अश्को में डूबा उत्तराखंड...................
मेरी पीड़ा ही मेरी जुबां है
यह आपदा कह रही मेरी कहानी है
यू रुसवा है ज़िन्दगी की
आज मेरे ज़ख्म ही मेरी वाणी है
ना खाने को अन्न ना पीने को पानी है
ना कोई ठौर ठिकाना
बंजारों की तरह भटक रहे हम सैलानी है
ऐ खुदा तू क्यूँ इस कद्र रूठ गया
की घर का दामन ही छूट गया
निकले थे घर से तेरे दर्शन,
कुछ पल दुनिया से दूर तेरी आस्था में डूब जाने को
अपनों संग, अपनों से दूर तेरे और करीब आने को
क्या थी खबर ज़िन्दगी में ऐसा भी पल आएगा
जब चैनों सुकून खो जायेगा
यह दर्द कैसे करू बयान
लफ़्ज़ों में ना पीरों पायुंगी यह दास्तान
दिल में सिसक-सी है
धडकनों में कसक- सी है
आखें बहुत उदास है
हर पल मन में रहती एक आस है
काश यह एक बुरा स्वपन हो
जो सवेरे के संग टूट जायेगा
और फिर खुशियों भरा वो पल लौट आएगा .....
No comments:
Post a Comment