Dr Pallavi Mishra is working as an Associate Professor. NET/JRF qualified.Founder of PAcademi.com

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Monday, April 18, 2016

सोशल मीडिया पर लहराता हिंदी भाषा का परचम





सूचना प्रद्योगिकी के क्षेत्र में इन्टरनेट ने सोशल मीडिया रूपी साइबरस्पेस की एक अनोखी दुनिया के रूप में पदार्पण करके हिंदी भाषा को नए आयाम से जोड़ा है | भारतीय संस्कृति और परंपरा संपूर्ण विश्व में अद्वितीय है और आज हिंदी भाषा के बढ़ते वैभव को  हम जीवंत कर रहे हैं | किसी भी समाज के निर्माण में संचार की विशेष भूमिका है तथा मानव की सामाजिक व सांस्कृतिक परम्पराओं के स्थानांतरण की प्रक्रिया में संचार का विशेष योगदान रहा हैं | ऐसे में हिंदी जो दुनिया की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, संचार की निरंतरता को बनाये रखने के लिए टेक्नोलॉजी की दुनिया में  इसको नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता था | हिंदी भाषा दुनिया भर में 8000 लाख से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है |

 आज सोशल मीडिया की नीव पर निर्मित ग्लोबल गाँव जिसकी कोई परिभाषित सीमा नहीं है, हिंदी भाषा का विस्तार करने में सक्षम है | कंप्यूटर की दुनिया में हिंदी भाषा के आगमन ने हिंदी भाषा का वैश्वीकरण किया | 80 के दशक में कंप्यूटर की दुनिया में हिंदी भाषा ने डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम (डॉस) के जमाने में अक्षर, शब्दरत्न आदि जैसे वर्ड प्रोसैसरों के रूप में कदम रखा | बाद में विण्डोज़ का पदार्पण होने पर 8-बिट ऑस्की फॉण्ट जैसे कृतिदेव, चाणक्य आदि के द्वारा वर्ड प्रोसैसिंग, डीटीपी तथा ग्राफिक्स अनुप्रयोगों में हिन्दी भाषा में मुद्रण संभव हुआ | लेकिन तब हिंदी भाषा केवल मुद्रण के काम तक ही सीमित रही | गूगल ने 2007 में अपने हिंदी भाषा अनुवादक का प्रारंभ किया और इसके बाद यूनिकोड फॉण्ट का विकास हुआ जिसको माइक्रोसॉफ्ट के विण्डोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम में विण्डोज़ 2000 का समर्थन मिला | इस तरह हिंदी भाषा का टेक्नोलॉजी की दुनिया में विस्तार हुआ | इससे अंग्रेजी और अन्य यूरोपीय भाषाओं की तरह कम्प्यूटर पर सभी ऍप्लिकेशनों में हिन्दी भाषा का प्रयोग सम्भव हो गया |  सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा के विकास ने भारतीयों को सोशल नेटवर्किंग साइट्स की ओर आकर्षित किया है | आज फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग, व्हाटस एप्प या कोई अन्य नेटवर्किंग साइट् सभी पर हिंदी भाषा की सुविधा उपलब्ध है | हिंदी भाषा के कम्प्यूटरीकरण के बाद सोशल मीडिया प्रयोगकर्ताओं की संख्या लगातार बढ़ रही है | आज भारत में 2000 लाख से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता है | गूगल इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार 2018 तक लगभग आधा देश इंटरनेट के माध्यम से जुड़ जाएगा भारत में बढ़ते इन्टरनेट उपभोताओं के कारण सोशल मीडिया का वर्चस्व भी मजबूत हो रहा बल्कि विशेषज्ञों का मानना है की सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए उपभोगता इन्टरनेट का प्रयोग कर रहे है | वर्तमान में, भारत तीसरा सबसे बड़ा इंटरनेट उपभोगताओं वाला देश है फेसबुक, मासिक सक्रिय उपयोगकर्ताओं की रैंकिंग में सबसे आगे है जहां हिंदी में संवाद एवं आलेख देना संभव है और वही चैट एप्प में व्हाटस एप्प बहुत सक्रिय है, ये भी हिंदी भाषा का समर्थन करता है | हिंदी ब्लॉग्गिंग की बात की जाये तो यहाँ ब्लॉग केवल पत्रकारिता का दायित्व निर्वाह नहीं करता अपितु रचनाकारों की रचनाओं को  अभिव्यक्त करने का माध्यम प्रदान करता है | विदित है कि हिंदी भाषा ने सोशल मीडिया पर अपना वर्चस्व स्थापित किया है और आगे आने वाले समय में हिंदी इन्टरनेट पर लोकप्रिय भाषाओं में से एक होंगी | जहां सोशल मीडिया सूचना क्रांति के नवीनतम साधन के रूप में विकसित हुई है वही हिंदी भाषा ने टेक्नोलॉजी की दुनिया में अपना स्थान बना लिया है | इससे साफ़ होता है कि हिंदी के महत्व को विश्व में कितनी गंभीरता से अनुभव किया जा रहा है। आज हिंदी ने कंप्यूटर के क्षेत्र में अंग्रेजी के वर्चस्व पर प्रभाव डाला है और करोड़ों की आबादी वाले हिंदी भाषी लोग कंप्यूटर का प्रयोग अपनी भाषा में कर रहे हैं |
मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम में हिन्दी का प्रवेश वर्ष 2005 के बाद शुरु हुआ। पिछले 8 वर्षों में हिंदी बोलने वालों की संख्या में 50% की वृद्धि हुई है | भारत के अतिरिक्त नेपाल, मॉरिशस, फिजी, यूगांडा, दक्षिण अफ्रीका, कैरिबियन देशों, ट्रिनिडाड एवं टोबेगो और कनाडा जैसे देशों में भी हिंदी बोलने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है | इसके आलावा इंग्लैंड, अमेरिका, मध्य एशिया में भी इसे बोलने और समझने वाले अच्छे-खासे लोग हैं | वैश्वीकरण और भारत के बढ़ते रूतबे के साथ पिछले कुछ सालों में हिन्दी के प्रति विश्व के लोगों की रूचि खासी बढ़ी है। यह एक तथ्य है की किसी भी मीडिया की लोकप्रियता उसके प्रयोगकर्ताओं की संख्या पर ही निर्भर करती है | इससे साफ़ होता है कि सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा का वैभव लगातार बढ़ रहा है |


Wednesday, April 13, 2016

Conducting Field Study at Bargi Village, Jabalpur

Collecting Data at Bargi Village


Field Study is an experience of Real World that opens many doors to understand the basic and key concepts of Data Collection Method. The 10 days Workshop on Research Methodology, organised by the Department of Political Science, Rani Durgawati University Jabalpur, sponsored by ICSSR under the Supervision of Prof.Vivek Mishra Sir offered me the opportunity to understand various aspects of Field Study Method.

Collecting Data at Bargi Village

Before conducting Research at field, Prof.RamShankar Dubey Sir shared the best of his experience and knowledge with us to understand the key aspects of any Field Study. The very informative and interactive session by him made us understand the basic principles to develop a Questionnaire and we also got to know the about the thumb rules to conduct a Field Survey. Thus to experience the Field Study practically we visited Bargi village where I conducted a Data Collection Process. The topic assigned to us was “Political Participation: A study on Bargi area of Jabalpur”. At Bargi village having a practical exposure with the field study when I interacted with the residents of that village I experienced that at field it is bit difficult to hold the major guidelines. I experienced the basic and most important principle of field study that before conducting any survey with the respondents we have to make people feel comfortable so that they share the most accurate and authentic data with the interviewer. The other key factors I experienced in this Field Study while conducting a field survey there is a possibility that respondents can turn the Researcher to some other direction but we have to be very careful that we should not get diverted with the basic aim. Thus we have to be very cautious with our basic objective when interacting with people.

Collecting Data at Bargi Village

The Field Study offered me the opportunity to understand that there is a very thin line of error and if we would not hold our human nature strongly we would make certain mistakes unintentionally. Thus it is very important to be careful and follow the guidelines while conducting Field Study. The overall experience with the Field Study was amazing and I leant the problems that we can encounter while interviewing respondents.Thus the field study conducted by us offered a great experience to understand the real problems and key concepts of Data collection method.


Thursday, April 7, 2016

फेसबुक स्टेटस से होता सोशल कम्पैरिजन


सूचना प्रद्योगिकी की क्रांति से  सोशल मीडिया ऐसे सशक्त माध्यम के रूप विकसित हुआ कि हमारे दैनिक जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया | इस विकसित तकनीकी ने सोशल मीडिया क्रांति को जन्म देकर अभिव्यक्ति की प्रक्रिया को नयी दिशा एवं आयाम दिया है. आज शायद ही हम अपनी डेली लाइफ की कल्पना सोशल मीडिया के बिना कर सकते है और बेशक पिछले कुछ वर्षों में देश में सोशल मीडिया का क्रेज बहुत अधिक बढ़ा है. आईएएमएआई तथा आईएमआरबी की अप्रैल 2015 की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार भारत में 143 मिलियन सोशल मीडिया उपयोगकर्ता हैं. आईएएमएआई तथा आईएमआरबी द्वारा प्रस्तुत की गयी संयुक्त रिपोर्ट से ये भी स्पष्ट हुआ की भारत में कुछ लोगों के इन्टरनेट उपयोग का प्रमुख कारण भी सोशल मीडिया से स्वयं को कनेक्ट रखना है. इनमें ऐसे भी बहुत से लोग है जिन्होंने इन्टरनेट का पहली बार प्रयोग सिर्फ सोशल मीडिया से कनेक्ट होने के लिए किया. रिपोर्ट के अनुसार फेसबुक 96 प्रतिशत उपयोगकर्ताओं के साथ अग्रणी सोशल मीडिया वेबसाइट बनकर उभरा हैं. बेशक फेसबुक ने सूचनाओं के आदान- प्रदान में अहम् भूमिका निभायी है और साथ ही साथ अपने फेसबुक मित्रों से कनेक्टेड रहने के अवसर भी दिए है. आज शायद ही हमारा ऐसा एक भी दिन हो जो फेसबुक पर लॉग इन किये बिना गुजरता हो. लेकिन क्या आप जानते है की फेसबुक पर अधिक समय बिताना अनजाने में कभी कभी हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकता है. ह्यूस्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता माई-ली स्टीरस के अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार फेसबुक पर अधिक एक्टिव यूज़र डिप्रेशन की भावना से ग्रसित हो सकते है. दरसल कुछ उपयोगकर्ता जो फेसबुक पर बहुत अधिक समय लॉग इन रहते है उनके अन्दर सोशल कम्पैरिज़न की भावना पैदा हो सकती है. वह अपने मित्रों के स्टेटस से उनकी उपलब्धियों और उनके जीवन में चल रही गतिविधियों की तुलना स्वयं की ज़िन्दगी से करने लगते हैं. और जब अपनी ज़िन्दगी की गतिविधियों को उनकी ज़िन्दगी की गतिविधियों से बेहतर नहीं पाते है तो निराश महसूस करने लगते है. और इस ऑनलाइन सोशल कम्पैरिज़न की भावना के कारण अवसाद की भावनाओं का शिकार हो जाते है. वास्तव में ऐसा अक्सर इसलिए होता है क्योंकि हम अपनी दूसरों से तुलना करने के आवेग को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं. हालांकि व्यक्ति की सामाजिक तुलना की अवधारणा नयी नहीं है और वास्तव में 1950 में ही लोगों की सामाजिक तुलना की भावना के संदर्भ में अध्ययन किया जा चूका है, पर आज सोशल मीडिया के विस्तार ने ऑनलाइन सोशल कम्पैरिज़न को जन्म दे दिया है. सोशल मीडिया पर युवा ज्यादा एक्टिव रहते है इस वजह से अधिकतर युवा और कॉलेज के छात्र ही ऐसे डिप्रेशन का शिकार होते है. दरसल युवाओं में अक्सर ऐसा पाया गया है कि वह अपने फेसबुक स्टेटस पर अधिकतर अपनी ज़िन्दगी की अच्छी चीज़ों को पोस्ट करते है जबकि ज़िन्दगी में होने वाली परेशानियों को फेसबुक पर लोगों के साथ कम शेयर करते है.
जब लोग हॉलिडे वेकेशन की कूल पिक्चर या लाइफ इवेंट को फेसबुक पर पोस्ट करते है तो कई बार लोग सोशल कम्पैरिज़न करते है और जब उन्हें इस तरह के फेसबुक पोस्ट्स से अपनी ज़िन्दगी नीरस लगती है तो उदास महसूस करने लगते है. इस तरह जब वह दूसरों की ज़िन्दगी की गतिविधियों को अपनी ज़िन्दगी की गतिविधियों से बेहतर पाते है तो फेसबुक डिप्रेशन का शिकार हो सकते है. यही नहीं जानकार मानते है की सोशल मीडिया पर नंबर गेम भी बहुत आम हो चूका है. लाईक की संख्या हो या फेसबुक फ्रेंड लिस्ट में फ्रेंड्स की संख्या इसकी भी तुलना की जाती है. साइबर बुलींग और अन्य तरह के ऑनलाइन उत्पीड़न भी लोगों में फेसबुक डिप्रेशन की भावना जगा सकती है.
बरहाल एक्सपर्ट्स मानते है की फेसबुक पर सोशल कम्पैरिज़न उचित नहीं है क्योंकि अक्सर ये पाया गया है की अधिकतर लोग फेसबुक पर सिर्फ अपनी ज़िन्दगी की अच्छी बातों को शेयर करते है और ज़िन्दगी की तकलीफों को बहुत कम व्यक्त करते है. इस कारण सोशल नेटवर्किंग साइट्स से किसी की ज़िन्दगी की वास्तविक गतिविधियों को समझना सही नहीं  है. इस वजह से ये आवश्यक है की फेसबुक का प्रयोग सकारात्मक और लाभकारी ढंग से किया जाए. इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स का उपयोग हमेशा पॉजिटिव ढंग से करना चाहिए ताकि किसी भी तरह के डिप्रेशन का शिकार न हो. 

Wednesday, March 23, 2016

आइये जाने डिजिटल लाकर क्या है






डिजिटल इंडिया मिशन के आगाज़ के साथ कई परियोजनाओं का भी आगाज़ हुआ जिसके तहत भारत सरकार ने सभी देशवासियों को डिजिटल लाकर उपलब्ध कराने की बात कही | डिजिटल लाकर ऐसा तंत्र है जहां संबंधित व्यक्ति सभी प्रमाण पत्र तथा अन्य दस्तावेजों को सुरक्षित रख सकता है | डिजिटल लाकर एक ऑनलाइन फाइल या डिजिटल मीडिया है जो भंडारण की सेवा देता है | ये अपने अंतर्गत सभी तरह की फ़ाइलों जैसे संगीत, वीडियो, सिनेमा, खेल और अन्य मीडिया को भी एक साथ सुरक्षित रखने में सक्षम है |  ये सभी महत्वपूर्ण व्यक्तिगत दस्तावेजों को अपलोड करने तथा उसकी डिजिटल प्रतियां को संग्रहीत करने के लिए, सरकार की ओर से सभी भारतीय निवासियों को मुफ्त में दिया जाने वाला सुरक्षित भंडार है। इस व्यवस्था की सुविधा से भविष्य में  विभिन्न दस्तावेज या प्रमाण पत्र  सरकारी विभाग और अन्य एजेंसिया सीधे उपयोगकर्ता के लाकर में भेज सकेंगे | सरकार द्वारा डिजिटल लाकर उपलब्ध कराने की घोषणा करना अपने आप में ही एक साहसिक कदम है, जो व्यक्तिगत दस्तावेजों के भंडारण और निजी दस्तावेजों को सीधे प्राप्त करने की सुविधा देता है | इसके अंतर्गत प्रत्येक भारत निवासी जिसके पास आधार संख्या है, उसको डिजिटल लाकर की सुविधा उपलब्ध होगी | अभी तक भारत में लोग अपने भौतिक रूप में उपलब्ध दस्तावेजों का ही उपयोग किया करते है क्यूंकि किसी भी कार्यालय में प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने के लिए, पहले उसे अधिकारियों द्वारा सत्यापन कराना आवश्यक होता है इस कारण उसे भौतिक रूप में ही रखा जाता है | पर डिजिटल लॉकर इस सत्यापन तथा पुस्तिका सत्यापन की प्रक्रियाओं को समाप्त करने में सक्षम होगा | यह सभी उपयोगकर्ताओं को आसानी से किसी भी कंप्यूटर से अपने सरकारी कागजात का उपयोग करने की अनुमति देता है | ये  भौतिक दस्तावेजों के साथ होने वाली कुछ परेशानियों को खत्म करने की क्षमता रखता है | इससे प्रमाण पत्रों की भौतिक प्रतियों की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, इस कारण ये आवश्यक दस्तावेजों की हानि या गुम हो जाने से भी बचाएगा |
जाहिर है की, डिजिटल लाकर निजी फाइलों के लिए बैंक लॉकर्स की तरह की ही सुरक्षा देगा और ये माना जा रहा है की इसका भविष्य भौतिक लॉकर्स की तुलना में अधिक सुनेहरा होगा | इससे अधिकारियों का काम दस्तावेजों को जारी करने तथा प्राप्त करने दोनों में ही आसान हो जायेगा |  इन्टरनेट की सुविधा द्वारा डिजिटल लाकर में संरक्षित दस्तावेजो तथा जरूरी फाइलों को कभी भी  डाउनलोड किया जा सकता है तथा कहीं भी भेजा जा सकता है | विशेषज्ञों का मानना है डिजिटल लाकर देशवासियों को बहुत सारी सुविधाओं को उपलब्ध कराने में कारगर साबित हो सकता है |  ये डिजिटल प्रमाण पत्रों की सुविधा देगा जिससे अधिकारी फर्जी दस्तावेजों को आसानी से पहचान सकेंगे | ये सरकारी काम आसान करेगा और इससे लोगों को भी राहत मिलेगी, इसकी सुविधा से लंबी कतारों में घंटों परेशान होने से या दस्तावेजों की जांच के लिए लम्बी प्रक्रियाओं से उन्हें छुटकारा मिलेगा |
भारत का कोई भी निवासी जिसके पास आधार संख्या है डिजिटल लाकर की सुविधा का लाभ ले सकता है | सरकार ने https://digitallocker.gov.in/ वेब पेज बनाया है जिसमें रजिस्ट्रेशन करके इसका उपयोग किया जा सकता है |  प्रारंभ में डिजिटल भंडारण के लिए 10 एमबी की जगह सीमित होगी जिसे बाद में 1 जीबी तक बढाया  जा सकता है |  इसमें फ़ाइलों को जेपीजी, पीडीएफ, बीएमपी, पीएनजी, जीआईएअफ स्वरूपों में अपलोड किया जा सकता है | हालांकि डिजिटल लाकर की इतनी सारी विशेषताएं है, लेकिन अब प्रशन ये उठता है की ये डिजिटल लाकर जो व्यक्तिगत जानकारी का भंडारण, कितना सुरक्षित होगा | इसे साइबर क्राइम के खतरे से कैसे सुरक्षित किया जा सकता है | ऐसे संवेदनशील एवं व्यक्तिगत दस्तेवाजों को सुपर हैकरों की नज़र से कैसे बचाया जायेगा, इस पर विचार करना अत्यंत आवश्यक है |


Friday, March 4, 2016

कैशलेस ट्रांज़ैक्शन की ओर बढ़ता भारत


आर्थिक उदारीकरण के तीन दशक 
बाद भारतीय समाज में हो रहा परिवर्तन ग्लोबल पैमाने पर हो रही भारत की समृधि को साफ़ स्पष्ट कर रहा है | एक ओर जहां देश में ऑनलाइन शौपिंग का बाज़ार अपने पैर फैला रहा है वही दूसरी तरफ कैशलेस ट्रांज़ैक्शन की तरफ भारतीय उपभोक्ताओं का झुकाव भी बढ़ रहा है | क्रेडिट कार्डडेबिट कार्ड तथा नेट बैंकिंग जैसे आभासी भुगतान की दिशा में भारत धीरे धीरे ही सही लेकिन आगे बढ़ रहा है | केंद्रीय बैंक के आंकड़ों के अनुसार नवंबर 2015 में भारत में पारंपरिक भुगतान की अपेक्षा आभासी भुगतान अधिक हुआ है | भारत सरकार भी देश में कैशलेस लेनदेन को प्रोत्साहित कर रही है और हाई-टेक फंड ट्रांसफर करने के तरीकों को प्रोत्साहित करने की योजना को मजबूत करने  के पक्ष में है | भारत ने जब सभ्यता की ओर कदम रखा था तो शायद ही कोई ये सोच सकता था कि हमारी अर्थव्यवस्था प्रणाली में इतना बड़ा परिवर्तन होगा | भारत में उपभोक्ताओं और व्यापारियों के बीच वित्तीय विनिमय को सुचारू बनाने के लिए 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास सिक्के की शुरूआत हुई | वित्तीय विनिमय को अधिक सुविधजनक बनाने के उद्देश्य से 1770 में कागज के पैसे चलन में आये | इसके बाद 1861 पेपर करेंसी एक्ट पारित हो जाने के बाद कागज़ी मुद्रा लेनदेन और आसान हो गया | पिछले 340 सालों में उपभोक्ता भुगतान बाजार में पेपर करेंसी का ही बोलबाला रहा लेकिन पिछले 10 वर्षों में प्रौद्योगिकी विकास ने भारत के उपभोक्ताओं का  कैशलेस लेनदेन की झुकाव बढ़ा है |  हालांकि भारत में अभी आभासी भुगतान प्रणाली को अपनाने वालों का प्रतिशत बहुत कम है और एक ख़ास वर्ग ही इसका प्रयोग कर रहा है |  वास्तव में इस समूह का एक बड़ा वर्ग शहरी कामकाजी आबादी है जो क्रेडिटडेबिट कार्ड  तथा नेट बैंकिंग का उपयोग करते है | बरहाल प्रधानमंत्री की जन धन योजना के आने के बाद,  देश भर में 11 करोड़ से अधिक खाते खुल चुके है जो निश्चित ही भारत में कैशलेस लेनदेन को बढ़ावा देने में सकारात्मक संकेत दे रहे है | भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम द्वारा मास्टरकार्डवीजा और अमेरिकन एक्सप्रेस कार्ड की तरह घरेलू प्रतिद्वंदी “रुपे” कार्ड लांच किया गया है जिसका उद्देश्य भी आभासी लेनदेन को बढ़ावा देना है | “रुपे” दो शब्दों रुपया और भुगतान के संयोजन से बना है जो डेबिट कार्ड का भारतीय संस्करण है | रूपे सभी भारतीय बैंकों और वित्तीय संस्थानों में इलेक्ट्रॉनिक भुगतान की सुविधा प्रदान करता है | भारत अब घरेलू भुगतान गेटवे प्रणाली के लिए दुनिया का छठा देश बन गया है |
भारतीय रिजर्व बैंक की अप्रैल 2015 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में क्रेडिट कार्ड से लगभग  75% लेनदेन एक्सिस बैंकएचडीएफसी बैंकआईसीआईसीआई बैंकइंडसइंड बैंककोटक महिंद्रा बैंक के ग्राहक करते है | इंटरनेट और स्मार्ट फ़ोन के विकास ने भी कागज रहित लेनदेन को और अधिक आसान बनाने में महतवपूर्ण भूमिका निभायी है |
पिछले दो दशकों में इंटरनेट और मोबाइल फोन की क्रांति ने देश में डिजिटल कॉमर्स के लिए दरवाज़े खोले है | स्मार्टफोनइंटरनेट की पहुंच और ई-कॉमर्स का तेजी से विकास इस कैशलेस भुगतान का पूरक है |  रेल टिकेट बुक करना हो या फ्लाइट टिकेटया अन्य तरह के बिल जमा करना हो ऑनलाइन ट्रांज़ैक्शन इस तरह के रोजमर्रे के कामों को आसान बनाने में सक्षम है | कैशलेस अर्थव्यवस्था का असर फ्रांसबेल्जियमस्वीडननॉर्वेआइसलैंड जैसे  छोटे देशों में भी साफ़ दिखाई दे रहा हैं | हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था इन देशों से अधिक मजबूत एवं सकारात्मक विकास के पथ पर है | बरहाल धीरे धीरे ही सही लेकिन सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक देश में कैशलेस लेनदेन को प्रोत्साहित कर रही है | भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) के “रूपे” और आईएमपीएस (तत्काल भुगतान सेवा) देश में कैशलेस लेनदेन प्रणाली को सफल बनाने में प्रयासरत है | भारत का भविष्य कैशलेस ट्रांज़ैक्शन की दिशा में है जो निश्चित ही देश की प्रगति के पथ का संकेत दे रहे है |




http://www.humsamvet.in/humsamvet/?p=3361



Saturday, February 6, 2016

अब जातिगत जालों से रिहा होते हम भारतीय


फेसबुक पर बीबीसी के कलम से निकली याशिका दत्त की कहानी वायरल हो चुकी है. जब अपनी कहानी के द्वारा याशिका ने भारत में फैले जाति के जालों में उलझी अपनी ज़िन्दगी के अनुभवों को बताया तो वाकई  लगा की हम भारतीयों की मानसिकता शायद रोग ग्रषित है. देश में सर उठा के जीने के लिए याशिका दत्त को अपनी दलित पहचान छुपानी पड़ी लेकिन ये देश तुमहारा भी उतना ही है जितना किसी अन्य जाति धर्म या समुदाय के लोगों का. हाँ माना कि भारत में जाति के जालों को हटाने में  में वक्त काफी लगा लेकिन काफी हद तक ये साफ़ हो चूका है और अब भारत में बहुजन लोग अपनी पहचान नहीं छुपाते. हालांकि ये याशिका का निजी फैसला था लेकिन तुम्हे तो फक्र होना चाहिए की तुम देश की सबसे ख़ास जाति से सम्बन्ध रखती हो. तुम देश की सबसे मेहनतकश बिरादरी से सम्बन्ध रखती हो. तुमहारी ये कहानी मुझे बार बार ये सोचने पर मजबूर कर रही है की देश के उन अपराधियों और निठल्ले लोगों को शर्म क्यों नहीं आती जो देश की सफलता में रोड़ा का काम कर रहे है. अभी तुम न्यूयॉर्क में स्वतंत्र पत्रकार हो और देश का नाम रोशन कर रही हम भारतियों को तुमपे गर्व है.
 

Tuesday, January 26, 2016

गणतंत्र दिवस पर आतंकी साया- तैयार हैं हम

देश जहां अपने राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस को मनाने की तैयारी कर रहा है वही सुरक्षा एजेंसियों द्वारा जारी की गयी चेतावनी दी है कि इस्लामी राज्य भारत में सात समन्वित हमले करने की फ़िराक में है. गणतंत्र दिवस से ठीक पहले संयुक्त राज्य अमेरिका के केंद्रीय जांच एजेंसी की मदद से भारतीय खुफिया एजेंसियों ने देश भर से 20 आईएसआईएस गुर्गों को गिरफ्तार किया है.
केंद्रीय खुफिया एजेंसी ने 20 इस्लामी राज्य समर्थकों के ऑनलाइन संवाद को उनके आईपी पतों द्वारा ट्रेस करके रोका और आईएसआईएस गुर्गों द्वारा फेसबुक पर हो रही बातचीत में सीआईए द्वारा एक कोड “सात कलश रख दो” को डीकोड कर भारत में 7 स्थानों पर आतंकी हमले की बात सामने लायी. राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने सीआईए की सहायता से,  हरिद्वार से अखलाक उर रहमान नामक शख्स को गिरफ्तार किया. बीते शुक्रवार को कर्नाटक, हैदराबाद, मुंबई, लखनऊ  बेंगलुरू, तुमकुर और मंगलौर में इन शहरों में 12 स्थानों पर एक साथ छापे मारकर कई आईएसआईएस गुर्गे गिरफ्तारी किए गए. अबू अनस नाम का संदिग्ध  हैदराबाद से गिरफ्तार किया गया, ये किसी सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करता है. ये गिरफ्तारी हैदराबाद के टोली चौकी  क्षेत्र में हुई जहां इसके पास से जिहादी साहित्य, वीडियो और दो किलोग्राम अमोनियम नाइट्रेट तथा कुछ आपत्तिजनक लेख को हिरासत में ले लिया गया. जांच एजेंसियों द्वारा मिली जानकारी के अनुसार गिरफ्तार किए गए लोगों में से कुछ छात्र हैं और कुछ विभिन्न कंपनियों में कर्मचारी हैं.
दिल्ली पुलिस ने आईएसआईएस के साथ कथित संबंध होने की आशंका से राज्य से चार लोगों को पूछताछ के लिए गिरफ्तार किए गया और उनसे मिली जानकारी के बाद उत्तराखंड में रुड़की से एक संदिग्ध आतंकवादी को हिरासत में लिया गया. ख़ुफ़िया एजेंसियों के अनुसार आईएसआईएस भारत में भी वैसे ही आतंकी हमले को अंजाम देने की फ़िराक में है जैसे बीते वर्ष नवंबर में पेरिस पर हमला किया था और जिसमें 130 लोगों की मौत हो गई थी.
भारत की इस राष्ट्रीय पर्व में फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे इस कारण देश को और अधिक अलर्ट होने की आवश्यकता है. भारत के 67 वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर आतंकी खतरे को देखते हुए भारत को हाई अलर्ट कर दिया गया है. यही नहीं देश में लगातार हो रही संदेहजनक घटनाएं आतंकी हमले की ओर इशारा कर रही है. बीते दिनों देश में भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल के एक आईजी रैंक के अधिकारी (आईटीबीपी) की ब्लू बीकन वाहन चोरी हो गयी और फिर बीते रविवार को लोदी गार्डन से एक कर्नल की आर्मी स्टीकर लगी कार चोरी हो गयी, पुलिस के अनुसार ये कार डॉक्टर शैलेन्द्र सिंह की है. पठानकोट के हमलों के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने अलर्ट जारी किया है की आतंकवादी बत्ती और स्टीकर लगी गाड़ियों को चोरी कर गणतंत्र दिवस के खुशनुमा माहौल को ख़राब कर सकते है. और पिछले दिनों नोएडा से आईजी की नीली बत्ती लगी कार की चोरी का अभी तक कोई सुराग नहीं मिला है.
लखनऊ शहर में भी ख़ुफ़िया एजेंसियों द्वारा प्राप्त जानकारी से जब एटीएस ने सीसीटीवी फुटेज खंगाली तो ज्ञात हुआ की फेसबुक पर चार्ली ब्वॉय के नाम से अकाउंट चला रहे बीस वर्षीय अलीम आतंकी संगठन आईएस के संपर्क में था. अलीम और हैदराबाद से आये दो आतंकी युवकों ने प्रधानमन्त्री के लखनऊ दौड़े से ठीक पहले लखनऊ के कई इलाकों की रेकी की थी. गणतंत्र दिवस से पहले देश में हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है. राजधानी दिल्ली में चप्पे चप्पे पर तैनात कमांडर, पैरा मिलिट्री फ़ोर्स, 165 रेसोलुशन वाले 17000 सीसीटीवी कैमरे लगे है. राजपथ पर एंटी एयर क्राफ्ट गन लगाया गया है. गणतंत्र दिवस को खतरों से महफूज़ रखने के लिए देश में कड़े इन्तेजाम किये गए है. 26 जनवरी को होने वाली परेड की सुरक्षा और कड़ी कर दी गयी है. देश आतंकी हमले के प्रति अलर्ट है और सुरक्षा में कोई कसर न छूटे इसके लिए प्रयासरत है.


Tuesday, December 8, 2015

ज़मीनी हकीकत की पृष्ठभूमि से दूर होता हिंदी सिनेमा

http://glsmedia.in/archives/627

भारतीय सिनेमा जगत ने सफलता पूर्वक अपने सौ साल से ज्यादा पूरे कर लिए है और पिछले सौ सालों में सिनेमा में बहुत सारे परिवर्तन हुए है | आज सिनेमा की स्क्रिप्ट, प्रस्तुतीकरण, शूटिंग की लोकेशन सब कुछ बदल चूका है | आज साल में एक दो सामाजिक सन्देश देती हुई फिल्में जरूर रिलीज़ होती है पर ज़मीनी हकीकत से जुडी फिल्में देखने को नहीं मिलती है | ग्रामीण भारत की दशा आज भी निराशाजनक बनी हुई है पर अब इसे सिल्वर स्क्रीन पर देखने का मौका बहुत कम मिल रहा है | जबकि भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत किये गए आज़ाद भारत की आर्थिक, सामाजिक और जाति आधारित जनगणना के ताज़े आकड़ों ने साफ़ कर दिया है भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था बहुत कमजोर है | ताजा आकड़ों के अनुसार गाँव में निवास करने वाले लोगों में से केवल 10 प्रतिशत ही वेतनभोगी है | बेशक 1991 के बाद हुए उदारीकरण ने आर्थिक सामाजिक व्यवस्था में बदलाव किये और भारतीय शहर की तस्वीर बदली लेकिन आज भी हमारे देश के मजदूरों के पास पक्के मकान नहीं है उन्हें रात खुले आकाश के नीचे या कच्चे झोपोड़ों में ही बितानी पड़ती है और इसलिए मौसम की बेरुखी इन्हें हमेशा सताती रहती है | देश के 10.69 करोड़ लोग अभावग्रस्त है हाल में सरकार द्वारा प्रस्तुत किये गए इस निराशाजनक जनगणना से ग्रामीण भारत की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर प्रतीत होती है | पिछले कुछ सालों के पन्ने पलटें तो मज़दूरों पर आधारित मुख्य धारा की फिल्में लगभग ना के बराबर हो गई है, पुरानी ज़मीनी हकीकत से जुड़ीं फिल्मों की जगह आज की मसाला फिल्मों ने ले ली है | भारत में आज भी मजदूर और किसान का जीवन संघर्षमय बना हुआ है लेकिन अब गरीब मजदूर और किसान की ज़िन्दगी पर आधारित फिल्में बहुत कम देखने को मिलती है |
भारतीय सिनेमा जगत ने शुरुआती दौड़ में सामाजिक विषय को लेकर कई सारी फिल्में बनायीं गयी है | इसमें कुछ फिल्में गरीब मजबूर किसान के जीवन पर केन्द्रित थी तो कुछ बेबस मजदूर के जीवन के इर्द गिर्द घुमती हुई थी और कुछ अन्य निम्न श्रेणी के पेशे वालों के संघर्ष को जीवंत करती हुई | कई फिल्म निर्माताओं ने गरीब किसानो और मजदूरों तथा अन्य निम्न श्रेणी के पेशे वालों के जीवन के दैनिक संघर्ष और उनकी सामाजिक-राजनीतिक संघर्ष की कहानी को इतनी खूबसूरती एवं भावनात्मक ढंग से प्रस्तुत किया गया की ये दुनिया भर के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बन गयी | कुछ फिल्मों को उस ज़माने का ट्रेंड सेटर भी माना जाता था | 1953 में बिमल रॉय द्वारा निर्देशित फिल्म दो बीघा ज़मीन”  ने गरीब किसान की मजबूरियों को बड़ी ही खूबी से दिखाया गया है | फिल्म एक छोटे किसान शम्भू  (बलराज साहनी) के जीवन के इर्द गिर्द घुमती है जिसके पास पूरे परिवार का पेट पालने के लिए सिर्फ़ दो बीघा ज़मीन ही है और कई सालों से उसके गाँव में लगातार सूखा पड़ रहा है जिससे शम्भू और उसका परिवार बदहाली का शिकार हो जाता हैं | इसी क्रम में 1957 में महबूब खान द्वारा निर्देशित फिल्म मदर इंडियाभारतीय किसान नारी के संघर्ष की मार्मिक कथावस्तु है, यह ग्रामीण साहूकार सभ्यता की क्रूरता और अत्याचार से लड़ती हुई नारी की हृदयवेदक कहानी है। हृषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित नमक हराममें प्रबंधन बनाम मजदूरों की कहानी दिखाई गयी है | इसमें सोमू (राजेश खन्ना) और विक्की (अमिताभ बच्चन) की गहरी और स्थायी दोस्ती होने के बावजूद वर्ग विभाजन की वजह से दोनों की राह अलग होते हुए दिखाया गया है । वही यश चोप्रा द्वारा निर्देशित फिल्म काला पत्थरमें निर्देशक की सहानुभूति कोयले की खान के कार्यकर्ताओं के साथ स्पष्ट रूप से दिखाई देती है | गरीबों के दशा को दिलीप कुमार ने भी बड़े परदे पर जीवंत किया है, उनकी फिल्म मजदूरमें उस दौड़ के मजदूर की परेशानियों से दर्शको से रूबरू कराया गया है | दो बीघा ज़मीन के बाद 1959 में पुनः बलराज सहनी क्रिशन चोपड़ा द्वारा निर्देशित फिल्म हीरा-मोतीमें गरीब किसान की भूमिका में नज़र आये | “हीरा-मोतीविक्रमपुर गाँव में रह रहे धुरी (बलराज सहनी) और उसकी पत्नी रजिया (निरुपमा रॉय) और एक बहन चंपा (शुभ्हा खोटे) के गरीब जीवन शैली की कथावस्तु है | धुरी एक किसान है जिसके पास छोटा सा खेत और दो बैल, हीरा और मोती है। हीरा मोतीफिल्म जमींदारी व्यवस्था की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जिसका नायक शोषण के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रेरित करता है । इसी क्रम में मनमोहन देसाइ द्वारा निर्देशित फिल्म कूलीमें इकबाल (अमिताभ बच्चन) मुंबई रेलवे स्टेशन पर एक कुली है और कुली के अधिकारों के लिए लड़ने की प्रतिज्ञा लेता है | हिंदी सिनेमा में हर वर्ग चाहे किसान हो, मजदूर हो या कोई अन्य गरीब तबका, बड़े परदे पर उनके जीवन के संघर्ष की कहानी को मनमोहक रूप से पिरोने की सफल कोशिश की गयी | मजदूर के अधिकारों की पृष्ठभूमि पर आधारित कथावस्तु हो या आमतौर पर अपने गांव से शहर की ओर पलायन करने के लिए मजबूर ग्रामीण की कहानी हो, ज़मीनी हकीकत से जुड़े समाजवादी विषय को उठाने की कोशिश की गयी | वर्ष 2001 में आशुतोष गवारीकर निर्देशित लगानमें आमिर खान ने जब पहली बार ग्रामीण भारत को चित्रित किया तो दर्शकों ने बाहें फैला कर इसका स्वागत किया | इसमें ब्रिटिश राज द्वारा निर्धारित करके लिए गरीब भारतीय समुदाय पर अत्याचार किया जाता है और ये कहानी एक नाटकीय मोड़ तब ले लेती है जब लगान बचाने के लिए भारतीय ब्रिटिश अधिकारियों के साथ क्रिकेट का खेल खेलते है और उन्हें हरा कर, ब्रिटिश राज द्वारा लगाये गए करोंसे 3 साल के लिए मुक्त हो जाते है | वही 2010 में आमिर खान निर्मित पीपली लाइवगरीब नत्था के जीवन के इर्द गिर्द घुमती कथावस्तु है जिसकी जमीन बैंक हडपने वाली है क्योंकि वह लोन चुकाने में नाकामयाब रहा है, उसके पास पैसे नहीं है। जब वह एक नेता से मदद लेने पहुचता है तो उसे सुझाव दिया जाता है की  जीते जी तो सरकार उसकी मदद नहीं कर सकती, लेकिन अगर वह आत्महत्या कर ले तो उसे मुआवजे के रूप में उसे एक लाख रुपए मिल सकते हैं और यहाँ से उसके जीवन के संघर्ष की शुरुवात होती है | पिछले वर्ष 2014 में रिलीज़ हुई हंसल मेहता की फिल्म सिटी लाइट्सएक प्रवासी गरीब की कथानक पर आधारित है जो बेहतर जिंदगी की आस में मुम्बई आ जाता है जहा उसके संघर्ष के सफ़र की शुरुवात होती है, जिसे बड़े ही भावनात्मक ढंग से दिखाया गया है लेकिन उसे दर्शकों का ख़ासा प्यार नहीं मिला | ऐसी अनगिनत फिल्में है जिसके माध्यम से दर्शकों ने यथार्थवादी पृष्ठभूमि पर आधारित कहानियों को देखा और उनकी मनभावन अभिव्यक्तियों से प्रभावित भी हुए है |
भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत किया गए आज़ाद भारत की आर्थिक, सामाजिक और जाति आधारित जनगणना के ताज़ा आकड़ों से ज्ञात होता है की आज भी ग्रामीण भारत की दशा में ख़ासा परिवर्तन नहीं हुआ है भारत में गरीबी और आर्थिक तंगी के चलते आज भी बड़े पैमाने पर किसान और गरीब आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाते है, लेकिन अब फिल्में इस तरह की ज़मीनी हकीकत की पृष्ठभूमि पर कम ही बनती है, आज का दौड़ मसाला फिल्मों का दौड़ है |

बीते ज़माने के हीरो और आज के हीरो की परिभाषा बदल गयी है | आज के हीरो के पास सारी सुख सुविधाएं होती है | उसके पास बड़ी गाड़ी, ब्रांडेड कपडे, जूते, गॉगल्स, हाई-टेक्नोलॉजी के गैजेट्स सारी सुविधा होती है क्योंकि आज के दर्शक अपने हीरो को उसी रूप में देखना चाहते है और दर्शक अपने हीरो का अनुसरण भी करते है | आज शायद ही कुछ ख़ास वर्ग के दर्शक होंगे जो गरीबी और ज़मीनी सच्चाई पर आधारित कथावस्तु को देखना पसंद करते हो | आज का दौड़ सौ करोड़ क्लबका दौड़ है और शायद बॉक्स ऑफिस पर सौ करोड़ क्लबका लक्ष्य होने के कारण भी निर्माता निर्देशक ऐसे कथावस्तु पर फिल्म बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते है |

विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) क्षेत्रों में महिलाओं का वर्चस्व

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