्तन इतना महत्वहीन होता है की किसी को इसकी भनक भी नहीं लगती | एक सलामी हमले में गुप्त रूप से डिजिटल डाटा का दुष्प्रयोग कर वित्तीय धोखाधड़ी को अंजाम दिया जाता है | आमतौर पर अपराधी इसमें एक प्रणाली द्वारा वित्तीय खातों से एक समय में पैसे या संसाधनों की एक छोटी चोरी करता है | इस मामले में गुपचुप तरीके से आर्थिक अपराध को अंजाम दिया जाता है और इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग या इलेक्ट्रॉनिक डाटा का अनुरेखण करके गुप्त रूप से वित्तीय अपराध होता है | दरसल सलामी हमला मामूली हमलों की एक श्रृंखला है जिसमें संपत्ति की एक छोटी राशि, लगभग सारहीन मात्रा को व्यवस्थित ढंग से चोरी की जाती है | ये इतना अप्रतक्ष्य होता है की शायद ही कोई खाता धारक इस अनधिकृत डेबिट को नोटिस करता है | सामान्यता इस तरह के सलामी हमले में खाता धारक के खाते से 2 से 5 रुपये की एक अल्प राशि काट ली जाती है और इस तरह की छोटी राशि पर खाता धारक कभी ध्यान नहीं देता है | इसमें ट्रोजन हॉर्स तकनीक का प्रयोग करके स्वचालित रूप से वित्तीय डाटा का दुरूपयोग किया जाता है | आमतौर पर, हर बार चोरी की राशि इतनी कम होती है कि सलामी धोखाधड़ी का पीड़ित इसे कभी भी नोटिस नहीं करता है और इस तरह अलग-अलग खाते से ये अल्प राशि की चोरी से एक विशाल रकम पैदा की जाती है | भारत में तीन चौथाई इंटरनेट उपभोक्ता किसी न किसी तरह साइबर अपराध का शिकार होते हैं और इस कारण देश साइबर क्राइम से बुरी तरह प्रभावित माना जा सकता है |
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