देश में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा
उठाये जा रहे हरसंभव कदम निष्फल साबित
हो रहे हैं | महिलाओं के लिए बनाए गए अधिकार एवं उनकी सुरक्षा
से सम्बंधित कानून भी उनको समाज में सुरक्षित रखने में असफल होते प्रतीत होते है |
आए दिन हमारे समाज में महिलाओं के साथ
हिंसा की खबरें आती रहती हैं | जहां एक ओर महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए सरकार प्रयासरत
है वही दूसरी ओर आये दिन उनके साथ हो रही वारदातों हर कोशिश पर पानी फेरती नज़र आती
है |
भारतीय संविधान ने महिलाओं कि सुरक्षा के लिए कई क़ानून बनाये है, चाहे
घेरलू हिंसा का मामला हो या सेक्शुअल हैरेसमेंट, छेड़छाड़ या फिर रेप जैसे वारदातों का सभी के
लिए देश में सख्त कानून व्यवस्था हैं।
महिलाओं के खिलाफ इस तरह के घिनौने अपराध करने वालों को सख्त सजा दिए जाने के लिए
भी प्रावधान बनाये गए है | देश में पिछले दस वर्षों में महिलाओं के लिए कई कानून
बनाये गए तथा संशोधित भी किये गए | 16 दिसंबर 2012 की गैंग रेप की घटना के बाद सरकार ने वर्मा
कमिशन की सिफारिश पर ऐंटि-रेप लॉ बनाया जिसके
तहत रेप की परिभाषा में परिवर्तन किया गया और अब आईपीसी की धारा-375 के तहत
रेप के दायरे में प्राइवेट पार्ट या फिर ओरल सेक्स दोनों को भी रेप ही माना गया
है। आईपीसी कि धारा 376 बलात्कार तथा आईपीसी
कि धारा 376/511 में बलात्कार करने के
प्रयास सम्बन्धी प्रावधान है | आईपीसी कि धारा 363,364, 364 ए, 366
महिलाओं के अपहरण तथा आईपीसी कि धारा 354 ए यौन उत्पीड़न सम्बंधित कानून को बताती
है | इसके अतरिक्त भी देश में कई ऐसी कानून व्यवस्था है जो देश में महिलाओं के
अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए बनायीं गयी है |
इसी कड़ी में वर्ष 2013 में केंद्रीय
महिला और बाल विकास मंत्रालय ने कार्यस्थल: रोकथाम, निषेध और निवारण
अधिनियम- 2013
लागू किया गया | इसे ऐतिहासिक कानून कहा जा सकता है क्योंकि देश में
इससे पहले कार्यस्थल पर होने वाले यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए ऐसा कोई कानून
नहीं था | इस विनियमन के अंतर्गत यौन शोषण के संदर्भ में जारी की गयी “विशाखा गॉइडलाइन” के दिशा-निर्देश के तहत महिला उत्पीड़न से सम्बंधित
समस्यों की कारवाई करना नियोक्ता कंपनी की ज़िम्मेदारी बताया गया है । सुरक्षा को
कामकाजी महिलाओं का मौलिक अधिकार मानते हुए इस निर्देश में शिकायत के संदर्भ में
हर कंपनी में महिला-कमेटी बनाना अनिवार्य किया गया है, इस अधिनियम में सभी महिलाएं शामिल होंगी तथा
इसके अंतर्गत महिलाओं को सार्वजनिक और निजी दोनों ही क्षेत्रों में यौन उत्पीड़न
से बचाना है | लेकिन फिर वही सवाल उठता है की ये ज़मीनी रूप से लागू होने में कितना
सफल होगा, और ये महिलाओं की सुरक्षा करने में कितना कारगर होगा | दरसल आये दिन
औरतों के साथ हो रही घटनाएं, बलात्कार, छेड़खानी और उनके चेहरे पर तेज़ाब फेंकने की
घटना ने भारत में महिलाओं की सुरक्षा एवं अस्मिता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। पिछले दशक में महिला उत्पीड़न जैसे मामलो में भारत में आश्चर्यजनक
एवं शर्मनाक वृद्धि ने सरकार की सभी कोशिशों को असफल किया है | भारतीय संविधान में
महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई विशेष कानून वर्णित है, संविधान महिलाओं को समानता
का अधिकार देता है पर संविधान में इन तमाम प्रावधानों के बावजूद जमीनी हकीकत अलग
कहानी बयान करती है। ये समाज में कायम बदनीयती ही है की महिलाओं के खिलाफ अपराध
लगातार बढ़ता जा रहा है | विकसित और मार्डन होते भारत में
महिलाओं की स्थिति वाकई बहुत ख़राब है | | लगातार बढ़ रहा महिलाओं के खिलाफ आपराध,
संविधान में वर्णित महिलाओं
को सुरक्षित करने के लिए बनाये गए सभी अधिनियमों का एक प्रकार से मख़ौल ही उड़ा रहा
है | महिला और बाल
विकास मंत्रालय के कार्यस्थल रोकथाम, निषेध और निवारण
अधिनियम- 2013
महिलाओं को सुरक्षित करने में कितना सफल होगा इसका उत्तर आने वाला वक़्त ही देगा |
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