अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
वो परियों का ख्वाब है ...
ज़िन्दगी में बिखेरती खुशबू का एहसास है ...
वो कड़कड़ाती ठण्ड में गुलाबी धुप है ...
उसकी सूरत में एक माँ एक बहन एक पत्नी एक बेटी का
रूप है ..
वो पथरीले रास्तों में कोमल चादर है ..
वो जून कि गर्मी में बरसता बादल है ..
वो खलिश भी है ...वो रज़ा भी है ...
वो चेहरे पर लाती मुस्कान कि वजह भी है ..
नारी तो प्यार का नगमा है ..
वो खूबसूरत आइना भी है ..
वो मंदिर में रखी मूरत है ..
उसके आँचल में ममता कि सूरत है ..
उसके होने से ज़िन्दगी खूबसूरत है ...
हर दुआ हर उपवास में उसके ही निशाँ है ..
नारी वो अक्षर है जिससे बनता पूरा जहां है ..
वो काली रातों में चमकती चांदनी है ..
वो संगीत में रस घोलती रागनी है ..
वो तितली सी नाज़ुक भी है....
पर चट्टान से मजबूत उसके इरादे भी है ..
मन पर लगे तालों के बीच ..
वो खिड़की से झांकती परछाई है ..
कभी उसकी सांस कोख में रोक दी जाती है ..
कभी खुले आसमान में उड़ने को तरस जाती है ..
कभी अश्कों में डूबी उसकी तन्हाई है ...
कभी लहरों में उठते समंदर कि गहराई है ..
उसके होने से चहकता घर का आँगन है ..
वो कुर्बत का दामन है ..
फिर भी कभी ..
भीड़ में उसका तिरस्कार हो जाता है ..
कभी तन्हाई में दिल तोड़ा जाता है ..
उससे ही रोशन घर का हर कोना है ..
वो उदासी कि दवा..
होठों पर रहती दुआ है ..
वो हौसलों को लेकर चलती है ..
ज़िन्दगी के रंग में ढलती है ..
वो हर शायर कि ग़ज़ल है ..
फिर भी उसकी ज़िन्दगी दरारों का महल है ..
उसके आँचल में प्रेम का सागर है ..
फिर भी प्रेम को तरस जाती है ..
नारी वो रोशिनी है जो अँधेरे को मिटाती है ..
और खुद अँधेरे में डूब जाती है ..
उसके होने से मुकम्मल ज़िन्दगी का सफ़र है ..
पर मुश्किल उसकी ज़िन्दगी की डगर है ..
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