Dr Pallavi Mishra is working as an Associate Professor. NET/JRF qualified.Founder of PAcademi.com

My photo
This is Dr Pallavi Mishra, working as an Associate Professor

Wednesday, June 23, 2021

कोरोना नियंत्रण के लिए आवश्यक: प्रभावी हेल्थ कम्युनिकेशन मॉडल

 भारतीय स्वास्थ्य नीति और स्वास्थ्य संचार ने देश में पनप रहे रोगों के बोझ को कम करने में विशेष भूमिका निभाई है। लेकिन, वैश्विक महामारी कोरोना के कारण संपूर्ण मानवता संकट के दौर से गुजरी रही है। ऐसे में स्वास्थ्य संचार की संज्ञानात्मक और भावनात्मक रूप से भूमिका बढ़ जाती है। बेशक, पिछले कुछ दशकों में स्वास्थ्य संचार सेवाओं ने भारत की स्थिति को सुधारने में योगदान दिया, लेकिन कोरोना ने नई चुनौती पैदा कर दी है। कोरोना के टीके को लेकर फैल रही भ्रांतियों


ने स्पष्ट कर दिया है कि अभी इस महामारी के प्रति हम ना तो सजग हुए हैं ना ही जागरूक। ऐसी स्थिति में कोरोना से बचाव केसंदेशों को गांव -गांव तक पहुंचाने की आवश्यकता है। दरअसल, अभी भी भारत में सेहत को लेकर स्थिति ठीक नहीं है। इसमें सुधार के लिए प्रभावी कदम उठाने होंगे। हालांकि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार स्वास्थ्य नीति में प्रगति के लिए प्रयासरत हैं और इसके लिए विश्व पटल पर सराहना भी मिल रही है, लेकिन इसे अभी पर्याप्त नहीं माना जा सकता। कोविड-19 ने भारत को स्वास्थ्य नीति के पुनरुत्थान का संकेत दिया है।दुनिया के तमाम विकसित देश अपने नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए लगातार नए अनुसंधान कर रहे हैं। उसी तरह भारत में भी स्वास्थ्य संचार की प्रक्रिया जारी है। अखबार, रेडियो, टीवी, नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से साक्षरता दर बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत में हेल्थ कम्युनिकेशन की स्वास्थ्य सुधार में अहम भूमिका रही है। उदाहरण केतौर पर पोलियो उन्मूलन की सफलता हासिल करने में हेल्थ कम्युनिकेशन का प्रयास सराहीय रहा है। स्वास्थ्य संचार ने लोगों के जीवन को खासा प्रभावित किया है। इस कोरोना  काल में सरकार अपनी तरफ से स्वास्थ्य संचार को मजबूत बनाने की कोशिश कर रही है। इस डिजिटल युग में मोबाइल संदेशों, आरोग्य सेतु एप, ब्लॉग्स, सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स से लोगों तक स्वस्थ्य संबंधी जानकारी दी जा रही है।ऐसे में स्वास्थ्य बीमा योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना तथा अन्य स्वास्थ्य संबंधी जानकारियों को नागरिकों तक प्रसार करना बहुत ही अहम हो गया है। ताकि, नागरिक सरकार की इन सुविधाओं का लाभ ले सकें। हालांकि आजादी के बाद से मलेरिया, टीबी, कुष्ठ रोग, उच्च मातृ एवं शिशु मृत्यु दर और एचआईवी के बारे में लोगों को जानकारी देने की सरकार की कोशिश सराहनीय रही है, लेकिन ताजे आकड़ों के अनुसार आज भी मातृ एवं शिशु मृत्यु दर एचआईवी, स्वाइन फ्लू और अन्य संक्रामक रोग भारत की स्वास्थ्य प्रणाली पर भारी तनाव बनाए हुए हैं। ऐसे में कोरोना वायरस ने स्थिति को अधिक गंभीर बना दिया है। देश में लगातार चेतावनियों के बावजूद भारत की कोरोना की रैंकिंग में गिरावट आई है या वृद्धि हुई है इसे ताजा हालात से समझा जा सकता है। हाल के आंकड़ों से स्पष्ट हो गया है कि स्वास्थ्य के प्रति हम कितने बेपरवाह हैं। इसलिए देश के ग्रामीण तथा शहरी दोनों ही नागरिकों को स्वस्थ्य जीवन और आवश्यक पोषण के प्रति जानकारी देना जरूरी है। सरकार हेल्थ कम्युनिकेशन के द्वारा समाज को स्वास्थय के प्रति सूचना और ज्ञान उपलब्ध कराने के साथ-साथ सामूहिक रूप से स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने के लिए सचेत कर रही है। स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने के लिए सही पोषण, साफ पेयजल, आसपास साफ. सफाई रखना तथा अन्य सामाजिक निर्धारकों को भी समझना जरूरी है। बढ़ती जनसंख्या ने साफ कर दिया है कि देश को स्वास्थ्य संचार के जरिए जनसंख्या स्थिरीकरण, लिंग भेद की मानसिकता के प्रति उनकी सोच बदलना बहुत आवश्यक हो गया है।

Tuesday, January 12, 2021

मैं इंसानियत का नाम बन जाऊं



बीते साल जनवरी से दिसम्बर के सफ़र में...

कई फ़लसफ़े, कई मुकाम देखें ...

रोड पर पसरे सन्नाटे थे, मीलों तय कर रहे सफ़र के छालें थे ...

लम्हे बिखरे थे, दर्द और ख़ामोशी के लॉकडाउन में थे ...

बीते साल ने आइना दिखा दिया..

अमीर-गरीब, छोटे-बड़े का फांसला मिटा दिया ...

नए साल में नयी तारिख, नया सवेरा, नयी उम्मीदें हैं ..

पिछले साल से मिले कई ज्ञान हैं ...

और चुनौतियों से भरा अपना आसमान हैं ...

काली रातों के सिरहाने में तकदीर के फ़साने हैं ...

नए संकल्प में, नए इरादे हैं, स्वयं से किये वादे हैं...

डूब रही कश्ती संभालना हैं..

किसी की मुस्कराहट के लिए ज़िन्दगी संवारना हैं ..

किसी के दर्द को बांटना हैं, किसी की ख़ुशी को निखारना हैं  ..

ज़िन्दगी में बचे लम्हों को किसी की ख़ुशी के लिए गुज़ारना हैं ..

किसी के होठों की मुस्कान बन जाऊं...

किसी के अंधेरे में, प्रकाश बन जाऊं...

किसी की हौसलों कि, उड़ान बन जाऊं ..

किसी के मंजिल का रास्ता बन जाऊं...

किसी के ख्व़ाब को मुकम्मल कर जाऊं ..

किसी की मायूसी में, उम्मीद की किरण बन जाऊं...

किसी कि तन्हाई में, महफ़िल सजाऊँ ...

नए साल का यही संकल्प हैं..

मैं इंसानियत का नाम बन जाऊं, स्वयं में मानवता की लौ जलाऊँ ....

 

Friday, January 8, 2021

अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में भारत को प्रतिनिधितव किया: डॉ. पल्लवी मिश्रा


इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो रहे अनुसंधान पर केन्द्रित बहु-विषयक अनुसंधान संसथान ने इंस्टीट्यूट फॉर इंजीनियरिंग रिसर्च एंड पब्लिकेशन, ए.पी. सी महालक्ष्मी कॉलेज फॉर विमेन एमआई कॉलेज, मालदीव एवीडी कॉलेज और साइरिक्स कॉलेज, मालदीव के सह-सहियोजन से तीसरे अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन का आयोजन 26-27 दिसंबर, 2020 को मालदीव में हुआ. सम्मलेन में  इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले सभी नवीनतम अवसरों, कोरोना से उत्पन्न चुनौतियों, शैक्षिक क्षेत्र में आये बदलाव, विज्ञान के विकास तथा विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे परिवर्तन पर चर्चा हुई. डॉ. इब्राहिम ओ. हमद, गणितीय विश्लेषण में सहायक एसोसिएट प्रोफेसर, गणित विभाग, कॉलेज ऑफ साइंस, सलाहदीन विश्वविद्यालय एरबिल (हवलदार) - कुर्दिस्तान क्षेत्र, इराक ने सम्मलेन में कहा गणित के महत्व को कभी कम नहीं किया जा सकता है. मेरा मानना है कि गणित पूरे ब्रह्मांड की भाषा है. दरअसल, यह अपनी खुद की एक भाषा है. सम्मलेन को संबोधित करते हुए डॉ. एन्ड्रेस पगतपतन, कैंपस एडमिनिस्ट्रेटर, पूर्वी समर राज्य विश्वविद्यालय, (गुईआन कैम्पस) ने कहा कि विचारों के आदान-प्रदान और नवाचारों के प्रसार के लिए ध्वनि प्लेटफार्मों की स्थापना के लिए शोधकर्ताओं, वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं, के बीच सहयोग की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि  मेरा मानना है कि यह लिंचपिन है जो विशेष रूप से विज्ञान और प्रौद्योगिकी के मोर्चे और हमारी दुनिया को सामान्य रूप से आगे बढ़ाएगा. इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में सिंगापुर,  अमेरिका, कनाडा, भारत, श्रीलंका, मलेशिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड, वियतनाम, फिलीपींस, यूएई, कतर, सऊदी अरब, ईरान, इराक, रूस के शिक्षकों, छात्र-छात्राओं और शोधकर्ताओं भाग लिया. सम्मलेन में विभिन्न देश के शिक्षकों, छात्र-छात्राओं और शोधकर्ताओं ने अपने रिसर्च पेपर को प्रस्तुत किया. डॉ. पल्लवी मिश्रा, एमिटी स्कूल ऑफ़ कम्युनिकेशन, जयपुर, राजस्थान ने इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में भारत को प्रतिनिधितव किया. डॉ. पल्लवी मिश्रा को उनके "नेटनोग्राफ़िक विश्लेषण: सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से किशोरावस्था में साइबर-मनोविज्ञान को समझना" शीर्षक रिसर्च पेपर के लिए "बेस्ट रिसर्च पेपर" से सम्मानित किया गया. सम्मलेन में उनके शोध प्रयासों की सराहना की गयी. पैनल ने कहा आज साइबर-साइकोलॉजी को समझना अत्यंत आवश्यक है क्यूंकि हम सब अब डिजिटल दुनिया अब हमारी ज़िन्दगी का अहम् हिस्सा बन गयी है.

इस दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में वर्त्तमान परिवेश की भी चर्चा की भी  गयी, कोरोना से उत्पन्न हुई चुनौतियों को अवसर में बदलने की भी बात की गयी.





Monday, June 1, 2020

जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में कई अवसर प्रदान करता कोविड -19

संपूर्ण विश्व जहां वैश्विक महामारी कोरोना से पीड़ित है तथा पूर्ण मानव जाति के लिए संकट का समय चल रहा है, वहीं इस महामारी ने दुनिया भर में जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नए अवसर प्रदान किये है. कोविड -19 महामारी ने दुनिया भर के बायोटेक्नोलॉजिस्टों को इस वायरस के समाधान के लिए कई प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया है जो न केवल मानवता को मौजूदा संकट से लड़ने में मदद करेगी बल्कि भविष्य के लिए वायरल रोगों के बारे में हमारे ज्ञान को बढ़ाएगी। कई भारतीय कंपनियां विभिन्न वैज्ञानिकों तरीकों से इस महामारी के समाधानों की दिशा में काम कर रही हैं जो कोविड -19 के खतरे को कम करने में मदद करेंगी, चाहे वह विकासशील परीक्षण हो या बीमारी से बचने के लिए वैक्सीन की खोज हो, जैव प्रौद्योगिकी सेक्टर का विस्तार निश्चित है।

हालांकि जैव प्रौद्योगिकी परीक्षण आज नए आर्टिफीसियल तंत्र बनाने से लेकर टीके विकसित करने तक, कोविड -19  के इलाज़ के लिए दवाएं, दस्ताने और मास्क बनाने में अग्रसर है और ये सेक्टर आने वाले समय में युवाओं के लिए कई रोज़गार के अवसर प्रदान करेगा। बरहाल जहां सम्पूर्ण विश्व के ज्यादातर सेक्टर को आर्थिक नुक्सान का सामना करना पड़ रहा है,  वहीं जैव प्रौद्योगिकी का क्षेत्र इस विपति में उभर रहा है।  आने वाले समय में शोधकर्ताओं के लिए भी इस क्षेत्र में कई चुनौतियों के साथ अवसर भी होंगे जैसे रैपिड स्क्रीनिंग, डायग्नोस्टिक टेस्ट और वैक्सीन विकसित करने के लिए शोध की आवश्यकता। संभवतः बड़े पैमाने पर कोविड -19 की स्क्रीनिंग के लिए स्क्रीनिंग प्रशिक्षण इंस्टिट्यूट की भी आवश्यक होगी ताकि युवाओं को प्रशिक्षित किया जा सके। जैव प्रौद्योगिकी इस महामारी के बारे में जागरूकता फैलाने तथा चिकित्सीय सुविधा प्रदान करने में सहायक है। जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कैसे प्रत्यक्ष हस्तक्षेप, जैसे कि ड्रग पुन: उपयोग या आयुर्वेदिक उपायों के बारे में भी शोध के आवश्यक क्षेत्र होगा। जैसा कि कहा गया है "रोकथाम इलाज से बेहतर है",  जैव प्रौद्योगिकी ज्ञान को साझा करने और इस घातक वायरस के फैलने के तरीकों और अन्य पहलुओं के बारे में जागरूकता फैलाने में भी कारगर होगा। इस क्षेत्र में बायोटेक्नोलॉजिस्ट और माइक्रोबायोलॉजिस्ट भी डॉक्टरों की मदद कर रहे हैं इसलिए, चिकित्सा प्रौद्योगिकी के साथ साथ जैव प्रौद्योगिकी प्रभावी निदान प्रदान कर रही है। इसके अलावा, जैव प्रौद्योगिकी अपशिष्ट निपटान विधि के विकास में भी अहम् भूमिका निभा रहा है। कोविड -19 कि रोकथाम के लिए सफाई रखना बहुत आवश्यक है इसलिए निदान और उपचार के दौरान उत्पन्न अस्पताल का कचरा प्रबंधन के लिए भी जैव प्रौद्योगिकी कि भूमिका महत्वपूर्ण है। इस तरह जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में  निदान या उपचार सम्बंधित, दवा उद्योगों, वैक्सीन में अनुसंधान और उत्पादन का भविष्य सुनहरा है।

Sunday, May 10, 2020

मजदूर है, मजबूर है: कोरोना तो नहीं बेबसी का शिकार है

संपूर्ण विश्व जहां वैश्विक महामारी कोरोना से पीड़ित है, वही भारत न सिर्फ कोरोना बल्कि कई लाचारी से भी पीड़ित है | यहां कोरोना वायरस ने जिस तरह का संकट पैदा किया है वो बहुत ज्यादा घातक है | इसने प्रवासी मजदूरों के हालात गंभीर कर दिए है | कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन ने घर से हज़ारों किलोमीटर दूर फसें प्रवासी मजदूरों कि ज़िन्दगी दूभर कर दी है | दैनिक वेतन पर कार्य करने वाले मजदूरों के लिए एक-एक दिन शहर में गुज़ारना भारी पड़ रहा है इसलिए वो पैदल ही हजारों किलोमीटर का सफ़र तय कर रहे है | ज्ञात हो कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद में मालगाड़ी से 16 मजदूरों के कटने का मंजर दिल को दहला देता है | बिखरी रोटियां, खामोश पटरियां मजदूर की मजबूरी की कहानी बयां कर रही है | लॉकडाउन के चलते ये सभी मजदूर अपने घर जाने के लिए 40 किलोमीटर चलकर आए थे | थकान ज्यादा लगी, तो पटरी पर ही सो गए थे लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनकी ज़िन्दगी का सफर उसी रोटी के साथ खत्म हो जाएगा जिसके लिए वो घर से मीलों दूर चले गये थे |

ये वही रोटी है जिसकी तलाश में मजदूर अपने घरों से हजारों किलोमीटर दूर का सफ़र तय करते है | इसी माह की पहली तारिख को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया गया, आये दिन मजदूरों की बेबसी की कहानी बीते अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस कि अलग दास्तान को बयान कर रही है |  आये दिन हो रहे हादसों से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कोरोना ने तो नहीं लेकिन प्रवासी मजदूरों कि मजबूरी ने उनकी जान जोखिम में डाल दी है | ज्ञात हो कि इससे पहले जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन की घोषणा की तो घर लौटने के लिए बेताब प्रवासी मजदूर पैदल कि घर कि ओर निकल पड़े और सड़क हादसे का शिकार हो गये | उत्तर प्रदेश के रहने वाले, दिल्ली में कार्यरत प्रवासी मजदूर अपने घर पहुँचने के प्रयासों के दौरान अपने जान गंवा बैठे थे | खबरों के अनुसार कम से कम 17 प्रवासी मजदूरों और उनके परिवार के सदस्यों - जिनमें पांच बच्चे भी शामिल थे, सड़क हादसे में मारे गये थे | अन्य  समाचार रिपोर्टों के अनुसार, दिल्ली में एक रेस्तरां में एक होम डिलीवरी कार्यकर्ता के रूप में कार्यरत एक 39 वर्षीय व्यक्ति की 28 मार्च को मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में जाते समय मृत्यु हो गई थी | इन मौतों के अलावा, सेव लाइफ फाउंडेशन द्वारा जारी एक रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि  कोरोनोवायरस लॉकडाउन के दौरान घर लौटने की कोशिश के कर रहे  42 प्रवासी श्रमिक भी सड़क हादसे के कारण मौत का शिकार हो गये  ।

इस लॉकडाउन की अवधि के दौरान भारत भर में सड़क दुर्घटनाओं में कुल 140 लोगों की मौत हो गयी | लॉकडाउन के दौडान सड़क हादसे की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 30% मौतें पैदल चलने वाले श्रमिकों की थीं | इसके अलावा दो बिहार के मोतिहारी के रहने वाले प्रवासी मजदूर जो नेपाल में कार्यरत थे, कोरोनोवायरस महामारी के मद्देनजर लॉकडाउन के कारण साइकिल पर ही अपने घर का रुख कर लिया था | नेपाल में तीव्र मोड़ पर बातचीत के दौरान खाई में गिरने से उनकी मृत्यु हो गई थी |

बरहाल प्रवासी मजदूरों की दशा दयनीय बनी हुई है, देश में कोरोना के चलते लगाया गया लॉकडाउन का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव प्रवासी मजदूरों कि ज़िन्दगी पर हुआ है । दरअसल जब उन्हें ये पता चला की जिन फैक्ट्रियों और काम धंधे से उनकी रोजी-रोटी का जुगाड़ होता था, वह लॉकडाउन के चलते बंद हो गयी है, तो वे घर लौटने को छटपटाने लगे | ट्रेन-बस यात्रा के सभी मार्ग बंद होने के कारण और घर में पर्याप्त राशन नहीं होने की वजह से अपने घर पहुंचने के रास्ते तलाशने लगे | दरअसल ये मजदूर जिन ठिकानों में रहते थे उसका किराया भरना नामुमकिन लगने लगा तो ये मजदूर पैदल ही अपने घरों की  ओर निकल पड़े और ये उनकी ज़िन्दगी का आखिरी सफ़र बन गया |  हालांकि सरकार आश्वाषण दे रही है पर उनका सब्र टूटने लगा तो पैदल ही घर की ओर निकल पड़े, पैरों में छाले है, सर पर बोझ है, चिलचिलाती धुप है और हजारों किलोमीटर का सफ़र तय करना है | मजदूर कोरोना से ज्यादा लाचारी का शिकार है, उनकी बेबसी कि सिसकती तस्वीर उनके दर्द को बयान कर रही है |

Sunday, May 3, 2020

Unlocking Thoughts in this Lockdown



Retrospecting life in Lockdown….
Introspecting this Clampdown….
Contemplates to look into the chapter so far….
The gravity and severity of COVID beyond the radar….
Contest, Opportunity, Vying, Infallible, Desirable….
Life centered around goals unmeetable….
Falling into guilt and culpability….
Treated Mother Nature ineptly….
The Big break by the Nature made me realize….
Nothing is permanent, nothing is imperishable….
Is this a life, struggling for the skies…?
Turned life into Bullet train
Battling with ourselves every moment, seeking something to gain…
Eroding Values, Ignoring Humanity,
Lacking Empathy, Sprawling Collaboration
Standing on the same platform….
Hanging on the Edge of Slowdown….
Reflects life image….
Mapping the graph of solace…
Striving hard in rat race….
Life revolved around Challenges, Competition, Liking, Hiking, Comparing….
No time for relations, everybody engaged in building destinations….




Saturday, April 11, 2020

रोबोटिक्स तकनीक: डॉक्टरों में कोविड-19 संक्रमण को रोकने में कारगर

कोरोनोवायरस वैश्विक स्वास्थ्य संकट के रूप में उभरा है और चीन से शुरू होकर दुनिया के 125 देशों में संक्रमण की तरह फ़ैल चुका है | इस महामारी के कारण लाखों लोगों को संगरोध लॉकडाउन के तहत रखा गया है। चीन के डॉक्टर ली वेन्लिंग जिन्होंने सबसे पहले इस खतरे कि जानकारी दी थी, कोरोनोवायरस के खिलाफ लड़ाई में अपने काम के दौरान कोरोनोवायरस से संक्रमित हो गए थे | स्वास्थ्य अधिकारी जोखिम से निपटने की कोशिश कर रहे हैंलेकिन स्वास्थ्य देखभाल श्रमिकों के वर्गों को अलग करना संभव नहीं है | संक्रमण को रोकने के लिए मरीजों को अलग किया जाना तो संभव हैलेकिन डॉक्टरों और नर्सों के लिए सबसे बड़ी चुनौती खुद को इस संक्रमण से बचाना है। कोविड 19 स्वस्थ्य संक्रमण रिपोर्ट के अनुसार संक्रमित लोगों में लगभग  80,000 से अधिक लोग स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ता थे । स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता व्यक्ति-से-व्यक्ति संचरण के जोखिम को कम करना है। दरसल अभी तक इसका कोई इलाज नहीं हैएकमात्र उपाय इसकी महामारी को रोकना है।
वैश्विक स्वास्थ्य संक्रमण के मद्देनजरदुनिया भर के विभिन्न अस्पतालों में रोबोट लगाये जा रहे हैं। रोबोट चिकित्सा दुनिया में कोरोनोवायरस से निपटने के लिए आवश्यक उपाय हथियार हो सकता है। कई उपायों के बीचस्वचालन संचालित स्वास्थ्य देखभाल प्रौद्योगिकियां बीमारी से लड़ने में सहायता कर सकती हैं। दुनिया भर के अस्पताल रोबोट और स्वचालन प्रौद्योगिकी को तैनात करने के लिए अग्रसर हैं क्योंकि कोरोनोवायरस जंगल की आग की तरह फैलता है। प्रयोगशालाओं में एक संदिग्ध संक्रमण की पुष्टि करने में दिन लग जाते  हैं इसलिए डॉक्टर कोरोनोवायरस का पता लगाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर भरोसा कर रहे हैं जो थर्मल सेंसर से लैस कैमरों के साथ हैं। हालांकि डब्ल्यूएचओ 50 से अधिक देशों में सर्जिकल मास्क और दस्ताने अस्पतालों में भेज रहा है और सरकार द्वारा कड़े आपातकालीन उपाय किए जा रहे हैंलेकिन संक्रमण की संख्या बहुत अधिक है। इस बीचअस्पताल और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं लोगों के तापमान का अनुमान लगाने और स्मार्टफोन और थर्मल सेंसर के साथ वास्तविक समय के तापमान की जांच करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम का उपयोग कर रही हैं। कोविड -19 के खिलाफ लड़ाई मेंउभरती प्रौद्योगिकियां एक अप्रत्याशितकल्पनाशील और अविश्वसनीय रूप से बड़े पैमाने पर कार्यरत हैं। 1974 से शोधकर्ता रोबोटिक्स को चिकित्सा अनुप्रयोगों में शामिल करने की तकनीक विकसित कर रहे हैं। हाल के वर्षों में रोबोटिक्स तकनीक चिकित्सा विज्ञान में एक आशाजनक क्षेत्र के रूप में उभरा है। कोरोनावायरस के प्रकोप ने उन रोबोटों को तैनात करने के लिए एक वैश्विक महामारी वाले अस्पतालों की घोषणा की जो बायोमेट्रिक या तापमान विश्लेषण सेंसर नहीं हैंलेकिन यह एक स्क्रीनिंग में चार प्रश्न पूछता हैजैसे "क्या आपको खांसी है?" कोरोनोवायरस के कीटाणुओं और जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए दुनिया भर के 500 से अधिक अस्पतालों में एक यूवी उत्सर्जक रोबोट स्थापित किए गए हैं।  अमेरिका में अस्पतालों ने वीकी रोबोट को एक उपकरण के रूप में स्थापित किया हैजो पहियों पर चलता है | रोबोट का प्रयोग अस्पतालों में भोजनदवा देनेरोगियों के तापमान को लेने के लिए किया जाता है। स्वास्थ्य कर्मियों के रोबोटिक्स के लिए कोरोनावायरस के संक्रमण को कम करने के लिए अस्पतालों को साफ करने के लिए उपयोग किया जा रहा हैजिनमें से कुछ हवा को शुद्ध करने के लिए स्वच्छ हवा और श्वसन हेलमेट का उपयोग करते हैं। यूवीडी रोबोट मोबाइल रोबोट के पहले प्रदाताओं में से एक हैं जो कि कीटाणुनाशक कमरों में पराबैंगनी प्रकाश का उपयोग करते हैं। प्राथमिक शिक्षा में ताइवान के छात्र महामारी को रोकने के लिए लेगो रोबोट नामक एक स्वचालित कीटाणुनाशक दवा का उपयोग कर रहे हैं। कोरोनोवायरस का मुकाबला करने का एकमात्र उपाय संपर्क निगरानी है और रोबोट इसके लिए कारगर है | चीन में अस्पतालों में रोबोट की सुविधाओं की तैनाती में काफी तेजी आई है। भारत में कोरोनोवायरस संक्रमित रोगियों की कुल संख्या ८९६  हो गई है। हालांकिअधिकांश भारतीय अस्पतालों मेंअभी भी रोबोट तकनीकी नहीं है। हालांकि भारत में लैप्रोस्कोपिक सर्जरीकार्डियक सर्जरीस्वचालित फार्मा आदि के लिए रोबोट का उपयोग किया जा रहा है पर  रोबोट नर्सिंग अभी नहीं है। कोरोनावायरस के प्रकोप ने अस्पतालों में रोबोट की आवश्यकता को आमंत्रित किया है क्योंकि यह अधिक जटिल कार्यों और कीटाणुशोधन के साथ सहायता कर सकता है। आने वाले वर्षों में महामारी की बीमारियों का मुकाबला करने के लिए मानव हस्तक्षेप के साथ रोबोटिक्स तकनीकें भी दिखाई देंगी।

विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) क्षेत्रों में महिलाओं का वर्चस्व

 https://pratipakshsamvad.com/women-dominate-the-science-technology-engineering-and-mathematics-stem-areas/  (अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस)  डॉ ...