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Friday, July 17, 2015

ऐ ज़िन्दगी पहले तुम ऐसी तो ना थी





वो खुला मैदान, घर का आंगन या छत जो बच्चों के खेलने का अड्डा हुआ करता आज सुना सुना सा लगता है, जहां जब बच्चों की फौज जमा हुआ करती थी तो बहुत निराले खेल खेला करते थे | बीते ज़माने के खेल आज की टेक्नोलॉजी की दुनिया में कहीं गुम हो गए है, डिजिटल होती दुनिया के खेल भी डिजिटल हो गए है | उस ज़माने में बच्चे कॉलोनी में एक झुंड बनाकर ऐसे खेल खेलते थे जो वाकई स्फूर्तिदायक एवं मानसिक फिटनेस के लिहाज़ से बहुत अच्छे होते थे | लंगड़ी, लट्टू, छुपम-छुपाई, खो-खो, गिल्ली डंडा, पकड़म पकड़ाई, चैन चैन इन खेलों के नाम सुनकर आपको आपका बचपन तो जरूर याद आ गया होगा | गिल्ली डंडा का खेल एक कला से कम नहीं था, इसके लिए बहुत अभ्यास और एकाग्रता की आवश्यकता होती है | ये खेल बच्चों को सावधान रहना सीखाता था क्योंकि इस खेल में अगर सावधान न रहा जाये तो इससे खुद को और दूसरों को भी चोट लग सकती है। अब वो कंचे के खेल भी नहीं दीखते, जो बच्चों को खेल खेल में एक कंचे से दुसरे कंचे पर निशाना लगाते हुए एकाग्र होकर अपने लक्ष्य की ओर ध्यान केन्द्रित करना सीखता था | भारत का पारंपरिक खेल सात पत्थर या सतोलिया खेल भी बच्चों में लोकप्रिय खेल हुआ करता था जिसमें दो टीम, सात चिपटे पत्थर और एक गेंद होती है | इस खेल में दोनों टीम में बराबर संख्या में खिलाड़ी होते थे, इनमें से एक टीम का खिलाड़ी गेंद से पत्थरों को गिराता है और फिर उसकी टीम के खिलाड़ीयों को उन पत्थरों को फिर से जमाना होता था, इस बीच दूसरी टीम के ख़िलाड़ी गेंद से पहली टीम के खिलाडियों को जो पत्थरों को जमाने की कोशिश कर रहे होते, उनको पीछे से मारना होता था | यदि पत्थर ज़माने वाली टीम गेंद लगने से पहले पत्थर लगाकर 'सतोलिया' बोल देती तो उसकी कोशिश सफल मानी जाती और अगर वह गेंद सतोलिया बोलने से पहले टीम के किसी सदस्य को लग जाती तो टीम आउट हो जाती | ये खेल भी उस ज़माने का एक निराला खेल था जो अपनी टीम को जीताने के लिए एकजुट होकर कोशिश करने का पाठ सीखाता था | खो खो भी बीते ज़माने के बच्चों का पसंदीदा खेल होता था इसमें प्रत्येक टीम में 12 खिलाड़ी होते हैं, लेकिन केवल 9 खिलाड़ी ही मैदान में रहते है । ये खेल एक टीम में रहकर खेलने की भावना जगाता है | आज बड़े बड़े कारपोरेशन में करमचारियों को एक टीम में रहकर कुशलता से काम करने की ट्रेनिंग दी जाती है | कबड्डी का खेल भी एक टीम खेल है जिसमें एक खिलाड़ी प्रतिद्वंदी के पाले में जाकर अपनी व्यक्तिगत प्रतिभा का प्रदर्शन करता है | ये खेल भी टीम भावना, टीम एकजुटता और टीम की रणनीति सीखाने में सहायक होता था | कॉलोनी में बच्चों का झुंड जब चोर-पुलिस का खेल खेलता था तो उनके अन्दर हमेशा गलत काम करने पर सजा मिलने के डर की भावना रहती थी | वह हमारे पारंपरिक खेल इतने ख़ास थे जो खेल खेल में हमें ऐसी सीख दे जाते थे जो हमारे जीवन के बाद के चरणों में बहुत काम आते थे |  बचपन बहुत मासूम होता है, खेल खेल में सीखा गया पाठ बाद में हर कदम पर काम आता है | पर आज के बदलते खेल ने बच्चों को एकाकी कर दिया है उनके बचपन के दोस्त अब बेजुबान खिलौने हो गए है । आज के बच्चे इलेक्ट्रॉनिक गेम्स ज़्यादा पसंद करते है  जिनसे अकेले ही खेला जा सकता है | म्यूज़िकल खिलौने, रोबोट्स,  इलेक्ट्रॉनिक गाड़ी और बाईक ये सब आजकल के बच्चों का पसंदीदा खेल है | उन्हें वीडियो गेम खेलना या फेसबुक पर चैट करना ज्यादा पसंद होता है | आज का बचपन भी हाइटेक है उनका आकर्षण गैजेट्स की तरफ ज्यादा होता है | आज के बच्चों की दुनिया टीवी रिमोट, मोबाइल, इंटरनेट और कार्टून चैनल्स के इर्द गिर्द घुमती है |  उनके हीरो सुपरमैन, बैटमैन या डोरेमॉन होते हैं जिनके पास जादुई ताकत होती है । उसकी दुनिया में रोबोट्स, रेसिंग कारें, प्ले स्टेशन  और विडियो गेम्स की ख़ास जगह है | लूडो, सांप-सीढ़ी, कैरम, शतरंज जैसे खेल जो बच्चों में टीम की भावना जगाते थे कहीं गुम हो गए है, जिससे बच्चे नियमों पर चलना, धीरज रखना और एक-दूसरे की मदद करना भी सीखते थे । इस तरह के खेलों से उन्हें हार से निपटने का हौसला भी मिलता था |

Tuesday, July 14, 2015

आइये जाने- डिजिटल लाकर क्या है

डिजिटल इंडिया मिशन के आगाज़ के साथ कई परियोजनाओं का भी आगाज़ हुआ जिसके तहत भारत सरकार ने सभी देशवासियों को डिजिटल लाकर उपलब्ध कराने की बात कही | डिजिटल लाकर ऐसा तंत्र है जहां संबंधित व्यक्ति सभी प्रमाण पत्र तथा अन्य दस्तावेजों को सुरक्षित रख सकता है | डिजिटल लाकर एक ऑनलाइन फाइल या डिजिटल मीडिया है जो भंडारण की देता सेवा है | ये अपने अंतर्गत सभी तरह की फ़ाइलों जैसे संगीत, वीडियो, सिनेमा, खेल और अन्य मीडिया को भी एक साथ सुरक्षित रखने में सक्षम है |  ये सभी महत्वपूर्ण व्यक्तिगत दस्तावेजों को अपलोड करने तथा उसकी डिजिटल प्रतियां को संग्रहीत करने के लिए, सरकार की ओर से सभी भारतीय निवासियों को मुफ्त में दिया जाने वाला सुरक्षित भंडार है। इस व्यवस्था की सुविधा से भविष्य में, विभिन्न सरकारी विभाग और अन्य एजेंसिया सीधे उपयोगकर्ता के लाकर में दस्तावेज या प्रमाण पत्र भेज सकेंगे | सरकार द्वारा डिजिटल लाकर उपलब्ध कराने की घोषणा करना अपने आप में ही एक साहसिक कदम है, जो व्यक्तिगत दस्तावेजों के भंडारण और निजी दस्तावेजों को सीधे प्राप्त करने की सुविधा देता है | इसके अंतर्गत प्रत्येक भारत निवासी जिसके पास आधार संख्या है, उसको डिजिटल लाकर की सुविधा उपलब्ध होगी | अभी तक भारत में लोग अपने भौतिक रूप में उपलब्ध दस्तावेजों का ही उपयोग किया करते है क्यूंकि किसी भी कार्यालय में प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने के लिए, पहले उसे अधिकारियों द्वारा सत्यापन कराना आवश्यक होता है इस कारण उसे भौतिक रूप में ही रखा जाता है | पर डिजिटल लॉकर इस सत्यापन तथा पुस्तिका सत्यापन की प्रक्रियाओं को समाप्त करने में सक्षम होगा | यह सभी उपयोगकर्ताओं को आसानी से किसी भी कंप्यूटर से अपने सरकारी कागजात का उपयोग करने की अनुमति देता है | ये  भौतिक दस्तावेजों के साथ होने वाली कुछ परेशानियों को खत्म करने की क्षमता रखता है | इससे प्रमाण पत्रों की भौतिक प्रतियों की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, इस कारण ये आवश्यक दस्तावेजों की हानि या गुम हो जाने से भी बचाएगा |
जाहिर है की, डिजिटल लाकर निजी फाइलों के लिए बैंक लॉकर्स की तरह की ही सुरक्षा देता है और ये माना जा रहा है की इसका भविष्य भौतिक लॉकर्स की तुलना में अधिक सुनेहरा होगा | इससे अधिकारियों का काम दस्तावेजों को जारी करने तथा प्राप्त करने दोनों में ही आसान हो जायेगा |  इन्टरनेट की सुविधा द्वारा डिजिटल लाकर में संरक्षित दस्तावेजो तथा जरूरी फाइलों को कभी भी  डाउनलोड किया जा सकता है तथा कहीं भी भेजा जा सकता है | विशेषज्ञों का मानना है डिजिटल लाकर देशवासियों को बहुत सारी सुविधाओं को उपलब्ध कराने में कारगर साबित हो सकता है |  ये डिजिटल प्रमाण पत्रों की सुविधा देगा जिससे अधिकारी फर्जी दस्तावेजों को आसानी से पहचान सकेंगे | ये सरकारी काम आसान करेगा और इससे लोगों को भी राहत मिलेगी, इसकी सुविधा से लंबी कतारों में घंटों परेशान होने से या दस्तावेजों की जांच के लिए लम्बी प्रक्रियाओं से उन्हें छुटकारा मिलेगा |
भारत का कोई भी निवासी जिसके पास आधार संख्या है डिजिटल लाकर की सुविधा का लाभ ले सकता है | सरकार ने https://digitallocker.gov.in/ वेब पेज बनाया है जिसमें रजिस्ट्रेशन करके इसका उपयोग किया जा सकता है |  प्रारंभ में डिजिटल भंडारण के लिए 10 एमबी की जगह सीमित होगी जिसे बाद में 1 जीबी तक बढाया  जा सकता है |  इसमें फ़ाइलों को जेपीजी, पीडीएफ, बीएमपी, पीएनजी, जीआईएअफ स्वरूपों में अपलोड किया जा सकता है | हालांकि डिजिटल लाकर की इतनी सारी विशेषताएं है, लेकिन अब प्रशन ये उठता है की ये डिजिटल लाकर जो व्यक्तिगत जानकारी का भंडारण, कितना सुरक्षित होगा | इसे साइबर क्राइम के खतरे से कैसे सुरक्षित किया जा सकता है | ऐसे संवेदनशील एवं व्यक्तिगत दस्तेवाजों को सुपर हैकरों की नज़र से कैसे बचाया जायेगा, इस पर विचार करना अत्यंत आवश्यक है |


Saturday, July 11, 2015

सुकून की बारिश

                 सुकून की बारिश       

झूमते बादलों में अंगराई लेता मन...
सहलाती ठंडी हवाएं देती रही सुकून ..
मौसम के आगोश में..
कुछ इस तरह बैठे ..
सुकून की बारिश में भींगते रहे ..
अरमानों का काफिला शांत हो गया ..  
इस इठलाते बलखाते बादलों को ...
टकटकी भर निहारती रही ..
ना जाने क्या ढूंढ रही थी मैं ..
जब बारिश की बूंदे गिरी..
ऐसे लगा खुद से प्यार हो गया
ये सुकून की बारिश थी  ...
खिली लबों पर मुस्कान ..
ख्वाहिशो से परे.. हर मंज़र से दूर ..
हो रहे थी खुद से रूबरू ...
सुकून की बारिश का था असर...
पलकों के सिरहाने में बसे आसूं भी भींग गए ...
इस बारिश ने मन के सागर में ऐसा डूबोया ...
की दिल में बहता तूफ़ान भी शांत हो गया  ...
बारिश बहा ले गया सारे आसूं...  
दिल को हुआ सुकून  ..





Tuesday, July 7, 2015

भारत में निरासजनक है मजदूरों की दशा

भारत में निरासजनक है मजदूरों की दशा




हजारों मजदूर जिन्होंने ना जाने कितनों के आशियाने बनाये उनके पास खुद की छत नहीं है और जो ना जाने कितनो के अन्नदाता है उनकी ज़िन्दगी कितनी कठिन है, इसका अंदाज़ा हाल ही में भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत किये गए आज़ाद भारत की आर्थिक, सामाजिक और जाति आधारित जनगणना से लगाया जा सकता है | आज़ादी के 67 साल बाद भी भारत में मजदूरों की दशा में बहुत ज्यादा सुधार नहीं हो पाया है | अन्य देश की तुलना में भारत में मजदूरों की दिशा असंगठित है, इस कारण उनकी मासिक आय बहुत कम है | भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था बहुत कमजोर है, आकड़ों के अनुसार गाँव में निवास करने वाले लोगों में से केवल 10 प्रतिशत ही वेतनभोगी है | इस जनगणना ने साफ़ कर दिया है की मजदूरों की माली हालत बहुत खराब है | आज भी हमारे देश के मजदूरों के पास पक्के मकान नहीं है उन्हें रात खुले आकाश के नीचे या कच्चे झोपोड़ों में ही बितानी पड़ती है और इसलिए मौसम की बेरुखी इन्हें हमेशा सताती रहती है | देश के 10.69 करोड़ लोग अभावग्रस्त है इस निराशाजनक जनगणना से ग्रामीण भारत की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर प्रतीत होती है | भारत में अगर न्यूनतम मजदूरी की बात की जाए तो यहां न्यूनतम मजदूरी की दर अलग- अलग प्रदेशों में अलग अलग है । मनरेगा योजना के तहत यूपीए सरकार ने मजदूरों को सौ रुपए प्रतिदिन के हिसाब से सौ दिन के काम का प्रावधान रखा है । 2014 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार सभी राज्यों को न्यूनतम तय मजदूरी देने का निर्देश दिया गया था और तब तत्कालीन केंद्र सरकार ने 119 रुपए देना तय किया था | मनरेगा में न्यूनतम मजदूरी की दर 156 से 236 रुपए है | दुनिया के अन्य देशों की तुलना में भारत की न्यूनतम मजदूरी की दर बहुत कम है | संविधान बनने से पहले का है, जो अभी भी लागू है। संविधान बनने से पूर्व भारत में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 लागू किया गया था जिसमें कोई सुधार नहीं हुए हैं | इस अधिनियम के तहत भी हर राज्य की न्यूनतम मजदूरी की दर अलग-अलग है | भारत में मजदूरों की दशा विचारनीय है जिसका सुधार बहुत जरूरी है |इस जनगणना रिपोर्ट ने कुछ अच्छी बातें भी सामने लायी है जो दर्शाती है की गांवो में महिलाओं की स्थिति काफी हद तक सुधरी है, लगभग 68.96 लाख परिवारों में मुखिया महिलाएं है जिनकी मासिक आय 10 हज़ार है | और ग्रामीण भारत में 68.35 परिवार ऐसे है जिनके पास मोबाइल फ़ोन है, जो प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का भारत को डिजिटल इंडिया बनाने की सोच को मजबूती देगी | 1932 के बाद जब 80 साल बाद ये जनगणना हुई तो देश की सामाजिक, आर्थिक स्थिति में हुए बदलाव खुलकर सामने आये | और पता लगा की भारत के विकास की राह में अभी बहुत से पत्थर है, देश की प्रगति के लिए जिनको हटाना बहुत आवश्यक होगा | सरकार इसके लिए प्रयासरत है और इसके तहत कई योजनायें भी बनायीं जा रही है जिनमें से 2020 तक सभी को रहने के लिए आवास उपलब्ध करना अहम् है जो इन गांवो की तस्वीर बदलने में सहायक साबित हो सकती है | लेकिन इसके लिए आवश्यक है की लोग सरकार की इन योजनाओं के प्रति जागरूक रहे और इनका लाभ ले सके | प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का भारत के सुनेहरा भविष्य का सपना चुनौतीयों भरा है जब तक इन मजदूरों की आर्थिक और सामाजिक दशा में सुधार नहीं होगा भारत का पूर्ण विकास संभव नहीं होगा |

Thursday, April 9, 2015

Guilty for my name “Terrorism”




Feeling deep in my heart
Why am I being a part?
Of such a monstrous misdeed
Invisibly engaged indeed
My name is Terrorism
Generally perceived for Criticism
I just hate myself
Desire to drive away from the blood flow thyself 
Dislike violence
Me too love Peace and Silence
I don’t understand
Yuk! What is a few people’s stance?
Is it me? Or some individuals,
That created sorrowful visuals
Flesh and blood, blood and flesh
Trapped in this mess
Oh God! Please help me out
Give me a voice to yell and shout
I abhor blasts and bombing
That had turned lives into ashes burning
Perhaps, me not too smart
To explore the motives of terrorists mart
But as my name is being used for this heinous act
So here I go, you listen to facts
It ruins the lives of innocent civilians
Give me a chance to save the lives of millions
Lord let go my reaction
Of this bloody explosive terrorist action
Wish! I had a magic wand
To cast love and serenity on this land

Monday, December 8, 2014

नैनो तकनिकी में सिमटती दुनिया


दुनिया की नवीनतम संस्कृति में शुमार हो चुकी नैनो तकनीकी विश्व की अद्भुत तकनीकी के रूप में उभरी है | आज हमारी दुनिया नैनो तकनीकी के इर्द गिर्द घूम रही है | कंप्यूटर से लैपटॉप और लैपटॉप से स्मार्ट फ़ोन की नैनो तकनिकी से हम सभी परिचित है | स्मार्ट फोन तो नैनो तकनीकी का सबसे उत्तम रूप है, जिसमें अनेकों सुविधाएं उपलब्ध है | पुराने ज़माने के लकड़ी के बक्सेनुमा कैमरे की जगह आज छोटे डिजिटल मोबाइल कैमरे हमारे जीवन का हिस्सा बन गए है | मीडिया के तो सभी क्षेत्र नैनो तकनीकी से प्रभावित है | बरहाल जहां मीडिया का क्षेत्र पूरी तरह नैनो तकनीकी से प्रभावित हो चुका है | वही चिकित्सा में भी नैनो तकनीकी से गंभीर रोगों का निदान किया जा सकता हैं | चिकित्सकों का मानना है की नैनो सेंसर के द्वारा बीमारी की जांच करना बहुत ही सरल हो रहा है और ये निश्चित रूप से चिकित्सा उपचार को आसान और सस्ता कर रही है | मेडिकल में नैनो तकनीकी तो बड़े पैमाने पर आनुवंशिक चिकित्सा देने तथा स्वास्थ्य सुधार करने में भी सक्षम है | नैनो तकनीक से हमारे शरीर के अन्दर उपस्थित ब्लड सैल में कोई भी छोटी चिप ट्रान्सफर की जा सकती है, जो कैंसर जैसी बीमारियों से निपटने में भी कारगर है। चाहे साइंटिफिक हो या इंजीनियरिंग नैनो तकनीकी का असर सभी क्षेत्रों में है | यहाँ तक की सिनेमा जगत पर भी नैनो तकनीकी का असर देखा जा रहा है | पुराने ज़माने की तीन से चार घंटे की लम्बी फिल्मों की तुलना में आज की फिल्मे छोटी हो गयी है | नैनो तकनीकी ने नैनो कल्चर को जनम दे दिया है जिसने कहीं ना कहीं हमारे भाषा पर भी असर डाला है | मोबाइल सन्देश आदान प्रदान की कला ने हमें बड़े बड़े वाक्यों को कम शब्दों में तथा शब्दों को भी उनके संकुचित रूप में बयान करने का  चलन तो अब आम हो चुका है | नैनो तकनीकी एक ऐसी तकनीकी है जो वर्तमान समय की भारी भरकम तकनीक से आगे बढ़कर हल्के रूप में विज्ञान के हर अविष्कार को नियंत्रित कर रही है | वैज्ञानिकों का मानना है की आगे आने वाले समय में नैनो तकनीक विश्व का भाग्य विधाता होगा। यह सच भी है, क्योंकि बड़ी से बड़ी चीजों को समेटकर एक छोटी एवं शक्तिशाली तकनीकी की डिवाइस विज्ञान के हर प्रयोग और आविष्कार को सम्भव बना रही है। यह तकनीकी आगामी दिनों में विकास की नयी परिभाषा लिखेगी जिसके बिना आम आदमी के जीवन का विकास संभव नहीं होगा ।


Monday, July 7, 2014

ऐसा देश है मेरा.....http://roobaruduniya.com/?p=1331

मंजुल है तस्वीर यहाँ की
पुण्य भूमि, पुण्य आत्मा
एक आँचल के फूल हैं हम,
एक उपवन के सुमन
भिन्न है बोली, भिन्न है भाषा
भिन्न हैं रीति रिवाज़
बे नज़ीर हैं हर रंग
भिन्न परम्पराएं रहती हैं संग
एक डोर से बंधी है भारत की संस्कृति
भावनात्मक एकता की है प्रकृति
कश्मीर से कन्याकुमारी तक
हर ओर दीखते रूप नए, नए हैं ढंग
विशिष्ट तस्वीर करती विभक्त
पर होता है एक ही आत्मा से मिलन
झूमती धरती, गाता आकाश
नृत्य है यहाँ के इतने ख़ास
वो कथक का है रूप अनोखा
भरतनाट्यम कुचिपुड़ी, गरबा, घुम्मर
भांगरा का मिलन है चोखा
सदियों से फैला है यहाँ संगीत का इतिहास
मुग्ध मोहित कर देती शास्त्रीय संगीत की मिठास
लोक गीत, भजन, गजल, कवाल्ली,
फिल्मी गाने, रीमिक्स गीत, फ्यूजन
है यहाँ की संस्कृति की शान
वो दिवाली की रौनक, होली के रंग,
ईद-उल-फ़ित्र, पोंगल, रक्षाबंधन, ओणम
हर त्यौहार में है ख़ास उमंग
लफ़्ज़ों में ना होगी बयान
इस भारत संस्कृति की दास्तान
मेरे देश की संस्कृति महान
रहेंगे सदा इसके निशाँ………!!

- पल्लवी मिश्रा
 शोधार्थी, गीतकार, फ्रीलांसर 

Monday, June 23, 2014

जीने दो अब मुझे



नगर में संचालित एक बंद के सदस्यों द्वारा अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर गीतों द्वारा सामाजिक मुद्दों को उठाकर जनता को जागरूक किया जा रहा है | वर्तमान बैंड के सदस्य अंकित जैसवाल, पल्लवी मिश्रा और मयंक तिवारी इसी दिशा में कार्य कर रहे है | अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर इनकी टीम ने कन्या भ्रूण हत्या जैसे संवेदनशील मुद्दे पर एक खूबसूरत गीत बनाया  जिसका शीर्षक है “जीने दो अब मुझे”, जो समाज में हो रहे कन्या भ्रूण हत्या के मामले पर सोचने को विवश करता है | इससे पूर्व भी इनकी टीम ने “ज़िन्दगी कुछ खफा हो गयी” गीत बनाया है जिसके द्वारा बलात्कार से होने वाले दर्द की दास्ता बयान करने की कोशिश की गयी है | इनकी टीम द्वारा बनाये गए ये गीत “ज़िन्दगी कुछ खफा हो गयी”, “जीने दो अब मुझे” दिल को छू जाते है और सोचने पर विवश कर देते है | इन गीतों को अपनी खूबसूरत आवाज़ देने वाले अंकित जैसवाल ने बताया की गाने हमेशा दिल को छू जाते है इस कारण हम गीतों के ज़रिये अपनी बातों को लोगों तक पहुचाने की कोशिश करते है | वही गीत लेखिका पल्लवी मिश्रा कहती है की हम युवा ही देश का भविष्य है इस कारण हम लोगों को अपने गीतों के माध्यम से सामाजिक मुद्दों पर जागरूक करने का प्रसास कर रहे है | संगीतकार मयंक तिवारी ने बताया की हम सोशल मीडिया पर भी अपने गीतों के माध्यम से लोगों से जुड़ कर उनको प्रभावित करने कोशिश कर रहे है | इनकी ये मुहीम काबिले तारीफ़ है जहां ये लोगों को अपने गीतों द्वारा भावविभोर कर, इन सामाजिक मुद्दों पर सोचने पर विवश कर रहे है |


विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) क्षेत्रों में महिलाओं का वर्चस्व

 https://pratipakshsamvad.com/women-dominate-the-science-technology-engineering-and-mathematics-stem-areas/  (अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस)  डॉ ...