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कितना
कारगर होगा विशाखा दिशा निर्देश
देश में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित कराने के
लिए भले ही सरकार हरसंभव कदम उठाने की कोशिश कर लें पर आये दिन हो रहे महिला उत्पीड़न के मामले सारी कोशिशें निष्फल किये दे रहे हैं | बीते वर्ष केंद्रीय महिला और बाल विकास
मंत्रालय ने कार्यस्थल: रोकथाम, निषेध और निवारण
अधिनियम- 2013
लागू किया गया | इसे ऐतिहासिक कानून कहा जा सकता है क्योंकि देश में
इससे पहले कार्यस्थल पर होने वाले यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए ऐसा कोई कानून
नहीं था | इस विनियमन के अंतर्गत यौन शोषण के संदर्भ में जारी की गयी “विशाखा गॉइडलाइन” के दिशा-निर्देश के तहत महिला उत्पीड़न से
सम्बंधित समस्यों की कारवाई करना नियोक्ता कंपनी की ज़िम्मेदारी बताया गया है ।
सुरक्षा को कामकाजी महिलाओं का मौलिक अधिकार मानते हुए इस निर्देश में शिकायत के
संदर्भ में हर कंपनी में महिला-कमेटी बनाना अनिवार्य किया गया है, इस अधिनियम में सभी महिलाएं शामिल होंगी
तथा इसके अंतर्गत महिलाओं को सार्वजनिक और निजी दोनों ही क्षेत्रों में यौन उत्पीड़न
से बचाना है | लेकिन फिर वही सवाल उठता है की ये ज़मीनी रूप से लागू होने में कितना
सफल होगा, और ये महिलाओं की सुरक्षा करने में कितना कारगर होगा | दरसल आये दिन
औरतों के साथ हो रही घटनाएं, बलात्कार, छेड़खानी और उनके चेहरे पर तेज़ाब
फेंकने की घटना ने भारत में महिलाओं की सुरक्षा एवं अस्मिता पर प्रश्नचिन्ह लगा
दिया है। पिछले दशक में महिला उत्पीड़न जैसे मामलो में भारत में
आश्चर्यजनक एवं शर्मनाक वृद्धि ने सरकार की सभी कोशिशों को असफल किया है | भारतीय
संविधान में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई विशेष कानून वर्णित है, संविधान महिलाओं
को समानता का अधिकार देता है पर संविधान में इन तमाम प्रावधानों के बावजूद जमीनी
हकीकत अलग कहानी बयान करती है। भारत सरकार के नारी अधिकार विभाग के अनुसार वर्ष 2012 – 2013 के बीच बलात्कार तथा महिला उत्पीडन
मामलो में करीब 30 फीसदी वृद्धि के संकेत मिलते है | ये समाज में कायम बदनीयती ही है
की महिलाओं के खिलाफ अपराध लगातार बढ़ता जा रहा है | विकसित
और मार्डन होते भारत में महिलाओं की स्थिति वाकई बहुत ख़राब है | राष्ट्रीय अपराध
रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक, 1971 में पूरे देश में बलात्कार के करीब ढाई हजार
मामले दर्ज किए गए, वहीं 2011 तक आते-आते बलात्कार की घटनाओं का आंकड़ा 24 हजार को
पार कर गया। सबसे बड़ी चिंताजनक बात यह है कि महिलाओं के खिलाफ उत्पीड़न के मामलों
में 2012 की
तुलना में 2013
में पांच गुना बढोतरी दर्ज की गई है |
लगातार बढ़ रहा महिलाओं के खिलाफ आपराध, संविधान में वर्णित महिलाओं को सुरक्षित करने के लिए बनाये गए सभी अधिनियमों
का एक प्रकार से मख़ौल ही उड़ा रहा है | महिला और बाल विकास मंत्रालय के कार्यस्थल: रोकथाम, निषेध और निवारण
अधिनियम- 2013
महिलाओं को सुरक्षित करने में कितना सफल होगा इसका उत्तर आने वाला वक़्त ही देगा |
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