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This is Dr Pallavi Mishra, working as an Associate Professor

Wednesday, February 5, 2014

कितना कारगर होगा विशाखा दिशा निर्देश



                                     
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कितना कारगर होगा विशाखा दिशा निर्देश
देश में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित कराने के लिए भले ही सरकार हरसंभव कदम उठाने की कोशिश कर लें पर आये दिन हो रहे महिला उत्पीड़न के मामले सारी कोशिशें निष्फल किये दे रहे हैं | बीते वर्ष केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय ने कार्यस्थल: रोकथाम, निषेध और निवारण अधिनियम- 2013 लागू किया गया | इसे ऐतिहासिक कानून कहा जा सकता है क्‍योंकि देश में इससे पहले कार्यस्‍थल पर होने वाले यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए ऐसा कोई कानून नहीं था | इस विनियमन के अंतर्गत यौन शोषण के संदर्भ में जारी की गयी “विशाखा गॉइडलाइन”  के दिशा-निर्देश के तहत महिला उत्पीड़न से सम्बंधित समस्यों की कारवाई करना नियोक्ता कंपनी की ज़िम्मेदारी बताया गया है । सुरक्षा को कामकाजी महिलाओं का मौलिक अधिकार मानते हुए इस निर्देश में शिकायत के संदर्भ में हर कंपनी में महिला-कमेटी बनाना अनिवार्य किया गया है, इस अधिनियम में सभी महिलाएं शामिल होंगी तथा इसके अंतर्गत महिलाओं को सार्वजनिक और निजी दोनों ही क्षेत्रों में यौन उत्‍पीड़न से बचाना है | लेकिन फिर वही सवाल उठता है की ये ज़मीनी रूप से लागू होने में कितना सफल होगा, और ये महिलाओं की सुरक्षा करने में कितना कारगर होगा | दरसल आये दिन औरतों के साथ हो रही घटनाएं, बलात्कार, छेड़खानी और उनके चेहरे पर तेज़ाब फेंकने की घटना ने भारत में महिलाओं की सुरक्षा एवं अस्मिता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। पिछले दशक में महिला उत्पीड़न जैसे मामलो में भारत में आश्चर्यजनक एवं शर्मनाक वृद्धि ने सरकार की सभी कोशिशों को असफल किया है | भारतीय संविधान में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई विशेष कानून वर्णित है, संविधान महिलाओं को समानता का अधिकार देता है पर संविधान में इन तमाम प्रावधानों के बावजूद जमीनी हकीकत अलग कहानी बयान करती है। भारत सरकार के नारी अधिकार  विभाग के अनुसार वर्ष 2012 – 2013 के बीच बलात्कार तथा महिला उत्पीडन मामलो में करीब 30 फीसदी वृद्धि के संकेत मिलते है | ये समाज में कायम बदनीयती ही है की महिलाओं के खिलाफ अपराध लगातार बढ़ता जा रहा है | विकसित और मार्डन होते भारत में महिलाओं की स्थिति वाकई बहुत ख़राब है | राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक, 1971 में पूरे देश में बलात्कार के करीब ढाई हजार मामले दर्ज किए गए, वहीं 2011 तक आते-आते बलात्कार की घटनाओं का आंकड़ा 24 हजार को पार कर गया। सबसे बड़ी चिंताजनक बात यह है कि महिलाओं के खिलाफ उत्पीड़न के मामलों में 2012 की तुलना में 2013 में पांच गुना बढोतरी दर्ज की गई है  | लगातार बढ़ रहा महिलाओं के खिलाफ आपराध, संविधान में वर्णित महिलाओं को सुरक्षित करने के लिए बनाये गए सभी अधिनियमों का  एक प्रकार से मख़ौल ही उड़ा रहा है | महिला और बाल विकास मंत्रालय के कार्यस्थल: रोकथाम, निषेध और निवारण अधिनियम- 2013 महिलाओं को सुरक्षित करने में कितना सफल होगा इसका उत्तर आने वाला वक़्त ही देगा |

Saturday, January 11, 2014

ई सिगरेट भी उड़ाती है धुएं में ज़िन्दगी

स्मोकिंग की लत समाज को खोखला करती जा रही है, ध्रूमपान उन्मूलन के लिए वैज्ञानिक लगातार कई विशेष प्रयोग कर रहे है | ई सिगरेट भी इन्ही शोधों का एक परिणाम है, होन लिक नाम के चीनी फार्मासिस्ट ने 2003 में इसका ईजाद किया था, लेकिन ध्रूमपान से मुक्ति दिलाने में ये कितना कारगर है ये कह पाना अभी संभव नहीं है | दरअसल ई सिगरेट बैटरी से चलने वाली ऐसी सिगरेट होती है जिसमें निकोटीन की कुछ मात्रा होती है। यह उपकरण वास्तविक सिगरेट जैसा दिखता है लेकिन इसमें तम्बाकू का इस्तेमाल नहीं होता है। ई-सिगरेट के प्रत्येक कश के साथ निकोटीन की बहुत थोड़ी मात्रा ही शरीर में पहुँचती है। इसमें निकोटीन का प्रयोग बहुत कम होता है या इसकी जगह गैर-निकोटीन का वैपोराइज लिक्‍विड प्रयोग किया जाता है जो सिगरेट जैसा स्‍वाद देता है और इसकी लम्‍बाई थोड़ी ज्‍यादा होती है। ई सिगरेट में उक कार्टेंज लगी होती है जिसमें निकोटीन और प्रॉपेलिन ग्‍लाइकोल का तरल पदार्थ होता है बीच के हिस्‍से में एटमाइजर होता है और सफेद वाले हिस्‍से में बैटरी लगी होती है जब कोई ई सिगरेट प्रयोग करता है तो सैंसर में हवा का प्रभाव पड़ते ही एटमाइज़र निकोटीन और प्रॉपलीन ग्‍लाइकोल को छोटी-छोटी बूंदो को हवा में फेंक देता है जो वाष्प का धुंआ तैयार कर देता है जिसे व्‍यक्ति बाद में निकाल देता है। एक अध्ययन से पता चलता है कि जब कोई सिगरेट की 15 कश लेता है तो उसके अंदर 1 से 2 मिलीग्राम निकोटिन जमा होता है, जबकि ई-सिगरेट में 16 मिलीग्राम निकोटिन वाले कार्टेज का इस्तेमाल करने से इतनी ही कश लेने पर 0.15 मिलीग्राम निकोटिन जमा होता है । स्वास्थ के लिहाज से यह तरीका भी सही नहीं है क्योंकि इसके जरिए भी निकोटिन तो शरीर में जाता ही है। बस ई सिगरेट में तम्‍बाकू से तैयार होने वाला हानिकारक तत्‍व नहीं बनता | दुनिया भर के छियासठ प्रतिशत पुरुष और चालीस प्रतिशत महिलाएं तम्बाकू सेवन में लिप्त पाए जाते है और दुनिया में लगभग चौवन लाख लोग साल भर में और भारत में नौ लाख लोग की तम्बाकू सेवन के कारण समय से पहले सासें थम जाती है | तम्बाकू का जहर तकरीबन पूरे भारत में फैला हुआ है और इसका इस्तेमाल करने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है | वर्तमान समय में बढ़ता जा रहा मानसिक तनाव तम्बाकू सेवन का एक कारण माना जाता है, वही कुछ युवा इसे आधुनिकता की निशानी मानते है | ग्लोबल यूथ टोबैको सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार भारत में दस प्रतिशत लड़कियों ने सिगरेट पीने की बात स्वीकारी, भारतीय बाजार में ई सिगरेट ने 2011 में प्रवेश किया था लेकिन ये तम्बाकू युक्त ध्रूमपान रोकने या कम करने में प्रभावी है या इसका स्वास्थ्य पर अनुकूल असर होता है ये मानना सही नहीं होगा | भारत सरकार को इस वर्ष तम्बाकू से होने वाली बीमारियों के इलाज पर लगभग चालीस हजार करोड़ रूपये खर्च करने पड़े हैं | बरहाल यूरोपीय संघ और ब्रिटेन दोनों दवाइयों की तरह ही ई सिगरेट के नियमन के उपायों पर काम कर रहे हैं |










बेरहम मौसम की सिसकती तस्वीर

भारत में निवास कर रहे लगभग 78 लाख लोग बेघर है | इनमें से कुछ झुग्गी-झोपडी बनाकर रहते है तो कुछ फुटपाथ पर आसमान की खुली छत के नीचे ही जीवन व्यतीत करने को मजबूर है। रोजी रोटी की चाह में प्रत्येक वर्ष हजारों  गरीब गाँव से शहर आते है जिनका कोई ठौर ठिकाना नहीं होता है | गरीबी की मार झेलते हुए पुरुष, महिलाएं, वृद्ध और बच्चे सभी खुले आसमान के नीचे कंपकंपाती ठंड में, कोहरे की चादर तले मौसम के कहर का सामना करते हुए फुटपाथ को बिछोना बनाकर रात गुजारने को विवश है | वही हजारों किकुडते, ठिठुरते मजबूर अलाव जलाकर ठंड से बचने की जुगत में लगे रहते हैं पर सिरहन बढाने वाली सर्द हवाएं, कम्बल एवं अलाव की गर्माहट का अनुभव नहीं होने देती है | और इस कारण हर साल मौसमी दुष्प्रभाव से हजारों मासूमों की सासें थम जाती है |
मजबूरी का ये कष्टदायक नज़ारा ये सोचने को विवश करता  है कि आज के आधुनिक युग में भी मनुष्य जीवन में असमानता की खाई नहीं मिट पाई है | कुछ भाग्यशाली बंद कमरे में रूम हीटर लगाकर, चाय कॉफ़ी की चुसकिया लेकर ठण्ड का लुफ्त उठाते है तो हजारों बेघर आसमान की छत के तले ठण्ड के प्रकोप से स्वयं को बचाने की कोशिश में रात गुजारते है





Wednesday, October 9, 2013

Music is the Therapy of Life



                                    
Music is the Therapy of Life
“If music be the food of love, play on.”
        Shakespeare
                             
“थोडा है थोड़े की ज़रुरत है ज़िन्दगी फिर भी यहाँ खूबसूरत है“ या “ज़िन्दगी की यही रीत है हार के बाद ही जीत है” ऐसे हजारों नगमे है जो हमारे अन्दर पैशन, जोश जगाने के साथ साथ स्ट्रेस बस्‍‍टर का भी करते है. म्यूजिक लाइफ का  रिदम है ये तो सबने सुना होगा लेकिन क्या आप जानते है ये एक अच्छे थेरेपिस्ट का भी काम करता है. व्यवसायिक और प्रतिस्पर्धा के इस युग में अवसाद ग्रस्त होना आम बात है.आज दुनिया भर में करोडो लोग डिप्रेशन के शिकार है जो सुर के सागर में डूब कर स्ट्रेस से बाहर निकल सकते है. अमेरिकी संगीत थेरेपी एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार स्ट्रैस बस्टर में म्यूजिक थेरेपी का बहुत असर देखने को मिल रहा है. रिसर्च बताता है कि शरीर में ट्राइटोफन नामक केमिकल पाए जाते हैं जो संगीत के माध्यम से अवसाद को दूर करते है. म्यूजिक शरीर और मन से जुड़ी साइकोसोमेटिक तथा सेंट्रल नर्वस सिस्टम से जुड़ी विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिये भी एक बेहतर विकल्प है. ऑटिज्म, क्लिनिकल डिप्रैशन, हार्ट प्रॉब्लम, हाई लो ब्लड प्रैशर के इलाज में म्यूजिक थेरेपी के सकारात्मक प्रभाव देखे गए है, म्यूजिक थेरेपिस्ट्स म्यूजिक को सेडेटिव की जगह देने लगे है और  इसे एक असरदार ट्रैंक्वलाइजर की तरह देखा जाने लगा है. शोध दर्शाते हैं कि म्यूजिक लोगों में भावनाओं को जगाकर एंडोर्फिन हार्मोन का स्त्राव करता है जो दर्द निवारक, तनाव कम करने वाला और मूड को अच्छा करने वाला होता है. संगीत न केवल तनाव दूर करता है, आत्मशांति भी प्रदान करता है तो बस म्यूजिक सुनो सुनाओ और टेंशन को दूर भगाओ.“जब लाइफ हो आउट आफ कण्ट्रोल होठों को करके गोल सिटी बजा के बोल आल इज वेल”. मनोचिकित्सक का मानना है की संगीत मरीज में मोटिवेशन और सकारात्मक भावनाओं को बढ़ाता है और अगर इसका प्रयोग पारंपरिक उपचार के साथ किया जाए तो यह बहुत फायदेमंद है, स्ट्रोक पेशेंट्स के लिए म्यूजिक थेरेपी अच्छा उपाय है और जल्दी रिकवर करने में सहायता करती है. इसके अलावा कम्युनिकेशन स्किल विकसित करने और आत्मविश्वास बढाने में भी म्यूजिक की अहमियत कम नहीं है. “अभी अभी हुआ यकीन की आग है मुझमे कहीं” ऐसे नगमें हमें प्रेरणा प्रदान कर हमारे सकारात्मक सोच को बढाते है.सारेगामा” में वह शक्ति है कि यह प्रसव वेदना भी कम करता है और सेन्ट्रल नर्वस डिसआर्डर से भी निजात पंहुचा सकता है.
वैसे संगीत चिकित्सा का इतिहास काफी पुराना है, कहा जाता है कि अकबर के दरबार में जब तानसेन गाते थे, तो दीपक खुद--खुद जल उठते थे. संगीत की इसी शक्ति को अब वैज्ञानिकों द्वारा पुष्टि मिल चुकी है और म्यूजिक थेरेपी लोगों को स्ट्रेस से निकलने, मन को हल्का करने और मूड रिलैक्स करने में बहुत कारगर साबित हो रहा है तो बस गुनगुनाते रहिये मुस्कुराते रहिये और स्ट्रेस मुक्त रहिये. “अल्लाह के बन्दे हँस दे अल्लाह के बन्दे”
  

Pallavi Mishra
Research Scholar
University of Lucknow

विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) क्षेत्रों में महिलाओं का वर्चस्व

 https://pratipakshsamvad.com/women-dominate-the-science-technology-engineering-and-mathematics-stem-areas/  (अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस)  डॉ ...