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Saturday, February 6, 2016

अब जातिगत जालों से रिहा होते हम भारतीय


फेसबुक पर बीबीसी के कलम से निकली याशिका दत्त की कहानी वायरल हो चुकी है. जब अपनी कहानी के द्वारा याशिका ने भारत में फैले जाति के जालों में उलझी अपनी ज़िन्दगी के अनुभवों को बताया तो वाकई  लगा की हम भारतीयों की मानसिकता शायद रोग ग्रषित है. देश में सर उठा के जीने के लिए याशिका दत्त को अपनी दलित पहचान छुपानी पड़ी लेकिन ये देश तुमहारा भी उतना ही है जितना किसी अन्य जाति धर्म या समुदाय के लोगों का. हाँ माना कि भारत में जाति के जालों को हटाने में  में वक्त काफी लगा लेकिन काफी हद तक ये साफ़ हो चूका है और अब भारत में बहुजन लोग अपनी पहचान नहीं छुपाते. हालांकि ये याशिका का निजी फैसला था लेकिन तुम्हे तो फक्र होना चाहिए की तुम देश की सबसे ख़ास जाति से सम्बन्ध रखती हो. तुम देश की सबसे मेहनतकश बिरादरी से सम्बन्ध रखती हो. तुमहारी ये कहानी मुझे बार बार ये सोचने पर मजबूर कर रही है की देश के उन अपराधियों और निठल्ले लोगों को शर्म क्यों नहीं आती जो देश की सफलता में रोड़ा का काम कर रहे है. अभी तुम न्यूयॉर्क में स्वतंत्र पत्रकार हो और देश का नाम रोशन कर रही हम भारतियों को तुमपे गर्व है.
 

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