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Sunday, April 22, 2018

क्या पॉक्सो एक्ट में संशोधन लाएगा बदलाव



देश में बलात्कार और मासूम बच्चियों कि हत्या के विरोध में भारी आक्रोश के बीच यौन अपराध कानून अधिनियम (पीओसीएसओ एक्ट) 2012 को संसोधित करने की मांग की गयी | बरहाल देश में आए दिन मासूम बच्चियों के साथ यौन अपराधों की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं |  इस तरह के अपराध को बढ़ता देखकर ही सरकार ने साल 2012 में एक विशेष कानून पारित किया गया था जिसे अंग्रेजी में पीओसीएसओ एक्ट कहते हैं। हालांकि केंद्रीय कैबिनेट ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए एक बड़े फैसले के तहत प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस यानि पोक्सो एक् में संशोधन के लिए शनिवार को अध्यादेश को मंजूरी दी है  | पॉक्सो एक्ट में संशोधन को हरी झंडी मिलने के बाद इसके तहत देश में 12 साल या उससे कम उम्र की बच्चियों के साथ रेप के दोषियों को मौत की सजा दी जा सकेगी |


दरअसल, बच्चों के साथ हो रहे यौन शोषण को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए यौन अपराध कानून अधिनियम (पीओसीएसओ एक्ट) 2012 का संरक्षण किया गया था। इस अधिनियम में  अठारह वर्ष से कम उम्र को बच्चों को रखा गया है और  इसके तहत यौन उत्पीड़न के विभिन्न रूपों को परिभाषित किया गया है जिसमें छेड़छाड़ और गैर-प्रेरक हमलों, साथ ही साथ यौन उत्पीड़न और अश्लील साहित्य शामिल हैं। कुछ विशेष  परिस्थितियों में यौन उत्पीड़न को बहुत बिगड़ा हुआ माना जाता है, जैसे कि जब बच्चा मानसिक रूप से बीमार हो या जब किसी व्यक्ति द्वारा किसी पारिवारिक सदस्य, पुलिस अधिकारी, शिक्षक या चिकित्सक उसके साथ दुर्व्यवहार करने कि कोशिश करता है | यह अधिनियम  जांचकर्ता प्रक्रिया के दौरान बाल संरक्षक की भूमिका में पुलिस को भी शामिल कर सकता है | इस प्रकार एक बच्चे के यौन शोषण की रिपोर्ट प्राप्त करने वाले पुलिस कर्मियों को बच्चे की देखभाल और संरक्षण के लिए तत्काल व्यवस्था करने की जिम्मेदारी दी जाती है | मसलन, बच्चे के लिए आपातकालीन चिकित्सा उपचार प्राप्त करना और बच्चे को आश्रय देना और जरूरत पड़ने पर बाल कल्याण समिति में मामले को लेकर जाना |
अधिनियम न्यायिक प्रणाली द्वारा बच्चे को  पुन: पीड़ित ना होना पड़े इसको भी सुनिश्चित करता है। इस अधिनियम में उन विशेष अदालतों कि भी चर्चा कि गयी है जो परीक्षण में कैमरे का संचालन करते हैं और बच्चे की पहचान को प्रकट करके बाल-मित्रवत के रूप में कार्य करते है |
इसके अधिनियम में सुनिश्चित किया गया है कि साक्ष्य देने के समय बच्चे के माता-पिता या अन्य विश्वसनीय व्यक्ति ही मौजूद हो और साक्ष्य देते हुए एक दुभाषिया, विशेष शिक्षक या अन्य पेशेवर से सहायता मांगी जा सकती हैं |  अधिनियम की ख़ास बात यह है कि इस अधिनियम में यह स्पष्ट किया गया है कि यौन शोषण के मामले को अपराध की रिपोर्ट की तारीख से एक वर्ष के भीतर ही निपटाया जाए | अधिनियम के तहत यौन अपराधों की अनिवार्य रिपोर्टिंग भी उपलब्ध करायी जाती है।
इस कानून का मकसद बच्चों को छेड़खानी, बलात्कार और कुकर्म जैसे मामलों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए बनाया गया | पॉक्सो एक्ट के तहत नाबालिगों के साथ होने वाले अपराधों के मामलों में कार्रवाई की जाती है। इसके तहत बच्चों को यौन उत्पीड़न, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा भी प्रदान कराने के प्रावधान बनाया गया है |

गौरतलब है कि वर्ष 2012 में बने पॉक्सो एक्ट के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा का प्रावधान बनाया गयालेकिन फिर भी देश में मासूम बच्चियों से हो रहे दुष्कर्म लगातार बढ़ते ही जा रहे है | जबकि इस अधनियम ने विभिन्न प्रकार के चाइल्ड सेक्सुअल असॉल्ट को स्पष्ट रूप से सझाया गया |
इस कानून की धारा 3 के तहत 'पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट' को परिभाषित किया गया है,  जिसके तहत अगर कोई व्यक्ति किसी बच्चे के शरीर के किसी भी पार्ट में प्राइवेट पार्ट डालता है या बच्चे के प्राइवेट पार्ट में कोई अन्य चीज डालता है या बच्चे को ऐसा करने के लिए कहता है तो यह धारा-3 के तहत अपराध मन जाता है | पॉक्सो एक्ट की धारा-4 में बच्चे के साथ दुष्कर्म या कुकर्म के मामले को शामिल किया गया है,  जिसके तहत 7 साल से लेकर उम्रकैद और अर्थदंड का प्रावधान बनाया गया वही पॉक्सो एक्ट की धारा-6 के अधीन उन मामलों को रखा गया  जिनमें बच्चों को दुष्कर्म या कुकर्म के बाद गम्भीर चोट पहुंचाई गई हो |  इसमें दस साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा तथा साथ ही जुर्माना का भी  प्रावधान है | इस अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत वो मामले शामिल किए गए हैं, जिनमें बच्चों के गुप्तांग से छेडछाड़ की जाती है। इस धारा में पाए गए दोषियों को 5 से 7 साल तक की सजा तथा जुर्माना का प्रावधान बनाया गया है |  18 साल से कम उम्र के नाबालिग बच्चों के साथ किया गया किसी भी तरह का यौन व्यवहार इस कानून के अन्तर्गत आता है | पॉक्सो एक्ट की धारा-11 बच्चों के साथ सेक्सुअल हैरेसमेंट को परिभाषित करता है  जिसके तहत अगर कोई व्यक्ति बच्चों को गलत नियत से छूता है,  सेक्सुअल हरकतें करता अथवा उसे पोर्नोग्राफी दिखाता है तो उसे इस धारा के तहत 3 साल तक की  कैद की सजा का प्रावधान बनाया गया है |
दरअसल, पॉक्सो एक्ट सभी बच्चों यानि लड़के और लड़कियों कि सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए पारित किया गया था | लेकिन देश में फिर भी आये दिन नाबलिकों के साथ हो रहे यौन शोषण की  बढती घटना ने सरकार को इसे पुनः संशोधित करने के लिए मजबूर कर दिया | इसमें कुछ विशेष बदलाव लाये जाने कि बात कि गयी है | इस अधिनियम के तहत अब 12 साल की बच्चियों से रेप पर फांसी की सजा का प्रावधान बनाया गया है, वही 16 साल से छोटी लड़की से गैंगरेप पर उम्रकैद की सजाऔर 16 साल से छोटी लड़की से रेप पर कम से कम 20 साल तक की सजा देने कि बात कि गयी है | सभी रेप केस में छह महीने के भीतर फैसला करने एवं नए संशोधित अधिनियम  के तहत रेप केस की जांच दो महीने में पूरी करने कि बात कही गयी है | साथ ही आरोपी को अग्रिम जमानत देने का भी प्रावधान  बनाया गया है |  पोस्को अधिनियम का संशोधन देश में बच्चियों के साथ हो रहे बलात्कार को रोकने तथा उनको सुरक्षा प्रदान करने में कितना कारगर होगा यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा पर फिलहाल सरकार का ये फैसला काबिले तारीफ है | हालांकि, यहाँ एक प्रशन यह भी उठता है कि क्या बालिगों के साथ हो रहे बलात्कार के लिए भी मौत कि सजा नहीं मिलनी चाहिए, क्योंकि  उन्हें भी उतनी ही पीड़ा झेलनी पड़ती है | सरकार को इस विषय में विचार करना चाहिए |



Monday, March 12, 2018

महिला सशक्तिकरण मजबूत करेगा देश कि अर्थव्यवस्था







महिला सशक्तीकरण एक सार्वभौमिक मुद्दा है, जहां महिला सशक्तिकरण महिलाओं को उनके समान-अधिकार को सुनिश्चित करने, उनके सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं कानूनी पहलुओं को बेहतर रूप देने कि कोशिश करता है वही राष्ट्र कि उन्नति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है | किसी भी देश कि अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में पुरुष और महिला दोनों का योगदान आवश्यक है | देश की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी बहुत मायने रखती है। अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार एशियाई देशों की दृष्टि से भारत और पाकिस्तान में महिलाओं का श्रम सबसे कम है |  किसी भी प्रकार के व्यवसाय तथा काम में महिलाओं की भागीदारी उस समाज की स्थिति को स्पष्ट करता है | भारत में महिलाओं की भागीदारी देश के आर्थिक उत्थान में अपेक्षाकृत बहुत कम है, यह कहना उचित होगा कि आज भी देश का आर्थिक मॉडल पुरुषों पर ही निर्भर है | यहाँ इस मुद्दे पर प्रकाश डालना उचित होगा कि भारत का आर्थिक मॉडल किस हद तक महिला केंद्रित है |
 भारत में गृहिणियों सहित कामकाजी महिलाएं उसकी अर्थव्यवस्था में प्रमुख भूमिका निभाती हैं | दुनिया में सबसे बड़े कर्मचारियों की संख्या में गृहिणियां भी शामिल हैं | दरसल समाज में महिलाओं को उत्पादक कार्यों में संलग्न होने के अवसर और स्वतंत्रता कम मिलने के कारण उनका देश के आर्थिक विकास में योगदान कम है, इसके अलावा महिलाओं द्वारा अवैतनिक श्रम के रूप में किए गए विशाल कार्य भी सर्वेक्षण में शामिल नहीं होता है इस कारण भी उनके द्वारा किया जा रहा आर्थिक योगदान में शामिल नहीं हो पाता है | 
औपचारिक श्रमिक बल की तुलना में अधिक महिलाएं बिना दस्तावेज या 'प्रच्छन्न' मजदूरी के भी काम में शामिल हो जाती है जिससे देश उनका आर्थिक योगदान नज़र अंदाज़ हो जाता है | अनुमान है कि 90 प्रतिशत से अधिक महिला कर्मचारी अनौपचारिक क्षेत्र में शामिल हैं और आधिकारिक आंकड़ों (विश्व बैंक के आकड़ों) में शामिल नहीं हैं | अनौपचारिक क्षेत्र में घरेलू नौकर, छोटे व्यापार, कारीगरों, या एक परिवार के खेत पर मजदूरी  जैसे रोजगार शामिल हैं |
तथाकथित "ब्रिक्स" देशों का एक सदस्य, भारत अपने तेजी से अर्थव्यवस्था का विस्तार कर रहा है, हाल के दशकों में भारत निश्चित रूप से अधिक समृद्ध हुआ है, लेकिन अभी भी महिला केन्द्रित आर्थिक मॉडल के सपने ही जैसा ही प्रतीत होता है |
हालाँकि महिलाओं ने देश कि अर्थव्यवस्था में भागीदारी करनी शुरू कर दी है, वर्ष 2012 में  स्लाइडशेयर की संस्थापक रश्मि सिन्हा को फास्ट कंपनी द्वारा वेब 2.0 में विश्व की टॉप 10 वोमेन इन्फ्लूएंसर के रूप में नामित किया गया | कई अन्य महिला व्यवसायिओं ने भी इस  सूची में अपना नाम दर्ज कराया है और इसी के साथ दुनिया में यह धारणा मजबूत होती जा रही है कि आने वाले समय में महिला उद्यमी भारतीय अर्थव्यवस्था पर एक जबरदस्त प्रभाव छोड़ने में सफल होगी |
ऐसा देखा जा रहा ही कि महिलाओं द्वारा उद्यमशीलता को अपनाने की प्रवृति बढ़ती रही है। लेकिन अगर इतिहास पर नजर डालें तो भारत में महिलाओं द्वारा पापड़ और अचार को तैयार करके बेचने का चलन बहुत पुराने समय से चला आ रहा है | भारत में व्यापक रूप से प्रशंसित शाहनाज हुसैन है, जो स्वस्थ देखभाल उत्पादों की सबसे बड़ी उपभोक्ता हैं |

आर्थिक सहयोग और विकास संस्थान (ओईसीडी) की रिपोर्ट के अनुसार अगर भारत विकास समर्थक और लिंग-समर्थक नीतियां अपनाता है तो उसकी अर्थव्यवस्था की वार्षिक दर में 2.4 प्रतिशत तक कि बढोतरी होगी | इसके लिए भारत को यह सुनिश्चित करना जरूरी होगा कि शिक्षा और प्रशिक्षण,  मानव संसाधन और उत्पादन जैसी बुनियादी कौशल कार्यशालाओं में महिलाओं की बराबर कि भागीदारी हो |
देश में  महिलाओं को भारतीय अर्थव्यवस्था में पूरी तरह से भाग लेने के लिए कई संरचनात्मक और सामाजिक अवरोधों को परिष्कार करना भी आवश्यक होगा | पिछले कुछ वर्षों में कामकाजी महिलाओं कि संख्या बढ़ी है लेकिन दुनिया कि तुलना में ये बहुत कम है |
दरसल देश कि आर्थिक व्यवस्था में महिलाओं कि भागीदारी को बढ़ाने के कुछ ज़मीनी परिवर्तन करना आवयशक होगा | कई शोधों से यह स्पष्ट होता है कि यदि महिलाओं को काम करने के अवसर प्राप्त होते है तो वो इन्हें सहर्ष स्वीकार कर लेती है | मनरेगा इसका स्पष्ट उदहारण है, चूँकि मनरेगा के माध्यम से 45%ऐसी महिलाओं को वैतनिक श्रम उपलब्ध कराया जा सका है, जो उन्हें पहले कहीं नहीं मिला था | लेकिन मनरेगा में सम्पूर्ण  वर्ष रोज़गार के अवसर नहीं मिलते है इस कारण ये इन महिलाओं को कृषि-कर्म से गैर कृषि-कर्म में रोज़गार के अवसर प्राप्त कराये जाए |
भारतीय समाज में महिलाओं के काम करने को लेकर संकुचित दृष्टिकोण को भी बदलना भी बहुत आवयशक है | भारत कि आर्थिक व्यवस्था में महिलाओं के योगदान को बढाने के लिए  घरेलू कामों और बच्चों की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी महिला और पुरुष को साझा करना जरूरी होगा | महिलाओं का सशक्तिकरण देश कि आर्थिक व्यवस्था को सुनिश्चित रूप  मजबूत कर साकता है |







Friday, May 5, 2017

स्ट्रेस कम करती म्यूजिक थेरेपी


संगीत उस प्रेमी जैसा है जो अपनी आगोश में लेकर हर दर्द को भुला देता है इसकी पुष्टि अब अमेरिकी संगीत थेरेपी एसोसिएशन ने भी कर दी है । वैज्ञानिको का मानना है की संगीत एक अच्छे थेरेपिस्ट का काम करता है, वही म्यूजिक थेरेपिस्ट म्यूजिक को सेडेटिव की तरह देखते है। आज के प्रतिस्पर्धा के इस युग में अवसाद ग्रस्त होना आम बात है । दुनिया में ऐसे अनगिनत लोग है जो अवसाद से ग्रषित है । संगीत हृदय को स्पर्श कर रूह में उतरकर निर्मल आनंद की अनुभूति कराता है । रिसर्च बताता है कि शरीर में ट्राइटोफन नामक केमिकल पाए जाते हैं जो संगीत के माध्यम से अवसाद को दूर करने में सहायक होते है । मनोचिकित्सक मानते है की डिप्रेशन के शिकार लोग सुर के सागर में डूब कर स्ट्रेस से बाहर निकल सकते है । म्यूजिक शरीर और मन से जुड़ी साइकोसोमेटिक तथा सेंट्रल नर्वस सिस्टम से जुड़ी विभिन्न बीमारियों के इलाज में भी लाभकारी साबित हो रहा है ।  म्यूजिक थेरेपिस्ट ऑटिज्म, क्लिनिकल डिप्रैशन, हार्ट प्रॉब्लम, हाई लो ब्लड प्रैशर जैसी स्थिति में भी म्यूजिक थेरेपी की प्रक्रिया को कारगर मानते है। इसे एक असरदार ट्रैंक्वलाइजर की तरह देखा जा रहा है । मानव शरीर में एंडोर्फिन हार्मोन होते है जो दर्द से निवारण पहुचाने, तनाव कम करने और मूड को अच्छा करने में सहायक होते है। औरे संगीत की शक्ति हमारे दिल को स्पर्श कर भावनाओं को जगाने का काम करती है जिससे इस हर्मोन का स्त्राव होता है ।संगीत न केवल तनाव दूर करता है, बल्कि आत्मशांति भी प्रदान करता है । ज़िन्दगी की यही रीत है हार के बाद ही जीत है या अभी अभी हुआ यकीन की आग है मुझमें कहीं ऐसे हजारों नगमे है जो हमारे अन्दर पैशन, जोश जगाने के साथ साथ स्ट्रेस बस्‍‍टर का भी करते है। स्ट्रोक पेशेंट्स के लिए भी म्यूजिक थेरेपी एक अच्छा उपाय साबित हो रहा है । ये मरीज को जल्दी रिकवर करने में कारगर है । इसके अलावा कम्युनिकेशन स्किल विकसित करने और आत्मविश्वास बढाने में भी म्यूजिक की अहमियत कम नहीं है । च्च्रुक जाना नहीं तू कही हार केज्ज् गाना हो या इकबाल फिल्म का च्च्आशाएं खिले दिल की ये गाने प्रेरणा प्रदान कर हमारे सकारात्मक सोच को बढाते है ।  हालाकि संगीत की महिमा का इतिहास काफी पुराना है कहा जाता है कि अकबर के दरबार में जब तानसेन गाते थे, तो दीपक खुद-ब-खुद जल उठते थे।  संगीत चिकित्सक मानते है की च्च्सारेगामा शक्ति प्रसव वेदना कम करने में भी सक्षम है और सेन्ट्रल नर्वस डिसआर्डर से भी निजात दिलाने में सहायक है ।  तो म्यूजिक ज़िन्दगी का रिदम है और अगर म्यूजिक थेरेपी का प्रयोग पारंपरिक उपचार के साथ किया जाए तो यह बहुत फायदेमंद सिद्ध होगा । और इस तरह म्यूजिक थेरेपी लोगों को स्ट्रेस से निकलने, मन को हल्का करने और मूड रिलैक्स करने में कारगर साबित हो रहा है । तो म्यूजिक सुनते रहिये, गुनगुनाते रहिये, मुस्कुराते रहिये और तनाव मुक्त रहिये।

Thursday, April 27, 2017

महिलाओं को सुरक्षित करने में असफल साबित हो रही देश कि मजबूत कानून व्यवस्था

देश में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा उठाये जा रहे हरसंभव कदम निष्फल  साबित हो रहे हैं | महिलाओं के लिए बनाए गए अधिकार एवं उनकी सुरक्षा से सम्बंधित कानून भी उनको समाज में सुरक्षित रखने में असफल होते प्रतीत होते है | आए दिन हमारे समाज में महिलाओं के साथ हिंसा की खबरें आती रहती हैं | जहां एक ओर महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए सरकार प्रयासरत है वही दूसरी ओर आये दिन उनके साथ हो रही वारदातों हर कोशिश पर पानी फेरती नज़र आती है |
भारतीय संविधान ने महिलाओं कि सुरक्षा के लिए कई क़ानून बनाये है, चाहे घेरलू हिंसा का मामला हो या सेक्शुअल हैरेसमेंट, छेड़छाड़ या फिर रेप जैसे वारदातों का सभी के लिए देश में सख्त कानून व्यवस्था  हैं। महिलाओं के खिलाफ इस तरह के घिनौने अपराध करने वालों को सख्त सजा दिए जाने के लिए भी प्रावधान बनाये गए है | देश में पिछले दस वर्षों में महिलाओं के लिए कई कानून बनाये गए तथा संशोधित भी किये गए | 16 दिसंबर 2012 की गैंग रेप की घटना के बाद सरकार ने वर्मा कमिशन की सिफारिश पर ऐंटि-रेप लॉ बनाया जिसके  तहत रेप की परिभाषा में परिवर्तन किया गया और अब आईपीसी की धारा-375 के तहत रेप के दायरे में प्राइवेट पार्ट या फिर ओरल सेक्स दोनों को भी रेप ही माना गया है। आईपीसी कि धारा 376   बलात्कार तथा आईपीसी कि धारा 376/511 में बलात्कार करने के  प्रयास सम्बन्धी प्रावधान है | आईपीसी कि धारा 363,364, 364 ए, 366 महिलाओं के अपहरण तथा आईपीसी कि धारा 354 ए यौन उत्पीड़न सम्बंधित कानून को बताती है | इसके अतरिक्त भी देश में कई ऐसी कानून व्यवस्था है जो देश में महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए बनायीं गयी है |
इसी कड़ी में वर्ष 2013 में केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय ने कार्यस्थल: रोकथाम, निषेध और निवारण अधिनियम- 2013 लागू किया गया | इसे ऐतिहासिक कानून कहा जा सकता है क्‍योंकि देश में इससे पहले कार्यस्‍थल पर होने वाले यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए ऐसा कोई कानून नहीं था | इस विनियमन के अंतर्गत यौन शोषण के संदर्भ में जारी की गयी “विशाखा गॉइडलाइन”  के दिशा-निर्देश के तहत महिला उत्पीड़न से सम्बंधित समस्यों की कारवाई करना नियोक्ता कंपनी की ज़िम्मेदारी बताया गया है । सुरक्षा को कामकाजी महिलाओं का मौलिक अधिकार मानते हुए इस निर्देश में शिकायत के संदर्भ में हर कंपनी में महिला-कमेटी बनाना अनिवार्य किया गया है, इस अधिनियम में सभी महिलाएं शामिल होंगी तथा इसके अंतर्गत महिलाओं को सार्वजनिक और निजी दोनों ही क्षेत्रों में यौन उत्‍पीड़न से बचाना है | लेकिन फिर वही सवाल उठता है की ये ज़मीनी रूप से लागू होने में कितना सफल होगा, और ये महिलाओं की सुरक्षा करने में कितना कारगर होगा | दरसल आये दिन औरतों के साथ हो रही घटनाएं, बलात्कार, छेड़खानी और उनके चेहरे पर तेज़ाब फेंकने की घटना ने भारत में महिलाओं की सुरक्षा एवं अस्मिता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। पिछले दशक में महिला उत्पीड़न जैसे मामलो में भारत में आश्चर्यजनक एवं शर्मनाक वृद्धि ने सरकार की सभी कोशिशों को असफल किया है | भारतीय संविधान में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई विशेष कानून वर्णित है, संविधान महिलाओं को समानता का अधिकार देता है पर संविधान में इन तमाम प्रावधानों के बावजूद जमीनी हकीकत अलग कहानी बयान करती है। ये समाज में कायम बदनीयती ही है की महिलाओं के खिलाफ अपराध लगातार बढ़ता जा रहा है | विकसित और मार्डन होते भारत में महिलाओं की स्थिति वाकई बहुत ख़राब है | | लगातार बढ़ रहा महिलाओं के खिलाफ आपराध, संविधान में वर्णित महिलाओं को सुरक्षित करने के लिए बनाये गए सभी अधिनियमों का एक प्रकार से मख़ौल ही उड़ा रहा है | महिला और बाल विकास मंत्रालय के कार्यस्थल रोकथाम, निषेध और निवारण अधिनियम- 2013 महिलाओं को सुरक्षित करने में कितना सफल होगा इसका उत्तर आने वाला वक़्त ही देगा |

Monday, March 20, 2017

वो खलिश भी है , वो रज़ा भी है ...

 अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
                          
वो परियों का ख्वाब है ...
ज़िन्दगी में बिखेरती खुशबू का एहसास है ...
वो कड़कड़ाती ठण्ड में गुलाबी धुप है ...
उसकी सूरत में एक माँ एक बहन एक पत्नी एक बेटी का रूप है ..
वो पथरीले रास्तों में कोमल चादर है ..    
वो जून कि गर्मी में बरसता बादल है ..
वो खलिश भी है ...वो रज़ा भी है ...
वो चेहरे पर लाती मुस्कान कि वजह भी है ..
नारी तो प्यार का नगमा है ..
वो खूबसूरत आइना भी है ..
वो मंदिर में रखी मूरत है ..
उसके आँचल में ममता कि सूरत है ..
उसके होने से ज़िन्दगी खूबसूरत है ...
हर दुआ हर उपवास में उसके ही निशाँ है ..
नारी वो अक्षर है जिससे बनता पूरा जहां है ..
वो काली रातों में चमकती चांदनी है ..
वो संगीत में रस घोलती रागनी है ..
वो तितली सी नाज़ुक भी है.... 
पर चट्टान से मजबूत उसके इरादे भी है ..                   
मन पर लगे तालों के बीच ..
वो खिड़की से झांकती परछाई है ..
कभी उसकी सांस कोख में रोक दी जाती है ..
कभी खुले आसमान में उड़ने को तरस जाती है ..
कभी अश्कों में डूबी उसकी तन्हाई है ...
कभी लहरों में उठते समंदर कि गहराई है ..
उसके होने से चहकता घर का आँगन है ..
वो कुर्बत का दामन है ..
फिर भी कभी ..
भीड़ में उसका तिरस्कार हो जाता है  ..
कभी तन्हाई में दिल तोड़ा जाता है ..
उससे ही रोशन घर का हर कोना है ..
वो उदासी कि दवा..
होठों पर रहती दुआ है ..
वो हौसलों को लेकर चलती है ..
ज़िन्दगी के रंग में ढलती है ..
वो हर शायर कि ग़ज़ल है ..
फिर भी उसकी ज़िन्दगी दरारों का महल है ..
उसके आँचल में प्रेम का सागर है ..
फिर भी प्रेम को तरस जाती है ..
नारी वो रोशिनी है जो अँधेरे को मिटाती है ..
और खुद अँधेरे में डूब जाती है ..
उसके होने से मुकम्मल ज़िन्दगी का सफ़र है ..
पर मुश्किल उसकी ज़िन्दगी की डगर है ..





विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) क्षेत्रों में महिलाओं का वर्चस्व

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